डा. ऐश्वर्या झा का लेख : वैश्विक स्तर पर बढ़ता हिंदी का वर्चस्व

हिंदी अब विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है, जिसका कारण हिंदी भाषा का लचीलापन है। अनुकूलन की क्षमता के कारण यह सभी भाषाओं के शब्दों को अपने अंदर समेट लेती है। विश्व की लगभग हर संभव ध्वनि को वर्णमाला के प्रयोग से हिंदी में लिखा जा सकता है। वैश्विक स्तर पर हिंदी आज राष्ट्रभाषा, राजभाषा, संपर्क भाषा ही नहीं, बल्कि बाजार की भाषा भी है। हिंदी की लोकप्रियता हर साल 94 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है क्योंकि यह उन सात भाषाओं में से एक है जिनका उपयोग वेब एड्रेस बनाने के लिए किया जाता है। गूगल पर हिंदी में 10 करोड़ पेज हैं। हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की सातवीं आधिकारिक भाषा बनाने की दिशा में सरकार की ओर से तेज प्रयास होना चाहिए।;

Update: 2023-01-10 08:58 GMT

वर्ष 2007 से हर साल 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी लगभग डेढ़ हजार वर्ष से भी अधिक पुरानी भाषा है, किंतु इक्कीसवीं सदी में हिंदी का विकास बीसवीं शताब्दी से कई गुना तीव्र गति से हो रहा है। 6900 भाषा वाले भाषाई संसार में हिंदी अपेक्षाकृत नई भाषा है, लेकिन इतने कम समय में वह विश्व के प्राचीनतम भाषाओं को कड़ी टक्कर दे रही है। संख्या के आधार पर देखें तो विश्व में हिंदी भाषा अंग्रेजी और मन्दारिन भाषा के बाद तीसरे स्थान पर है। वर्ष 1900 से 2021 के बीच हिंदी भाषी लोगों की संख्या में 175 फीसदी से अधिक का इजाफ़ा हुआ है। इस समयावधि में अंग्रेजी के बाद यह दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली भाषा है। 1900 में यह दुनिया भर में मन्दारिन, स्पेनिश और अंग्रेजी (क्रमशः पहली, दूसरी और तीसरी) के बाद चौथी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा थी। महज़ 60 वर्ष में 1961 में हिंदी बोलने वाले की संख्या 42.7 करोड़ हो गयी, इस तरह हिंदी स्पेनिश को पछाड़ तीसरे स्थान पर आ गयी । हिंदी भाषा भारत के बाहर 20 से अधिक देशों में बोली जाती है। देश से बाहर, हिंदी भाषा अमेरिका, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका, यमन, युगांडा, सिंगापुर, पाकिस्तान, नेपाल, न्यूजीलैंड आदि देशों में हैं। फिजी में हिंदी को संवैधानिक दर्जा प्राप्त है। विदेशों में हिंदी के प्रचार -प्रसार के लिए आयोजित इस बार का विश्व हिंदी सम्मलेन फिजी में ही आयोजित हो रहा है। वैश्विक स्तर पर 2021 में हिंदी बोलने वालों की संख्या बढ़कर करीब 65 करोड़ हो गई थी। बोलने वालों से कई गुना अधिक इसे समझने वालों की संख्या है। हिंदी की सबसे बड़ी विशेषता उसकी विभिन्न बोलियां एवं विविध शैलियां हैं। इन सत्रह उपबोलियों या उपभाषाओं की अपनी अपनी स्थानीयता है, किंतु ये हिंदी परिवार के अभिन्न अंग हैं। अगर हिंदी की शैलियों व उपभाषाओं को शामिल किया जाए तो हिंदी का संख्याबल और बढ़ेगा।

वर्ष 2022 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने सभी कामकाज और जरूरी संदेश हिंदी भाषा में भी करने का निर्णय लिया। विश्व के हर कोने में भारतीय बसे हैं। जहां भी भारतीय बसे हैं, वहां पर हिंदी है। राजा रामपाल सिंह ने 1883 ई. में इंग्लैंड से हिंदोस्थान नामक त्रैमासिक पत्रिका निकाली, इसमें अंग्रेजी, हिंदी तथा उर्दू तीनों भाषाओं में लेख छपते थे। आज भारत से बाहर के देशों में प्रतिदिन लगभग 35 हिंदी पत्रिकाएँ और समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं। दुनिया के शीर्ष 10 सबसे अधिक पढ़े जाने वाले समाचार पत्रों में से छह हिंदी में प्रकाशित होते हैं। दुनिया भर के 250-260 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी को एक भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है। लगभग 28,000 लोग विदेश में हिंदी शिक्षण या भाषा के पाठ्यक्रम पढ़ा रहे हैं। 21 वीं सदी तकनीकी एवं सूचना क्रांति का युग है। इस बात को मानने में गुरेज नहीं होना चाहिए, हिंदी भाषा में तकनीक का विकास एवं प्रयोग कम हुआ है। दुनिया का पहला हिंदी टाइपराइटर 1930 के दशक में बनाया गया था किंतु 20 सदी के अंत तक इस क्षेत्र में उस तीव्रता से काम नहीं हुआ। ।

इक्कीसवीं सदी में हिंदी में नए तकनीकों का आगमन उसे सरल बनाने के साथ -साथ प्रचलित भी कर रहा है। बाजार के दबाव में मोबाइल, कम्प्यूटर, व्यापार में भी हिन्दी का प्रचार-प्रसार हो रहा है। देश के अहिन्दी भाषियों तथा विदेश में हिन्दी की लोकप्रियता का एक सशक्त माध्यम हिन्दी फिल्में, सीरियल एवं ओ टी टी प्लेटफॉर्म भी रहे हैं। सोशल मीडिया भी हिंदी के प्रसार में मदद कर रहा है। मोबाइल क्रांति एवं विज्ञान एवं तकनीक के सहारे पूरी दुनिया वैश्विक बाजार बन चुकी है।

हिंदी अब विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है, जिसका कारण हिंदी भाषा का लचीलापन है। अनुकूलन की क्षमता के कारण यह सभी भाषाओं के शब्दों को अपने अंदर समेट लेती है। विश्व की लगभग हर संभव ध्वनि को वर्णमाला के प्रयोग से हिंदी में लिखा जा सकता है। यह लिंक भाषा है और लोगों के बीच भावात्मक संबंध स्थापित करती है। हिन्दी के वैश्विक भाषा बनने की यात्रा में कई विदेशी भाषाविद का अमूल्य योगदान है। हिन्दी भाषा का पहला व्याकरण एक डच विद्वान केटलर ने लिखा एवं हिन्दी साहित्य का इतिहास पहली बार फ्रांसीसी विद्वान गार्सां द तासी एवं बुनियादी हिन्दी शिक्षण विधि की पाठ्य-पुस्तक की रचना जॉन गिलक्राइस्ट ने की थी। हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं का सर्वेक्षण अंग्रेज़ सर जॉर्ज एब्राहम ग्रियसन ने किया था। हिन्दी का पहला शोध पत्र ‘द थियोलॉजी ऑफ़ तुलसीदास’ अंग्रेज़ शोधकर्ता जे. आर. कार्पेंटर ने लंदन यूनिवर्सिटी में प्रस्तुत किया था। सहजता और सरलता हिंदी की लोकप्रियता का आधार है, और इसी से यह तकनीकी भाषा के रूप में स्वीकृत होती जा रही है। वैश्विक पटल पर हिंदी संपर्क, प्रचार के साथ वैश्विक बाजार की भाषा बनती जा रही है। अमेरिका की भाषा नीति में दस नई विदेशी भाषाओं को जोड़ा गया है, जिनमें हिंदी भाषा भी शामिल है। मॉरीशस एवं ब्रिटेन में भी हिंदी का वर्चस्व बढ़ा है। हिंदी आज राष्ट्रभाषा, राजभाषा, संपर्क भाषा ही नहीं, बल्कि बाजार की भाषा भी है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यावसायिक भाषाओं (वाणिज्यिक और विपणन सामग्री) में हिंदी दस सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली भाषाओं की सूची में है।

भूमंडलीकरण के पश्चात उपभोक्तावादी संस्कृति ने विज्ञापनों को जन्म दिया जिससे न केवल हिंदी का अनुप्रयोग बढ़ा, बल्कि युवाओं को रोजगार के नये अवसर भी मिले। बढ़ते वैश्विक महत्त्व के साथ-साथ हिंदी भाषा के क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में भी जबर्दस्त प्रगति हुई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी को स्थापित करने में अनुवाद और अनुवादकों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हिंदी की लोकप्रियता हर साल 94 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है क्योंकि यह उन सात भाषाओं में से एक है जिनका उपयोग वेब एड्रेस बनाने के लिए किया जाता है। गूगल पर हिंदी में 10 करोड़ पेज हैं। वेब, विज्ञापन, सिनेमा और बाजार के क्षेत्र में हिंदी की मांग जिस तेजी से बढ़ी है, वैसी किसी और भाषा में नहीं। विज्ञान एवं तकनीक के रोजमर्रा के काम में उपयोग के बाद, अनुवाद प्रौद्योगिकी, गूगल, नेटिफ्लक्स, अमेजन, हिंदी में लोकलाइजेशन के साथ ग्रामीण क्षेत्र में भी बैंकिंग, जनसंपर्क, विज्ञापन में हिंदी भाषियों के लिए रोजगार के अवसर बनेंगे।

नि:संदेह, हिंदी के प्रति देश-विदेश में रुख बदला है। संसद से सड़क तक हिंदी का उपयोग बढ़ा है, नई शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं के महत्त्व पर अधिक जोर दिया गया है। आवश्यकता इस बात की है कि हिंदी भाषाविद् विधि, विज्ञान, वाणिज्य तथा नवीनतम तकनीक के क्षेत्र में पठन सामग्री उपलब्ध कराएं जिससे दूसरी भाषाओं की पुस्तकों पर निर्भर न रहना पड़े। दृढ़ इच्छाशक्ति और सम्मिलित प्रयास से ही यह संभव हो पाएगा। यही प्रयास हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की सातवीं आधिकारिक भाषा बनाने में भी अपेक्षित है। हिंदी अब वैश्विक स्तर पर और तेजी से स्वीकार्य हो रही है।

तक पहुंचाया जा सकता है बशर्ते हम उसका उपयोग सम्मान के साथ करें। हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ग्राह्य बनाने के लिए उसे पारंपरिक व्याकरण के दबाव से मुक्त करना होगा। हिंदी भाषा को भावी भाषा बनाना हिंदी भाषियों और अंतर्राष्ट्रीय हिंदी दिवस का लक्ष्य होना चाहिए। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि पहले भारतवासी उसे हर क्षेत्र में प्रयोग में लाएं तभी वह जन भाषा से विश्व भाषा बन पाएगी। रोजगारपरकता, व्यावसायिकता, लोकप्रियता जैसी तमाम विशेषताओं को समेटे हिंदी वैश्विक परिप्रेक्ष्य में नई ऊंचाई की तरफ कदम बढ़ा रही है।

 (लेखक हिंदी की व्याख्याता हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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