प्रभात कुमार रॉय का लेख : चीनी अवसर का फायदा उठाए भारत
चीन के विदेश मंत्री वांग यी बिना किसी पूर्व निश्चित कार्यक्रम के भारत की यात्रा पर आ गए। उनकी इस यात्रा के कई कूटनीितक आयाम हाे सकते हैं। उनकी यह यात्रा ऐसे समय में हुई है जब रूस और यूक्रेन का युद्ध चल रहा है। इस युद्ध को लेकर करीब सारी दुनिया के देश दो भागों में बंट चुके हैं, लेकिन भारत और चीन तटस्थ बने हुए हैं। एक अन्य आयाम तो जगजाहिर है कि दोनों देशों में जारी सीमा विवाद। इसका हल निकालने को वांग यी प्रयासरत रहे हैं। चीन सरकार भारत से अपने व्यवहार को संभवतया बदलना करना चाहती है, तभी तो बिना औपचारिक निमंत्रण के वांग यी भारत आ पहुंचे। पाक के प्रति अंध समर्थन की रणनीति का भी चीन सरकार को परित्याग करना होगा।;
प्रभात कुमार रॉय
चीन के विदेश मंत्री वांग यी वस्तुतः बिना किसी पूर्व निश्चित कार्यक्रम के भारत की कूटनीतिक यात्रा पर आ गए। विदेश मंत्री वांग यी द्वारा आकस्मिक तौर पर अंजाम दी गई इस कूटनीतिक यात्रा के अनेक आयाम हैं। एक आयाम तो जगजाहिर है कि भारत और चीन के मध्य जारी सीमा विवाद का निदान निकालने की खातिर वांग यी निरंतर प्रयासरत रहे हैं। एक अन्य कूटनीतिक आयाम और भी है, जोकि यूक्रेन बनाम रूस युद्ध से सीधे तौर पर संबद्ध है। भारत और चीन दोनों देशों के ही रूस के साथ अत्यंत घनिष्ठ रणनीतिक ताल्लुकात कायम रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र परिषद में रूस को आक्रमणकारी देश घोषित करने प्रस्ताव के मतदान पर दोनों देशों ही मतदान का बहिष्कार करके बाकायदा तटस्थ बने रहे। यूक्रेन बनाम रूस युद्ध के दौर में दो खेमों के मध्य तकरीबन विभाजित हो चुकी दुनिया में भारत और चीन सरीखी शक्तियों को आखिरकार क्या किरदार निभाना चाहिए? चीन की कूटनीति और रणनीति में अमेरिका वस्तुतः शत्रु सैन्य शक्तियां हैं और रूस एक मित्र सैन्य शक्ति है। भारत के लिए तो रूस और अमेरिका दोनों ही मित्रवत सैन्य शक्तियां हैं। चीन के स्पष्ट कूटनीतिक प्रयास हैं कि भारत खुलकर अमेरिका के सैन्य खेमे में कदापि शामिल ना होने पाए और कम से कम तटस्थ देश बना रहे। चीन और रूस तो मिलकर एक सैन्य खेमे की कयादत कर ही रहे हैं। चीन की हुकूमत इसी कारणवश भारत के साथ अपना सीमा विवाद को यथा शीघ्र निपटा लेने की कोशिश कर रही है, ताकि शत्रुतापूर्ण कटुता का अंत हो सके। भारत भी चीन से कोई सैन्य टकराव नहीं चाहता और सीमा विवादों को बातचीत द्वारा निपटाना चाहता है।
लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जारी सीमा विवाद के कारण जून 2020 को अंजाम दिए गए सैन्य टकराव के पश्चात वांग यी की यह प्रथम भारत यात्रा रही। विदेश मंत्री वांग यी शुक्रवार 25 मार्च को भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ कूटनीतिक बातचीत की। इस कूटनीतिक वार्ता से उम्मीद परवान चढ़ी है कि संभवतया भारत-चीन सीमा-विवाद का कोई समुचित निदान निकल कर सामने आएगा। हालांकि इस शिखर कूटनीतिक वार्ता से पहले भी भारत और चीन के मध्य कूटनीतिक वार्ताओं के पंद्रह दौर बाकायदा संपन्न हो चुके हैं। विदेश मंत्री वांग यी भारत में पहुंचने से पहले पाकिस्तान की दौरा करके आए हैं। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में वांग यी द्वारा इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) की मीटिंग में शिरकत की गई। ओआईसी की मीटिंग में वांग यी ने कश्मीर विवाद पर एक अत्यंत आपत्तिजनक बयान भी दिया था। ओआईसी की मीटिंग में पाकिस्तान द्वारा कश्मीर का मसला उठाया गया। ओआईसी मीटिंग में पाक प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी तक़रीर में कहा कि 57 इस्लामिक मुल्कों का संगठन ओआईसी मुसलमानों से संबद्ध कश्मीर और फलस्तीन जैसे संवेदनशील मुद्दों पर विभाजित बना रहा है। ओआईसी मुल्क एकजुट होकर कश्मीर और फलस्तीन के अवाम की लड़ाई में उनका साथ नहीं निभा सके हैं। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने अपने भाषण में कहा था, 'कश्मीर पर आज हमने फिर से कई इस्लामिक दोस्तों की बातों को सुना। इस मुद्दे पर चीन को भी वही उम्मीदें हैं, जो इन देशों को हैं।' ओआईसी मीटिंग में वांग यी का आपत्तिजनक भाषण होते ही भारत ने त्वरित कूटनीतिक प्रतिक्रिया दी। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची बोले, 'ओआईसी के अपने भाषण के दौरान चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भारत का जो उल्लेख किया, वह एकदम आपत्तिजनक और अनावश्यक था। भारत सरकार वांग यी के इस बयान को पूरी तरह खारिज करती है। केंद्र शासित कश्मीर से संबद्ध कोई भी मामला पूर्णतः देश का आंतरिक विषय है।
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के जानकार बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चीन सरीखी वैश्विक शक्ति से निपटने की भारत की रणनीति में बुनियादी परिवर्तन आया है। अब धैर्य और संयम के साथ दृढ़ता से सीधे सामना की रणनीति अख्त्यार की गई है, इसीलिए जब चीन ने जून-2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में सैन्य आक्रमण अंजाम दिया तो फिर भारत ने चीन को उसी की भाषा में कड़ा सैन्य प्रतिउत्तर प्रदान किया। दोनों देशों के बीच हुए सैन्य टकराव में भारत के 20 सैनिक शहीद हुए और चीन के तकरीबन 45 लाल सैनिक हलाक़ हुए। यह चीन के लिए विकट सैन्य झटका था। इस सैन्य झड़प के पश्चात चीन ने लद्दाख की सरहद पर तकरीबन पचास हजार लाल सेना तैनात कर दी गई। जवाब में भारत ने भी तकरीबन उतनी सेना सरहद पर तैनात की। दोनों देशों के सैन्य-कमांडरों स्तर के मध्य संपन्न हुई बातचीत के दौरान सहमति होने पर चीनी लाल सेना जिन-जिन विवादित स्थानों से जितनी संख्या में पीछे हटी है, उन्हीं-उन्हीं स्थानों पर से उतनी ही तादाद में भारत की सेना भी पीछे हटी है।
इस बीच चीन ने सितंबर 2020 और सितंबर 2021 के मध्य भारत और चीन के मध्य कूटनीतिक से बातचीत अंजाम दी गई। चीनी विदेश मंत्री वांग यी और भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर के मध्य मॉस्को और दुशानबे में कूटनीतिक वार्ता हुई थी। वांग यी ने कहा कि सीमा-विवाद किनारे रखकर द्विपक्षीय-व्यापार पर बात की जाए, लेकिन भारत ने चीन को दो-टूक जवाब दिया है कि पहले जब सीमा विवाद का बाकायदा निदान हो जाएगा, तभी फिर परस्पर व्यापार के विषय में वार्ता की जाएगी। चीन से इस वक्त भारत सरकार सख्त अंदाज में निपटने की कूटनीति और रणनीति पर चल रही है।
विश्व पटल पर एक सैन्य खेमे की कयादत करते हुए चीन की हुकूमत भारत के साथ अपने शत्रुतापूर्ण व्यवहार को संभवतया परिवर्तित करना चाहती है, तभी तो बिना किसी औपचारिक निमंत्रण के विदेश मंत्री वांग यी भारत आ पहुंचे हैं। पाकिस्तान के प्रति अपना अंध समर्थन करने की रणनीति का भी चीन की सरकार को परित्याग करना होगा। इसके साथ ही पाक के प्रति इसी अंध समर्थन करने की रणनीति के तहत ही वस्तुतः वांग यी का अत्यंत आपत्तिजनक बयान ओआईसी की मीटिंग के दौरान आया है। हिंदी-चीनी भाई-भाई की भावना और पंचशील के पवित्र सिद्धांत की पीठ में गहरा घाव करने वाली चीनी हुकूमत को अपने आचरण और व्यवहार में सिद्ध करना होगा कि भारत के प्रति उसका रणनीतिक और कूटनीतिक नजरिया बदल गया है, तभी कहीं जाकर खंडित हुआ विश्वास पुनः स्थापित हो सकेगा।
(लेखक विदेश मामलों के जानकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)