डॉ. एलएस यादव का लेख : 60 साल में भी नहीं सुधरे इंडो-चीन रिश्ते

हाल ही में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग को अगले पांच सालों के कार्यकाल के लिए लगातार तीसरी बार कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) का महासचिव चुन लिया गया। यह एक विशेष उपलब्धि है, क्योंकि शी चिनफिंग सीपीसी के संस्थापक माओत्से तुंग के बाद सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के ऐसे पहले नेता हैं जिन्हें राष्ट्रपति पद का लगातार तीसरा कार्यकाल प्राप्त हुआ है।1962 की लड़ाई के 60 साल पूरे हो गए हैं। इस अवधि में चीन से लगने वाली सीमा पर सामरिक चुनौतियां बढ़ गई हैं। इन 60 वर्षों में दोनों देशों के सम्बन्धों में कोई खास प्रगति नहीं हुई और न ही सीमा विवाद को सुलझाने में चीन की रुचि है। आगे क्या होगा भविष्य में पता चलेगा।;

Update: 2022-11-04 07:48 GMT

डॉ. एलएस यादव

अभी हाल ही में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग को अगले पांच सालों के कार्यकाल के लिए लगातार तीसरी बार कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) का महासचिव चुन लिया गया। यह एक विशेष उपलब्धि है, क्योंकि शी चिनफिंग सीपीसी के संस्थापक माओत्से तुंग के बाद सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के ऐसे पहले नेता हैं जिन्हें राष्ट्रपति पद का लगातार तीसरा कार्यकाल प्राप्त हुआ है। उनकी इस सफलता के बाद यह आशंका जताई जा रही है कि श्ाी चिनफिंग अब जीवनभर चीन की सत्ता पर काबिज रहेंगे। यह स्थिति भारत के लिए हमेशा चिन्तनीय बनी रहेगी, क्योंकि उनकी जो नीतियां हैं वे भारत के लिए ठीक नहीं रहीं हैं। उनके ही कार्यकाल में मई 2020 से सीमा पर तनाव बरकरार है।

सन 1962 की लड़ाई के 60 साल पूरे हो गए हैं। इस अवधि में चीन से लगने वाली सीमा पर सामरिक चुनौतियां बढ़ गई हैं। तिब्बत में उसके सैन्य तंत्र में काफी इजाफा हुआ है। यहां पर चीन पहले के आठ डिविजनों की तुलना में 3 दर्जन डिविजनों को बनाए रखने की स्थिति में है। इस इलाके में हवाई लड़ाकू विमानों व मिसाइलों के अड्डों की संख्या काफी बढ़ाई जा चुकी है। इन सभी अड्डों पर सेना की समस्त जरूरतों वाली लाॅजिस्टिक क्षमताएं स्थापित की जा चुकी हैं। चीन तिब्बत में दुनिया के सबसे ऊंचे स्थान पर हवाई अड्डे का निर्माण कर चुका है, जो रणनीतिक दृष्िट से विशेष हवाई अड्डा है। पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील के पास चीनी सेना अपनी छावनी को मजबूत कर रही है। चीनी सैनिक गतिरोध के बाद जब यहां से पीछे हटे तो वे रुटोग काउंटी में मौजूद अपनी छावनी में गए थे। चीनी सेना इसी छावनी में लॉजिस्टिक सपोर्ट बेस बढ़ा रही है। यहां पर 85 से ज्यादा शेल्टर तैयार कर लिए हैं। चीनी सेना ने इसे 2019 के बाद विकसित करना शुरू किया था। यहां 250 से ज्यादा अस्थाई शेल्टर भी हैं।

1962 के युद्ध के बाद से दुनिया बहुत बदल चुकी है, लेकिन चीन जिस तरह की कूटनीतिक चालें चलता है उससे भारत को अपनी सुरक्षा के लिए सतर्क रहना होगा। दूसरा आपसी सम्बन्ध बेहतर बनाने व विवादित मुद्दों को हल करने के लिए चीन कितना गंभीर है, इसलिए बीते 60 वर्षों के भारत-चीन सम्बन्धों पर चिन्तन एवं मनन की जरूरत है। 1962 की लड़ाई के बाद वर्ष 1965 तक चीन के रुख में कोई बदलाव नहीं आया। इसी वर्ष जब भारत ने पाकिस्तान को लड़ाई में शिकस्त दी तो चीन की समझ में आ गया कि भारत के साथ सीधी लड़ाई में कोई फायदा नहीं होगा और सम्बन्ध सामान्य बनाने की प्रक्रिया शुरू की, लेकिन 1967 में चीन ने नाथुला पोस्ट पर गोलीबारी करके अतिक्रमण करने का प्रयास किया जिसका मुंहतोड़ जवाब 2 ग्रेनेडियर्स के जवानों ने दिया इससे चीन को कड़ा सन्देश मिला।

सन 1971 में सम्बन्ध सुधारने के प्रयासों के तहत भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ में चीन का समर्थन किया। जुलाई 1976 में कूटनीतिक सम्बन्ध बहाल हुए और राजदूतों ने एक दूसरे के देश की यात्रा की। 1978 में दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल एक दूसरे के यहां गए और न्यूयार्क में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने मुलाकात की। फरवरी 1979 में विदेश मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी चीन की यात्रा पर गए। जून 1981 में चीन के विदेश मंत्री हुआंगहू ने भारत यात्रा की। वर्ष 1986 में चीन ने बीजिंग में वार्ता करने का नाटक किया और दूसरी तरफ समुदोरोंग चू घाटी में अतिक्रमण का प्रयास किया, लेकिन सेनाध्यक्ष के.सुन्दरजी ने करारा जवाब दिया जिससे चीन को पीछे हटना पड़ा। 19 दिसम्बर 1988 को प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन गए जिसमें सीमा विवाद का हल निकालने के लिए एक कार्यदल बना। वर्ष 1990 में चीनी राष्ट्रपति भारत आए और दिसम्बर 1991 में चीन के प्रधानमंत्री ली पेंग ने भारत की यात्रा की।

1992 में तत्कालीन रक्षा मंत्री शरद पवार और राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन द्वारा चीन की यात्राएं की गईं जिनमें सीमा विवाद पर वार्ता हुई। सितम्बर 1993 में प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव की चीन यात्रा हुई और 7 सितम्बर को दोनों देशों के बीच सीमा विवाद हल होने तक वास्तविक नियन्त्रण रेखा पर शान्ति बनाए रखे जाने, एक दूसरे के साथ बल प्रयोग नहीं करने, अपने-अपने सैनिक अभ्यासों की पूर्व सूचना देने, वायु सीमा का उल्लंघन न करने, व्यापार, पर्यावरण संरक्षण तथा रेडियो व टेलीविजन के मुद्दों पर समझौता हुआ। 29 नवम्बर 1996 को चीन के राष्ट्रपति जियांग झेमीन भारत की सद्भावना यात्रा पर आए। 1997 में दोनों देशों के मध्य सीमा सुरक्षा, नियन्त्रण रेखा व सैन्य मुद्दों पर विश्वास बढ़ाने की सहमति बनी। मई-जून 2000 में भारतीय राष्ट्रपति केआर नारायणन चीन की यात्रा पर गए। 13 जनवरी 2002 को चीन के प्रधानमंत्री झू रोंगजी भारत आए। 21 मार्च 2002 को दोनों देशों के बीच वास्तविक नियन्त्रण रेखा विवाद निपटाने की सहमति बनी। एक अप्रैल 2003 को रक्षामंत्री जार्ज फर्नान्डीज चीन गए और विभिन्न मुद्दों सहित सीमा विवाद पर बातचीत की। 31 मई 2003 को भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ सेन्ट पीटर्सबर्ग में मिले। 22 जून 2003 को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चीन गए और सीमा विवाद पर बातचीत को आगे बढ़ाने पर जोर दिया, लेकिन 26 जून को चीनी सेना ने अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ की जिससे सम्बन्धों में तनावपूर्ण हो गए। 11 अप्रैल 2005 को चीनी प्रधानमंत्री बेन जियाबाओ भारत आए और डॉ. मनमोहन सिंह से मुलाकात की। इस यात्रा में 12 समझौतों पर सहमति कायम हुई।

13 जनवरी 2008 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चीन के दौरे पर गए। 21 जून 2009 को चीन के हेलीकाप्टरों ने चूमार क्षेत्र में वास्तविक नियन्त्रण रेखा लांघकर दूषित खाद्य सामग्री गिराई। 31 जुलाई 2009 को चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा में डेढ़ किलोमीटर अन्दर घुसकर कई चट्टानों पर चाइना व चीन-9 लिख दिया। इसके बाद अक्टूबर 2009 में दक्षिण पूर्वी लद्दाख के देमचोक क्षेत्र में एक सड़क के निर्माण में उसने आपत्ति उठाई। अक्टूबर 2009 में ही चीन ने कश्मीर की विवादित भूमि को अलग देश के रूप में दिखाया। इन घटनाओं से सम्बन्ध बिगड़ गए। वर्श 2010 में चीन ने भारतीय सीमा के कई स्थानों पर अतिक्रमण व घुसपैठ की। 2010 में ही जनवरी से जून माह तक सिक्किम से लगती फिंगर एरिया में चीनी सेना ने 65 बार नियन्त्रण रेखा पार करने का प्रयास किया। उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि 1962 के बाद के 60 वर्षों में दोनों देशों के सम्बन्धों में कोई खास प्रगति नहीं हुई और न ही सीमा विवाद को सुलझाने में चीन की रूचि है। आगे क्या होगा भविष्य में पता चलेगा।

( लेखक सैन्य विज्ञान विशेषज्ञ हैं, ये उनके अपने विचार हैं। )

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