विवेक शुक्ला का लेख: सदैव जिंदा रहेंगे इरफान

इरफान खान को साल 2012 में 60वां राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार फिल्म पान सिंह तोमर में अभिनय के लिए दिया गया था। वह उनके करियर के श्रेष्ठतम फिल्मों से एक थी। कुछ एक्टर ऐसे होते हैं कि चरित्र में इतना घुसकर एक्टिंग करते हैं कि लगता है कि हिलाकर रख देंगे। इरफान खान उन गिने-चुने कलाकारों में थे। उनकी मृत्यु पर पूरे देश में शोक का माहौल है। वे अपनी फिल्मों के माध्यम से सदैव अपने चाहने वालों के बीच जिंदा रहेंगे।;

Update: 2020-04-30 02:24 GMT

बेहतरीन धावक से दस्यु बने पान सिंह तोमर के जीवन पर बनी फिल्म की शूटिंग से पहले इरफान खान सन 2009 में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुछ दूरी पर स्थित करनैल सिंह स्टेडियम आए थे। उनके साथ फिल्म के डायरेक्टर तिग्मांशु धूलिया भी थे। इरफान खान करीब पौना घंटा 1954 में बने करनैल सिंह स्टेडियम में ठहरे। उसके चक्कर लगाए। क्या आप जानना चाहेंगे कि वे क्यों स्टेडियम आए थे? दरअसल इसी स्टेडियम में पान सिंह तोमर ने 1964 में राष्ट्रीय स्टीपलचेज स्पर्धा का रिकार्ड स्थापित किया था। एक तरह वे उस स्थान को देखना चाहते थे जिधर पान सिंह तोमर अपने धावक जीवन के शिखर पर पहुंचे थे। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वे अपने किरदार को कितना जीवंत बनाने की चेष्टा करते थे। पुरानी दिल्ली वाले करनैल सिंह स्टेडियम को पहाड़गंज स्टेडियम भी कहते हैं। इरफान ख़ान कभी क्रिकेट बनना चाहते थे। इधर आकर उन्हें वह दौर जरूर याद आया होगा जब वे क्रिकेटर बनना चाह रहे थे। हालांकि, इस पर उनके पिता राजी नहीं हुए। इसके बाद उन्होंने नेशलन स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन लिया। इरफान खान को साल 2012 में 60वां राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार फिल्म पान सिंह तोमर में अभिनय के लिए दिया गया था। वह उनके करियर के श्रेष्ठतम फिल्मों से एक थी।

कुछ एक्टर ऐसे होते हैं कि चरित्र में इतना घुसकर एक्टिंग करते हैं कि लगता है कि हिलाकर रख देंगे। इरफान खान उन गिने-चुने कलाकारों में थे। उनकी मृत्यु पर जिस तरह का देश में शोक का माहौल बना है ऐसा ही दु:ख उस समय की अभिनेत्री स्मिता पाटिल के न रहने पर महसूस हुआ था।

इस बीच, साउथ दिल्ली के चितरंजन पार्क के बी- ब्लॉक के उस घर की कोई भी दुआ बॉलीवुड के मशहूर एक्टर इरफान खान को नहीं लगी। न केवल इरफान खान की पत्नी सुतापा सिकदर के मायके में, बल्कि चितरंजन पार्क के तमाम लोग अपने जमाई बाबू के सेहतमंद होने की बड़ी शिद्दत के साथ कामना कर रहे थे। उन्हें यहां के लोग जमाई बाबू कहते थे। इरफान खान ने सुतापा सिकदर से 1994 में कोर्ट मैरिज की थी। उसके बाद वे यहां लगातार आते-जाते रहते थे। दोनों नेशनल स्कूल आफ ड्रामा के छात्र थे। उसी दौरान दोनों में घनिष्ठ संबंध स्थापित हो गए थे। इरफान खान कई बार कहते थे कि वे और सुतापा क्लासेज खत्म होने के बाद बंगाली मार्किट और श्रीराम सेंटर में चाय पीने रोज पहुंचते थे। इरफान खान ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत इंटरनेशल फिल्म से की थी। उनकी पहली फ़िल्म सलाम बॉम्बे को ऑस्कर के लिए नॉमिनेशन भी मिला था। उस समय इरफान खान एनएसडी में अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे।

इरफान खान अपने चितरंजन पार्क स्थित ससुराल में कभी हीरो बनकर नहीं आए। मतलब वे उसी तरह से यहां आए जैसे एनएसडी में पढ़ते हुए आया करते थे। वे आठ-नौ साल पहले तक तो यहां की दुर्गा पूजा में भी एक दिन तो अवश्य आ जाया करते थे, पत्नी सुतापा सिकदर के साथ। पर बाद में काम के बढने के बाद उनका चितरंजन पार्क आना कम होता गया। चितरंजन पार्क में सुतापा सिकदर के पड़ोसी और हिन्दुस्तान फुटबॉल क्लब के अध्यक्ष डीके बोस ने बताया कि सुतापा सिकदर के पिता पूर्व पाकिस्तान के शरणार्थी थे। उन्हें यहां पर 1970 में 160 गज का प्लॉट आवंटित हुआ था। अब उस घर में सुतापा के भाई सपरिवार रहते हैं। सुतापा एंड्रूजगंज के केन्द्रीय विद्यालय की स्टुडेंट थी। दिल्ली के बंगालियों के स्वर्ग चितरंजन पार्क में ढाका, खुलना, मेमनसिंह, चटगांव जैसे शहरों से आए शरणार्थियों को प्लाट दिए गए थे।

इरफान खान ने मकबूल, हासिल, द नेमसेक, रोग जैसी फिल्मों मे अपने अभिनय का लोहा मनवाया। हासिल फिल्म के लिए उन्हे वर्ष 2004 का फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। उन्होंने हॉलीवुड की ए माइटी हार्ट, स्लमडॉग मिलियनेयर, लाइफ ऑफ पाई और द अमेजिंग स्पाइडर मैन फिल्मों मे भी काम किया था। 2011 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया। 2017 में बनी हिंदी मीडियम फिल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता चुना गया।

बेशक, इरफान खान को हिन्दी फिल्मों के सबसे इटेंस और उम्दा कलाकारों के रूप में याद रखा जाएगा। इरफान ज़िंदगी के आखिरी समय तक लड़ते रहे। इरफान लड़े और बहुत लड़े। इरफान खान बहुआयामी कलाकार थे। उनके निधन की खबर सुनकर सारा देश स्तब्ध रह गया। इरफान की आखिरी फिल्म अंग्रेजी मीडियम बनी। यह फिल्म इस साल लॉकडाउन से पहले सिनेमाघरों में उतरी। बीमारी की वजह से इरफान इस फिल्म की प्रमोशन में भी शामिल नहीं हुए। अगर बात उनके फिल्मी सफर से हटकर करे तो उनका संबंध राजस्थान के टोंक रियासत के राज परिवार से था। राजस्थान में टोंक अकेली मुस्लिम रियासत थी। इरफान खान का पूरा नाम साहबजादे इरफान अली खान था। पर उन्होंने अपने नाम को छोटा कर लिया था। हालांकि वे जमीन के आदमी रहे। उन्होंने कभी अपने को राजे-रजवाड़ों से जोड़कर नहीं देखा। वे अपनी फिल्मों के माध्यम से सदैव अपने चाहने वालों के बीच जिंदा रहेंगे।

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