संपादकीय लेख : विभाजनकारी बयान देने वालों को रोकना जरूरी
किसी धर्म संसद में धर्म के गुण के विपरीत बात नहीं होनी चाहिए। खुद को संत कहने वालों को भारतीय संत के गुण के अनुरूप ही आचरण करना चाहिए। उत्तराखंड के हरिद्वार में 17 से 19 दिसंबर को आयोजित धर्म संसद में जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी की ओर से कथित रूप से मुसलानों के ख़िलाफ़ नफ़रत भरी बातों का कोई भी समर्थन नहीं करेगा। कुछ ही माह बाद पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले किसी धर्म संसद में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर कथित रूप से असम्मानजनक भाषा का इस्तेमाल संतों की गरिमा के अनुरूप नहीं है।;
Haribhoomi Editorial : किसी धर्म संसद में धर्म के गुण के विपरीत बात नहीं होनी चाहिए। खुद को संत कहने वालों को भारतीय संत के गुण के अनुरूप ही आचरण करना चाहिए। उत्तराखंड के हरिद्वार में 17 से 19 दिसंबर को आयोजित धर्म संसद में जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी की ओर से कथित रूप से मुसलानों के ख़िलाफ़ नफ़रत भरी बातों का कोई भी समर्थन नहीं करेगा। कुछ ही माह बाद पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले किसी धर्म संसद में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर कथित रूप से असम्मानजनक भाषा का इस्तेमाल संतों की गरिमा के अनुरूप नहीं है। भारत सरकार को चाहिए कि विभाजनकारी भाषण या बयान देने वालों के प्रति सख्त रवैया अपनाए। एक मजबूत व अखंड राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बनाए रखने के लिए किसी समुदाय विशेष के प्रति हेट स्पीच या विभाजनकारी बयान देने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए। कोई भी धर्म हो, वह हमें सहिष्णु होना सीखाता है, मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना। तो फिर किसी धर्म संसद से अधार्मिक बातें नहीं निकलनी चाहिए।
भारत वह देश है जहां, किसी भी मुस्लिम राष्ट्र से अधिक मुसलमान रहते हैं। इसलिए पाकिस्तान के मीडिया को तो भारत को नसीहत देने का हक ही नहीं है, जो राष्ट्र खुद इस्लामिक हो, धर्मनिरपेक्ष नहीं हो, जहां अल्पसंख्यकों के प्रति अमानवीय व्यवहार किया जाता हो, मंदिर तोड़े जाते हो, जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता हो, वो भला किस मुंह से भारत पर तंज कस सकता है? भारत की संस्कृति सभी समुदायों की साझी विरासत से निर्मित है। इसे खंडित करना, इसे कमजोर करना, समुदायों के बीच अविश्वास पैदा करना आदि की वजह से भारत एक राष्ट्र के रूप में कमजोर ही होगा। संतों को यह बात समझनी चाहिए। देश संविधान से चल रहा है। सत्ता में रहते हुए भाजपा की सरकार ने कभी किसी से मजहब के आधार पर विभेद नहीं किया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हमेशा भारतीयता की बात की है, सर्वधर्म समभाव की बात की है, मुस्लिमों को भारत का अभिन्न अंग बताया है, पार्टी के तौर पर भी भाजपा ने हमेशा सबको साथ लेकर चलने की बात की है, भाजपा नीत सरकार की ओर से अल्पसंख्यकों के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं।
हर तरफ से साफ संदेश के बावजूद अगर किसी धर्म संसद में अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति नफरत वाली बातें की जाय तो यह निंदनीय है। किसी धर्म संसद में दिए किसी बयान को लेकर राजनीति करना भी ठीक नहीं है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जिस तरह भाजपा व केंद्र सरकार पर निशाना साधा है, वह इसलिए सही नहीं है कि भाजपा या केंद्र सरकार ने न ही ऐसा कोई बयान नहीं दिया है और न ही इनकी ओर से धर्म संसद का आयोजन किया गया था। राहुल गांधी पहले भी हिंदुत्व व हिंदू को लेकर बयान दिया, जो तर्कसंगत नहीं था। कांग्रेस अगर इसी तरह हिंदुत्व को लेकर अपरिपक्व बयान देते रहेंगे व भाजपा व केंद्र की मोदी सरकार पर आक्षेप लगाते रहेंगे, तो इससे नेता के तौर पर राहुल गांधी की विश्वसनीयता ही कम होगी। जैसे हिंदू भारत के नागरिक हैं, वैसे ही मुस्लिम समेत सभी अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी भारत के नागरिक हैं, देश पर सभी नागरिकों का समान हक है। एक समुदाय के लोग अगर दूसरे समुदाय के प्रति अनर्गल बात करेंगे तो अंतत: हमारा राष्ट्र ही कमजोर होगा। विभाजनकारी बयान देने वाले अपने राष्ट्र को ही नुकसान पहुंचाते हैं, ऐसे लोगों को रोका जाना जरूरी है।