Karnataka Crisis Reason : कर्नाटक में संकट के पीछे ये हैं मुख्य कारण

सवाल यह भी है कि क्या आम चुनाव नतीजों के बाद असमंजस से घिरे कांग्रेस नेतृत्व को इसकी परवाह है कि विभिन्न राज्यों में पार्टी में क्या हो रहा है? यह किसी से छिपा नहीं कि कई राज्यों में कांग्रेसी नेताओं के बीच जंग के हालात हैं।;

Update: 2019-07-14 18:30 GMT

अभी कर्नाटक सरकार का संकट तो चल ही रहा है, इसी बीच गोवा में कांग्रेस के विधायक टूटकर भाजपा में शामिल हो गए। इससे पहले तेलंगाना में पार्टी के 18 में से 12 विधायक सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति में शामिल हो गए थे। कर्नाटक में भी 13 विधायक इस्तीफा दे चुके हैं। शीर्ष नेतृत्व में दिशाहीनता के चलते पार्टी में इस्तीफों का दौर चल रहा है। कार्यकर्ता हताश और निराश हैं, जिसके चलते एक के बाद एक इस्तीफों से पार्टी को झटके लग रहे हैं।

जहां तक कर्नाटक का प्रश्न है, वहां अभी विधानसभा अध्यक्ष ने कांग्रेस के 13 और जेडीएस के तीन विधायकों का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। शुक्रवार को सर्वोच्च अदालत ने 16 जुलाई तक यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया है। यानी स्पीकर तब तक न तो बागी विधायकों के इस्तीफे पर फैसला लेंगे और न ही अयोग्यता के मसले पर। उधर मुख्यमंत्री कुमारस्वामी बहुमत साबित करने के लिए स्पीकर से समय की मांग कर रहे हैं। उनका ऐसा करना अपने आप में हास्यास्पद है।

16 विधायकों के इस्तीफे के बाद उनकी सरकार अल्पमत में है। होना तो यह चाहिए था कि वे खुद इस्तीफा देते, लेकिन वे कुर्सी का मोह छोड़ नहीं पा रहे हैं। अगर देखा जाए तो कुमारस्वामी सरकार का गठन ही लोकतंत्र की मर्यादाओं के खिलाफ था। कर्नाटक की जनता ने विधानसभा चुनाव में भाजपा को जनादेश दिया था, लेकिन सत्ता के लिए धुरविरोधी कांग्रेस और जेडीएस ने सांठगांठ करके सरकार बना ली। जनता ने कांग्रेस को नकार दिया था। उसके विधायकों की संख्या 122 से घटकर 78 रह गई।

वहीं जनता दल (एस) के विधायक भी 40 के स्थान पर 38 हो गए। वहीं भारतीय जनता पार्टी के विधायकों की संख्या 40 से बढ़कर 104 हो गई। यानी उसने 64 सीटें ज्यादा जीतने में सफलता पाई। इससे साफ है कि कर्नाटक की जनता की पहली पसंद भारतीय जनता पार्टी थी। चूंकि भाजपा बहुमत से 8 सीटें दूर रह गई तो उसे रोकने के लिए कांग्रेस और जेडीएस ने हाथ मिला लिया और जनता द्वारा नकारे जाने के बावजूद सत्ता पर काबिज हो गए।

इस गठबंधन से न केवल लोकतंत्र की मर्यादाएं तार-तार हुईं, बल्कि जनादेश को भी ठेंगा दिखा दिया गया। अब जबकि कुमारस्वामी सरकार अल्पमत में आ चुकी है, लेकिन वो किसी तरह से कुर्सी से चिपके रहना चाहते हैं। उधर, कांग्रेस अपने विधायकों के इस्तीफे के लिए भाजपा पर दोषारोपण करने में जुटी है। जाहिर है कि कांग्रेस को भाजपा से तमाम शिकायतें होंगी, लेकिन इस सवाल का जवाब तो उसे ही देना होगा कि आखिर उसके विधायक एकजुट क्यों नहीं रह सके?

सवाल यह भी है कि क्या आम चुनाव नतीजों के बाद असमंजस से घिरे कांग्रेस नेतृत्व को इसकी परवाह है कि विभिन्न राज्यों में पार्टी में क्या हो रहा है? यह किसी से छिपा नहीं कि कई राज्यों में कांग्रेसी नेताओं के बीच जंग के हालात हैं। कहीं-कहीं तो पार्टी नेता आपस में हाथापाई तक कर चुके हैं। कर्नाटक में संकट के पीछे भी कांग्रेसी नेताओं की कलह ही जिम्मेदार है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कर्नाटक का राजनीतिक संकट तो सुलझ जाएगा, क्योंकि बागी विधायक इस्तीफा देने पर अडिग हैं।

यह हास्यास्पद है कि जब वे दावा कर रहे हैं कि किसी दबाव या लालच में इस्तीफा नहीं दिया है तब कांग्रेस नेता यह साबित करने की कोशिश में हैं कि उन्होंने भाजपा के दबाव में इस्तीफा दिया है। कैसी विडंबना है कि इतना सब होने के बाद भी कांग्रेस अपना घर संभालने की बजाय भाजपा पर निशाना साध रही है।

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