डॉ. जयंतीलाल भंडारी : बहुपक्षीय करार से उभरते अवसर
अमेरिका की अगुवाई में 24 मई को बनाए गए भारत सहित 14 देशों के संगठन हिंद-प्रशांत आर्थिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) के सदस्य देशों की 11 जून को पेरिस में आयोजित हुई अनौपचारिक बैठक के बाद इसके सदस्य देशों के साथ भारत से निर्यात बढ़ने और विदेश व्यापार को नई गतिशीलता मिलने की संभावनाएं उभरकर दिखाई दी हैं। वस्तुतः आईपीईएफ पहला बहुपक्षीय करार है जिसमें भारत शामिल हुआ है। भारत के लिए बिम्सटेक देशों के साथ व्यापार की नई संभावनाएं उभरकर दिखाई दे रही हैं। देश में आर्थिक सुधारों को तेजी से क्रियान्वयन की डगर पर आगे बढ़ाया जाएगा।;
डॉ. जयंतीलाल भंडारी
यद्यपि इस समय वैश्विक मंदी की लहर का भारत की अर्थव्यवस्था पर भी असर हो रहा है, सेंसेक्स और डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में बड़ी गिरावट और ब्याज की बढ़ती दरों व पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के कारण महंगाई का बढ़ा हुआ ग्राफ दिखाई दे रहा है, किन्तु इन आर्थिक और वित्तीय चुनौतियों के बीच भी भारत के लिए विदेश व्यापार का अनुकूल परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है। इस समय विकसित, विकासशील और पड़ोसी देशों के साथ भारत के विदेश व्यापार नए समझौतों और व्यापार वार्ताओं का नया अध्याय लिखा जा रहा है। हाल ही में दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन आसियान के विदेश मंत्रियों ने नई दिल्ली में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ विशेष बैठक में विदेश व्यापार में वृद्धि का बड़ा एजेंडा तैयार किया है।
गौरतलब है कि अमेरिका की अगुवाई में 24 मई को बनाए गए भारत सहित 14 देशों के संगठन हिंद-प्रशांत आर्थिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) के सदस्य देशों की 11 जून को पेरिस में आयोजित हुई अनौपचारिक बैठक के बाद इसके सदस्य देशों के साथ भारत से निर्यात बढ़ने और विदेश व्यापार को नई गतिशीलता मिलने की संभावनाएं उभरकर दिखाई दी हैं। वस्तुतः आईपीईएफ पहला बहुपक्षीय करार है जिसमें भारत शामिल हुआ है। इसमें अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया ब्रुनेई, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम और फिजी शामिल हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि 10 जून को अमेरिका में भारत के राजदूत तरनजीत सिंह संधू ने कहा कि अब भारत-अमेरिका व्यापार और आर्थिक संबंधों का नया दौर शुरू हुआ है। दोनों देशों के बीच आर्थिक साझेदारी तेजी से बढ़ती जा रही है। संधू ने कहा कि अमेरिका में 200 भारतीय कंपनियां मौजूद हैं और भारत में 2,000 से ज्यादा अमेरिकी कंपनियां सक्रिय हैं। अब दोनों देशों के बीच आर्थिक साझेदारी तेजी से बढ़ेगी। ज्ञातव्य है कि विगत 29 मई को वाणिज्य मंत्रालय के द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में अमेरिका और भारत के बीच 119.42 अरब डालर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ, जो 2020-21 में 80.51 अरब डालर था। अमेरिका को निर्यात 2021-22 में बढ़कर 76.11 अरब डालर हो गया। यह 2020-21 में 51.62 अरब डालर था। वर्ष 2021-22 में अमेरिका से भारत का आयात बढ़कर 43.31 अरब डॉलर हो गया, जो इसके पूर्ववर्ती वर्ष में 29 अरब डॉलर था। खास बात यह है कि अमेरिका उन गिने-चुने देशों में है जिनके साथ भारत व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) की स्थिति में है और अब अमेरिका चीन को पीछे करते हुए भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर बन गया है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि कोविड-19 और यूक्रेन संकट के बीच भी दुनिया के प्रमुख देशों के साथ भारत का विदेश व्यापार बढ़ रहा है। हाल ही में 24 मई को अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के रणनीतिक मंच क्वाड के दूसरे शिखर सम्मेलन में चारों देशों ने जिस समन्वित शक्ति का शंखनाद किया है उससे क्वाड भारत के उद्योग-कारोबार के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता है। इसके अलावा हाल ही के वर्षों में जी-7 और जी-20 देशों के साथ तेजी से आगे बढ़े भारत के द्विपक्षीय व्यापार संबंधों और इसी वर्ष 2022 में यूरोपीय देशों के साथ किए गए नए आर्थिक समझौतों के क्रियान्वयन से भारत का विदेश व्यापार बढ़ेगा। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि भारत ने बहुत कम समय में यूएई तथा ऑस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) को मूर्तरूप दिया गया है। अब यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा, खाड़ी सहयोग परिषद के छह देशों, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और इजराइल के साथ एफटीए के लिए प्रगतिपूर्ण वार्ताएं सुकूनदेह हैं।
उल्लेखनीय है कि इस समय भारत के द्वारा नेबर फर्स्ट और एक्ट ईस्ट नीति के साथ आर्थिक और कारोबारी संबंधों का नया अध्याय लिखा जा रहा है। पिछले माह 16 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी में नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के साथ बहुआयामी द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं पर चर्चा की और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत बनाने, शिक्षा क्षेत्र में सहयोग एवं पनबिजली क्षेत्र से जुड़ी परियोजनाओं को लेकर छह समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। पिछले माह रानिल विक्रमसिंघे ने श्रीलंका के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत से तेजी से आर्थिक सहयोग बढ़ाने के संकेत दिए हैं। भारत ने मार्च-अप्रैल 2022 में श्रीलंका को कर्ज डिफाल्ट से बचने के लिए 2.4 अरब डॉलर की मदद, दवाओं, डीजल की आपूर्ति तथा अन्य जरूरी आयात के लिए एक अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन जैसी मदद भी की है। अब भारत के द्वारा पाकिस्तान के भारत विरोधी और आतंकी रवैये के कारण भारत दक्षेस के भीतर क्षेत्रीय उपसमूह बीबीआईएन (बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल) की एकसूत्रता पर जोर देकर इन देशों के साथ क्षेत्रीय व्यापार बढ़ाने की रणनीति पर तेजी से कदम आगे बढ़ाए जा रहे हैं। इसके अलावा भारत के लिए बिम्सटेक (बे ऑफ बंगाल इनीशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्नोलॉजिकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन) देशों के साथ व्यापार की नई संभावनाएं उभरकर दिखाई दे रही हैं। बिम्सटेक के 7 सदस्य देशों में से 5 दक्षिण एशिया से हैं, जिनमें भारत बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और श्रीलंका शामिल हैं तथा दो-म्यामार और थाईलैंड दक्षिण-पूर्व एशिया से हैं। यह संगठन बंगाल की खाड़ी के आसपास के देशों में चीन के 'वन बेल्ट, वन रोड' इनिशिएटिव के विस्तारवादी प्रभावों से भारत को मुकाबला करने का अवसर भी प्रदान करता है। ज्ञातव्य है कि विगत 30 मार्च को बिम्सटेक का पांचवां शिखर सम्मेलन श्रीलंका की मेजबानी में आयोजित हुआ। इसमें मोदी ने कहा कि बिम्सटेक के सदस्य देशों के बीच परस्पर व्यापार बढ़ाने के लिए बिम्सटेक मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) प्रस्ताव पर आगे बढ़ना जरूरी है। साथ ही सदस्य देशों के उद्यमियों और स्टार्टअप के बीच आदान प्रदान बढ़ाने और व्यापार सहयोग के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय नियमों को भी अपनाए जाने की जरूरत है।
हम उम्मीद करें कि वर्तमान वैश्विक हालात में भारत के द्वारा विदेश व्यापार के लिए ऐसे सही कदम उठाए जाएंगे जिनसे वह विदेश व्यापार के टिकाऊ उच्च विकास के अवसरों को मुठ्ठी में ले सकेगा। देश में आर्थिक सुधारों को तेजी से क्रियान्वयन की डगर पर आगे बढ़ाया जाएगा। डिजिटल अर्थव्यवस्था की विभिन्न बाधाओं को दूर किया जाएगा। हमारा ध्यान उपयुक्त पोर्टफोलियो बनाने तथा बेहतरीन कारोबारों व कारोबारी विचारों पर केंद्रित होगा। आत्मनिर्भर भारत अभियान और मेक इन इंडिया के तहत ऐसी वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाया जाएगा, जिनसे आयात घट सकेंगे, निर्यात बढ़ सकेंगे और विदेश व्यापार के अवसर भारत के लिए अधिकतम अनुकूल हो सकेंगे और इन सबके कारण भारत का बढ़ता हुआ व्यापार भी घाटा कम हो सकेगा।
(लेखक अर्थशास्त्री हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)