रवि शंकर का लेख : खाद्यान्न निर्यात बढ़ने का अवसर
रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते गेहूं से किसानों और देश को फायदा हो रहा है, लेकिन पेट्रोलियम, नैचुरल गैस और सूरजमुखी का तेल और डीएपी-यूरिया, पोटाश जैसे उर्वरकों की कीमतों में बढ़ोतरी का खामियाजा भी किसानों को भुगतना होगा। पिछले एक महीने में एमओपी के अलावा यूरिया, डाई आमोनियम फास्फेट और कॉपलेक्स खाद के दाम बढ़े हैं। कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर चल रही हैं जो महंगाई लाएंगी। वर्तमान परिदृश्य में दुनिया के कई देश भारत से गेहूं और अन्य खाद्यान्न की मांग कर रहे हैं, जिसको भारत पूरा करने में लगा हुआ है। इसके चलते भारत से खाद्यान्न निर्यात बढ़ने का अवसर है।;
रवि शंकर
वैश्विक संकट के दौर में भारत की खेती और किसानी रिकार्ड बनाने की ओर अग्रसर हैं। देश के किसानों की मेहनत, कृषि वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन और केंद्र सरकार की नीतियों के चलते ऐसा संभव हो रहा है। खाद्यान्नों से लेकर तिलहन, दलहन, गन्ना आदि के उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि होने का अनुमान हैं। भारत में खाद्यान्नों के भंडार और रिकार्ड उत्पादन को देखते हुए वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न निर्यात बढ़ाने का भी अच्छा मौका है। भारत इस अवसर का लाभ उठाकर गेहूं की अच्छी कीमतों का लाभ किसानों को दे सकता है। वैश्विक स्तर पर कोरोना के साथ ही रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते खाद्यान्न की मांग में बढ़ोतरी हुई है। वहीं दूसरी तरफ विश्व के कई स्थानों पर सूखे ने वैश्विक उत्पादन को कम कर दिया है, जिससे मांग में तेजी से वृद्धि हुई है। यही वजह है कि विश्व खाद्य लागत रिकॉर्ड लेवल पर पहुंच गई है।
मालूम हो, वैश्विक स्तर पर रूस और यूक्रेन दोनों देश मिलकर गेहूं आपूर्ति का लगभग एक चौथाई हिस्से का निर्यात करते हैं, लेकिन युद्ध के चलते यह देश गेहूं की वैश्विक आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में पूरी दुनिया में गेंहू सहित अन्य कृषि उत्पादों की निर्यात मांग लगातार बढ़ रही है, जिसे भारत पूरी कर पाने में सक्षम है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के बाद रूस पर लगी पाबंदियों से भारत के गेहूं निर्यातकों को काफी फायदा हुआ है। भारत ने इस साल अभी तक पिछले साल की तुलना में 3 गुना से भी ज्यादा गेहूं का निर्यात किया है। वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने संसद में बताया कि इस वर्ष 21 मार्च तक 70.35 लाख टन गेहूं का निर्यात किया जा चुका है, जो कि अब तक का सबसे ज्यादा है। मूल्य के लिहाज से देखें तो 203 करोड़ डॉलर के गेहूं का निर्यात अब तक हुआ। तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो 2020-21 में सिर्फ 21.55 लाख टन गेहूं का निर्यात भारत ने किया था। मूल्य के लिहाज से करीब 57 करोड़ डॉलर के गेहूं का निर्यात हुआ था, जबकि वर्ष 2019-20 में यह महज दो लाख टन (500 करोड़ रुपये) रहा था। उम्मीद की जा रही है कि इस बार यानी 2022-23 में भारत 1.2 करोड़ टन गेहूं विदेश भेज सकता है। फिलहाल, भारत के पास गेहूं का विशाल भंडार मौजूद होने के कारण इस निर्यात मांग को पूरा करने कोई अड़चन भी नहीं दिखाई देती है। वैश्विक स्तर पर बाजार की स्थिति इसी तरह बनी तो भारत का गेहूं निर्यात 2022-23 में एक करोड़ टन के रिकार्ड स्तर को छू पाने में सफल हो सकेगा। वैश्विक स्तर पर वर्तमान में गेहूं की कीमतें दस साल के उच्चतम स्तर पर चल रही हैं। इतना ही नहीं भारत के गेहूं की कीमतें भी वैश्विक स्तर पर 320 डालर से बढ़कर 360 डालर प्रति टन तक पहुंच गई हैं, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि गेहूं उत्पादन के मामले में एक समृद्ध राष्ट्र होने के बावजूद, भारत अभी तक अपनी उपज का केवल एक प्रतिशत निर्यात करता था और वह भी ज्यादातर अपने पड़ोसियों-बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका और संयुक्त अरब अमीरात जैसे अन्य देशों को। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध ने भारत को गेहूं निर्यात बढ़ाने का मौका दिया है।
रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के चलते भले ही भारत समेत दुनियाभर में कच्चे तेल और कई चीजों के दाम बढ़े हुए हैं, लेकिन इस जंग का फायदा भारतीय किसानों को जरूर मिलता दिख रहा है। दोनों देशों के बीच युद्ध के चलते दुनियाभर में गेहूं की कीमतों में लगातार इजाफा हो रहा है। केंद्र सरकार की ओर से गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,015 रुपये प्रति क्विंटल है, लेकिन बाजार में यह दाम 2,250 से लेकर 2,300 रुपये तक है। लंबे वक्त के बाद यह स्थिति देखने को मिल रही है, जब गेहूं की कीमत शुरुआती सीजन में ही सरकारी दाम से ज्यादा है। आपूर्ति में कमी और प्रमुख निर्यातक देशों से अनाज की बढ़ती कीमतों ने भारतीय गेहूं को वर्षों में पहली बार प्रतिस्पर्धी बना दिया है। इसके साथ ही भारत के पास एक बड़ा निर्यात योग्य अनाज स्टॉक में है। यह उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व में आयातकों के लिए महत्वपूर्ण होगा, जहां एक दशक से भी अधिक समय पहले बढ़ती खाद्य कीमतों ने हिंसक विद्रोह को जन्म दिया था। भारत ज्यादातर अपने पड़ोसी देशों जैसे बांग्लादेश और कुछ मध्य पूर्वी बाजारों में गेहूं निर्यात करता है, लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में अब गेंहूं निर्यातकों को अब पूरे अफ्रीका और मध्य पूर्वी क्षेत्र के अन्य क्षेत्रों में खरीदार मिलने की संभावना है। विश्व में गेहूं का निर्यात करने वाले टॉप 5 देशों में रूस, अमेरिका, कनाडा, फ़्रांस और यूक्रेन हैं। ये पांचों देश 65 फ़ीसदी बाज़ार पर क़ब्ज़ा जमाए बैठे हैं। इसमें से तीस फ़ीसदी एक्सपोर्ट रूस और यूक्रेन से होता है। रूस का आधा गेहूं मिस्र, तुर्की और बांग्लादेश ख़रीद लेते हैं, जबकि यूक्रेन के गेहूं के ख़रीदार हैं मिस्र, इंडोनेशिया, फिलीपींस, तुर्की और ट्यूनीशिया। अब दुनिया के दो बड़े गेहूं निर्यातक देश, आपस में जंग में उलझे हों, तो उनके ग्राहक देशों में गेहूं की सप्लाई बाधित होना लाजिमी है।
बहरहाल, युद्ध के चलते इन दोनों से देशों से कारोबार ठप होने से दुनियाभर के निर्यातक गेहूं की मांग को पूरा करने लिए जिन देशों में संभावनाएं तलाश रहे हैं उनमें भारत भी है। विश्व बाजार में गेहूं की मांग बढ़ने से भाव भी बढ़ गए हैं, क्योंकि रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के बाद गेहूं की कीमतों में खासी तेजी देखी गई। भारत के गेहूं की विश्व के कई देशों में मांग बढ़ी है। भारत में खरीद वर्ष 2022-23 के लिए गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2015 रुपए प्रति क्विंटल है, लेकिन पिछले करीब एक पखवाड़े से गेहूं की कीमतें लगातार ऊपर बनी हुई हैं। यूक्रेन संकट के पहले ग्लोबल मार्केट में भारतीय गेहूं की का रेट 300-310 डॉलर प्रति टन था जो 15 दिन में बढ़कर 360 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गया है। अगर यही हालात रहे तो अगले कुछ दिनों में ये 400 डॉलर प्रति टन पहुंच जाएगा। ये किसान और भारत दोनों के लिए अच्छा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते गेहूं में किसानों और देश को फायदा हो रहा है, लेकिन पेट्रोलियम, नैचुरल गैस और सूरजमुखी का तेल और डीएपी-यूरिया, पोटाश जैसे उर्वरकों की कीमतों में बढ़ोतरी का खामियाजा भी किसानों को भुगतना होगा। पिछले एक महीने में एमओपी के अलावा यूरिया, डाई आमोनियम फास्फेट और कॉपलेक्स खाद के दाम बढ़े हैं। कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर चल रही हैं जो महंगाई लाएंगी। भारत ज्यादा उर्वरक या उसके कच्चे माल का आयात करता है। देश की जरूरत के 10-12 फीसदी उर्वरक की आपूर्ति रूस, यूक्रेन और बेलारूस से होती है। बेलारूस, रूस का सहयोगी है, इसलिए आयात प्रभावित हो सकता है। बहरहाल, कोविड-19 की आपदाओं के मध्य, भारत ने वैश्विक स्तर पर पूरी दुनिया के जरूरतमंद देशों की खाद्य सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। अफगानिस्तान जैसे देश को खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने में भी भारत सरकार का महत्वपूर्ण योगदान हैं। वर्तमान परिदृश्य में दुनिया के कई देश भारत से गेहूं और अन्य खाद्यान्न की मांग कर रहे हैं, जिसको भारत पूरा करने में लगा हुआ है। इसके चलते भारत से खाद्यान्न निर्यात बढ़ने का अवसर है।
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