डॉ. सुनील कुमार और यदु भारद्वाज का लेख: भारत में टिड्डी दल के आक्रमण का अवलोकन

टिड्डी दल हर साल राजस्थान के कुछ हिस्सों में फ़सलो को नुक़सान पहुंचाती है। वर्तमान में भारत के पाँच राज्यों में एक टिड्डी दल के आक्रमण से फसलों को भारी नुक़सान होने की आशंका है।टिड्डी एक दिन में 100-150 किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है।;

Update: 2020-05-28 13:35 GMT

वर्ष 2020 प्रकृति की चेतावनी के रूप में हमारे सामने हैं। प्रकती का ग़ुस्सा एक के बाद एक घटनाओं के रूप में जैसे कि कोविड महामारी,तटीय क्षेत्र में अमफ़न चक्रवात का आना, और अब टिड्डी दल के भीषण आक्रमण के रूप में दर्शित हो रहा है।

टिड्डी हर साल राजस्थान के कुछ हिस्सों में फ़सलो को नुक़सान पहुंचाती है। वर्तमान में भारत के पाँच राज्यों में एक टिड्डी दल के आक्रमण से फसलों को भारी नुक़सान होने की आशंका है।टिड्डी एक दिन में 100-150 किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है। टिड्डी दल सामूहिक रूप से करोड़ों की संख्या में झुंड या समूह बनाकर आगे बढ़ती जाती है। इनके समूह को स्वार्म(swarm) कहा जाता है। एक वर्ग़ किलोमीटर क्षेत्रफल में व्यस्क टिड्डी की संख्या 80 मिलियन तक हो सकती है।टिड्डी का एक समूह पच्चीस सौ आदमी, 10 हाथी, 25 ऊंट के बराबर खाना खा जाती है।

प्राय टिड्डी दल शाम के समय झुंड में पेड़ों, झाड़ियों एवं फसलों पर बसेरा करते हैं और रात वहीं गुज़ारते हैं इसके बाद सूरज निकलने के बाद अपने स्थान से उड़कर फ़सल को नष्ट करना शुरू कर देते हैं।

भारत में मुख्यतः इनकी चार स्पीशीज पाई जाती है।

1.डेज़र्ट टिड्डी (Desert Locust)

2. मायग्रटॉरी टिड्डी (Migratory Locust)

3. बॉम्बे टिड्डी Bombay Locust

4.वृक्ष टिड्डी (Tree Locust)।

टिड्डी दल के उत्पन होने के कारण

भारत में वर्तमान टिड्डी दल आक्रमण मुख्यत डेज़र्ट स्पीसीज़ के कारण है। डेजर्ड टिड्डी सऊदी अरेबिया ओर पूर्वी अफ़्रीका की नेटिव मानी जाती है। जलवायु परिवर्तन के कारण सऊदी अरेबिया में पिछले दो वर्षों में चक्रवात (Cyclone) लगातार आ रहे हैं. इसके कारण टिड्डी दल को ग्रोथ और जनन की अनुकूल स्थितियां मिल जाती है। इसके अतिरिक्त चक्रवात विंड पैटन(wind pattern) को भी चेंज कर देते हैं।हिन्द महासागर द्विध्रुवीय(Indian ocean dipole) के कारण असामान्य वर्षा ओर ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ता तापमान भी इनकी ग्रोथ की अनुकूल परिस्थितियां उत्पन्न करता है। इसके अतिरिक्त इस वर्ष दक्षिणी पूर्वी ईरान और दक्षिणी पश्चिमी पाकिस्तान मैं जनवरी महीने में काफ़ी ज़्यादा बारिश हुई। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार एक मार्च से 11 मई तक भारत में सामान्य से 25% अधिक बारिश हुई है। राजस्थान में पश्चिमी विक्षोभ के कारण बारिश होने के कारणभी डेज़र्ट टिड्डी दल ने भारत के पश्चिमी भाग में फसलों पर जल्दी आक्रमण किया है।

ऐतिहासिक मूल्यांकन

1926-31 के प्लेग साइकल के दौरान इनके आक्रमण के कारण 10 करोड़ की फसलों को नुक़सान हुआ था। इससे पहले 1940-46,1949-55 ओर 1959-62 के दौरान भी इनके आक्रमण के कारण फ़सल को भारी नुक़सान हुआ है।1993 के दौरानपश्चिम राजस्थान के 31000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में टिड्डी स्वार्म(swarm) ने फ़सलो पर आक्रमण किया था। पश्चिमी राजस्थान ओर गुजरात के कुछ हिस्सों में 1997 ओर 2005 मैं भी इनका फसलों पर आक्रमण हुआ है। तीन दशकों के बाद इस साल टिड्डी दल कहाँ आक्रमण काफ़ी व्यापक स्तर पर है।

टिड्डी दल का नियंत्रण

भारत में घास फूस और खरपतवार के पत्तों पर आग जलाकर धुआँ उठने से इनके दल को दूर भगाए जाता है। इसके अतिरिक्त ढोल बजाकर, लोहे के पीपों से तेज़ आवाज़ कर भी इनको दूर भगाए जाता है। कुछ किसान ट्रैक्टर के साइलेंसर को खोलकर खेत में घुमाने पर ज़ोर से आवाज़ कर भी इनको भगाते हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ के फ़ूड एंड ऐग्रिकल्चर ऑर्गनाइजेशन अप्रूव्ड इन्सेक्टिसायड (Chlorpyrifos &cypermethrin/कलोरोपयरिफ़ोस ओर साईपरमेतरिण) कहाँ उचित अनुपात में घोल बनाकर स्प्रे करने पर भी इनका नियंत्रण किया जा सकता है। रासायनिक तरीक़ों के अलावा बायलॉजिकल तरीक़े अपनाकर भी टिड्डी दल पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

सऊदी अरेबिया जैसे देशों में एयरक्राफ्ट से इन्सेक्टिसायड का स्प्रे कर भी इन का नियंत्रण किया जा सकता है। ड्रोन बेस इन्सेक्टिसायड का स्प्रे करने पर जैव विविधता को भारी नुक़सान हो सकता है इस कारण भारत सरकार ने अभी इसको मान्यता नहीं दी है। समय रहते हैं इनके मूव्मेंट को ट्रेंक करते हुए ओर विभिन्न विभागों में आपसी सामंजस्य भी इनके नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

टिड्डी दल के प्रभाव

टिड्डी दल अपने रास्ते में आने वाली प्रत्येक हर एक चीज़ जैसे की ख़रीद खड़ी फ़सलें,पशुओं के चारागाह, फलों के बग़ीचे और यहाँ तक कि वनो को भी चर कर जाते हैं।महाराष्ट्र,उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में टिड्डी दल के आक्रमण के कारण आम के बगीचों पर असर हो सकता है जिसके कारण वहाँ के किसानों की आजीविका प्रभावित होगी। भारत के रेगिस्तानी हिस्सा में टिड्डी दल के आक्रमण के कारण न केवल फसलों को अपितु पशुओं के चारागाह पर असर होने के कारण किसानों तक यह दोहरी मार हो सकती है।

अतः समय आ गया है कि मनुष्य जाति प्रकती की चेतावनी का विभिन्न परिपेक्ष्य में मूल्यांकन करें ताकि हमारे आने वाली पीढ़ियां पर इन प्राकृतिक और मानवीय आपदाओं का असर कम हो सके।

लेखक भारतीय वन्य सेवा के अधिकारी हैं। 

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