कृष्ण प्रताप सिंह का लेख : देश का सामूहिक विवेक बचाएं
न सिर्फ हमारे देश बल्कि दुनिया के अतीत में भी ऐसी कई मिसालें हैं, जब परस्पर उलझी हुई दो कट्टरताओं में से किसी एक का उन्मूलन कर दिया गया तो उसके खिलाफ रोज-रोज युद्धघोष करती रहने वाली दूसरी कट्टरता भी खुद को नहीं ही बचा पाई, इसलिए कट्टरताएं आपस में भिड़ंतों का कितना भी दिखावा करें, सर्वाधिक एकजुट मनुष्य के उस विवेक पर हमले में ही होती हैं, जो इस समझदारी के विकास के लिए सक्रिय रहता है कि वैर से वैर कभी शांत नहीं होता। बताता है कि वैर से वैर को शांत करने की कोशिश अंततः घी से आग बुझाने की कोशिश जैसी सिद्ध होती है और वैर को सचमुच शांत करना हो तो अवैर की राह अपनानी पड़ती है।;
कृष्ण प्रताप सिंह
निस्संदेह, एक दूजे के खिलाफ गले फाड़ती और नेजे चमकाती रहने वाली धार्मिक व साम्प्रदायिक कट्टरताएं अपने मूल रूप में एक दूजे की पूरक और अपने अस्तित्व के लिए एक दूजे पर निर्भर होती हैं। न सिर्फ हमारे देश बल्कि दुनिया के अतीत में भी ऐसी कई मिसालें हैं, जब परस्पर उलझी हुई दो कट्टरताओं में से किसी एक का उन्मूलन कर दिया गया तो उसके खिलाफ रोज-रोज युद्धघोष करती रहने वाली दूसरी कट्टरता भी खुद को नहीं ही बचा पाई, इसलिए कट्टरताएं आपस में भिड़ंतों का कितना भी दिखावा करें, सर्वाधिक एकजुट मनुष्य के उस विवेक पर हमले में ही होती हैं, जो इस समझदारी के विकास के लिए सक्रिय रहता है कि वैर से वैर कभी शांत नहीं होता। बताता है कि वैर से वैर को शांत करने की कोशिश अंततः घी से आग बुझाने की कोशिश जैसी सिद्ध होती है और वैर को सचमुच शांत करना हो तो अवैर की राह अपनानी पड़ती है और अपने द्वेषपूर्ण चित्त को मैत्रीपूर्ण चित्त से प्रतिस्थापित करना पड़ता है।
राजस्थान के उदयपुर शहर में भड़काऊ सोशल मीडिया पोस्टों की श्रृंखला से पैदा हुए एक विवाद में पैगम्बर मोहम्मद का अपमान करने वाली बहुचर्चित नूपुर शर्मा के समर्थन का बदला लेने के नाम पर कथित तौर पर 'दावत-ए-इस्लामी' से जुड़े दो लोगों द्वारा कन्हैयालाल नामक दर्जी से जो दरिन्दगी की गई है और जिसने देश के शांति और सौमनस्य के लिए गंभीर अंदेशे पैदा करते हुए सद्भाव के सारे पैरोकारों को हिलाकर रख दिया है, उसे कुछ इसी तरह समझा जा सकता है। हां, यह समझना तब तक किसी काम का नहीं, जब तक यह भी न समझ लिया जाए कि कन्हैयालाल की जान लेने वाले सिरफिरों के पीछे, जैसा कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अंदेशा जता रहे हैं, कोई विदेशी साजिश हो या देशी, साजिशियों को कन्हैयालाल की जान से ज्यादा इस देश के सामूहिक विवेक से खेलना अभीष्ट है, क्योंकि उसके सामूहिक विवेक को सामूहिक अविवेक में बदले बगैर तो वे कितनी भी बर्बरता बरत लें, वह सब पाने से रहे, जो हर कीमत पर हासिल करना चाहते हैं। अच्छी बात है कि अभी तक इस सामूहिक विवेक ने एक भी ऐसा संकेत नहीं दिया है जिससे लगे कि वह किंचित भी उद्वेलित या आक्रांत हो रहा है। अभी तक तो उस पर कोई खरोंच भी नजर नहीं आई है। इसे इस रूप में देख सकते हैं कि कुछ नाशुक्रों को छोड़ दें तो सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के नेताओं ने सारे मतभेद भुलाकर कन्हैयालाल के हत्यारों की कड़े से कड़े शब्दों में निन्दा, उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की मांगें और उनके मंसूबे नाकाम करने के लिए हर तरह की नफरत को हराने व भाईचारे को उसकी भेंट चढ़ने से बचाने की अपीलें की हैं। यहां कहना होगा कि राज्य की पुलिस ने इस बर्बरता से जुड़े भड़काऊ सोशल मीडिया पोस्टों के विवाद को शुरू में ही गंभीरता से लिया होता तो शायद विवाद इस त्रासद अंजाम तक पहुंच ही नहीं पाता, लेकिन शुक्र है कि बाद में उसने भी दोनों हत्यारोपितों को तत्परतापूर्वक राजसमन्द से गिरफ्तार कर लिया और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केस आफिसर स्कीम के तहत तेजी से जांच करके उनका कानून के हवाले किया जाना सुनिश्चित करने का वचन दिया है। कह सकते हैं कि बर्बरता के विरुद्ध लोगों में फैले आक्रोश को घटाने का उनके पास इसके अलावा कोई तरीका था ही नहीं, लेकिन गहलोत ने इससे भी आगे बढ़कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मांग कर डाली है कि वे नफरत के बढ़ते सिलसिले को लेकर देशवासियों को सम्बोधित कर उन्हें विश्वास में लें।
क्या पता प्रधानमंत्री उनकी सुनेंगे या नहीं, लेकिन केन्द्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने भी इस बर्बर वारदात में किसी आतंकी संगठन की संलिप्तता और अंतरराष्ट्रीय लिंक की जांच शुरू कर दी है। इसकी जांच इसलिए भी जरूरी है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अंदेशा है कि उदयपुर में जो कुछ हुआ, वह किसी बड़े राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय लिंक के बिना नहीं हो सकता। इस अंदेशे की ईमानदार जांच से दूध का दूध और पानी का पानी किया जाना समय की मांग है। इस सिलसिले में एक और अच्छी बात यह हुई है कि जिन अल्पसंख्यकों के धर्म के नाम पर उदयपुर में यह बर्बरता बरती गई है, उन्होंने खुद को उससे अलग करने में देर नहीं लगाई है। बरेली में मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना तौकीर रजा ने तो यह कहकर लोगों को चकित कर दिया है कि चूंकि उनके धर्म के नाम पर यह जुर्म किया गया है, इसलिए वे समझते हैं कि इस गुनाह में उनका भी हिस्सा है, यानी इसके लिए वे खुद भी जिम्मेदार हैं और उन्हें भी सजा मिलनी चाहिए। उन्होंने हत्यारोपितों के कृत्य को गैरइस्लामी बताते हुए उन पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव हजरत मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने भी यह कहते हुए कि भले ही पैगम्बर मोहम्मद पर अपमानजनक टिप्पणी सारे इस्लाम धर्मावलम्बियों के लिए दुःखदायी है, उदयपुर में कन्हैयालाल को खुद ही दोषी करार देकर उसकी हत्या कर देने की कार्रवाई गैरइस्लामी है। न देश का कानून इसकी इजाजत देता है, न ही इस्लामी शरीयत के तहत उसे जायज ठहराया गया है। अलबत्ता, देश में नफरत का एजेंडा नागरिकों के एक हिस्से के सिर चढ़कर बोल रहा है। ऐसी हैवानियत जो आदमी को आदमी नहीं रहने दे रही और आदमीयत का बचना मुहाल किए हुए है, उसे रोकना जरूरी है।
यह बात सही हो तो भी उदयपुर में जो कुछ हुआ है, इसकी आड़ में उसे सही नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि न्यायशास़्त्र का पुराना नियम है कि एक अपराध को दूसरे अपराध का औचित्य सिद्ध करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। फिर इस सबसे इतर इस वक्त हर देशवासी का कर्तव्य है कि वह देश के सामूहिक विवेक को कलंकित करने वाला कोई भी कृत्य न करे। इसी तरह देश की सरकार का कर्तव्य है कि वह देर से ही सही, उन महानुभावों की सद्बुद्धि जगाने का अभियान शुरू करे, जो वैर को वैर से शांत करने के बेहिस प्रयासों के तहत धर्म संसदों को भी अधर्म की संसदें बना दे रहे हैं और अल्पसंख्यकों के नरसंहार की अपीलों तक के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। वे इस बात को समझने से भी लगातार इनकार करते आ रहे हैं कि दुश्मनी का सफर अंततः किसी को कुछ नहीं देता। महाभारत की लड़ाई में हारने वालों को तो सर्वस्व गंवाना ही पड़ा था, जीतने वालों को भी लाशों के अम्बार पर बैठे थोथे विजय दर्प के अलावा कुछ हासिल नहीं हो पाया था। किसी शायर ने क्या खूब कहा है-दुश्मनी का सफर एक कदम दो कदम, तुम भी थक जाओगे, हम भी थक जाएंगे। आइए हम सब इसे समझें और एक अन्य शायर के शब्दों में लम्हों से खता कराकर सदियों को सजा देने से बचें।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)