अवधेश कुमार का लेख : राजद्रोह कानून का ना हो दुरुपयोग
मुख्यमंत्री या किसी मंत्री के घर के सामने हनुमान चालीसा पढ़ने की बात का तार्किक कानूनी प्रतिकार यही हो सकता था कि वहां धारा 144 लगा दिया जाए। उसके उल्लंघन करने पर सामान्य तौर पर हिरासत में लिया जाता है या गिरफ्तारी होती है। इससे ज्यादा कुछ भी करना कानून के राज की अवधारणा पर ही कुठाराघात है। उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री हैं तो उनकी नीति से असहमत होने वाला, असंतुष्ट होने वाला विरोध करेगा। विरोध करने का उसका अपना तरीका होगा। विरोध का तरीका अगर कानून और संविधान के विरुद्ध है तो उस पर कार्रवाई होगी। यह कार्रवाई भी संविधान और कानून की मर्यादाओं के अंदर ही होना चाहिए।;
अवधेश कुमार
अमरावती की लोकसभा सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा के साथ महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ वह भयभीत करने वाला है। एक सांसद और विधायक के साथ महाराष्ट्र पुलिस प्रशासन ऐसा व्यवहार कर सकती है तो फिर आम आदमी के साथ क्या होगा? नवनीत राणा ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के घर के सामने हनुमान चालीसा पढ़ने का ऐलान किया था। नवनीत की इस घोषणा के पीछे भी राजनीति थी। कुछ समय पहले वो अलीगढ़ में भी सामूहिक हनुमान चालीसा में देखी गई थी। इस समय देश में अजान बनाम हनुमान चालीसा का जो वातावरण है उसमें कई नेता हिंदुत्व समर्थक बनने या स्वयं को साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। वर्तमान भारतीय राजनीति को देखते हुए यह अस्वाभाविक नहीं है। महाराष्ट्र में एक समय हिंदुत्व का सबसे बड़ी आक्रामक पैरोकार शिवसेना महाविकास आघाडी के नेतृत्व में आने के बाद से जिस मुद्रा में है वह उनके समर्थकों के गले भी नहीं उतर रहा है। शिवसेना के शासन में विचारधारा के स्तर पर हिंदुत्व को सरकार और प्रशासन के विरोध का सामना करना पड़ेगा यह कल्पना से परे था । नवनीत ने हिंदुओं की भावनाओं का लाभ उठाने की कोशिश की। हम इसे नैतिक आधार पर सही नहीं ठहरा सकते लेकिन यह अपराध तो नहीं था। कम से कम इतना बड़ा अपराध नहीं है जिससे कि दोनों पति पत्नी को राजद्रोह के आरोप में जेल में बंद होना पड़े। इसमें यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिर उद्धव सरकार ने ऐसा क्यों किया? इसी के साथ दूसरा प्रश्न भी है कि सरकार का ऐसा व्यवहार स्थिति को कहां तक ले जाएगा?
मुख्यमंत्री या किसी मंत्री के घर के सामने हनुमान चालीसा पढ़ने की बात का तार्किक कानूनी प्रतिकार यही हो सकता था कि वहां धारा 144 लगा दिया जाए। उसके उल्लंघन करने पर सामान्य तौर पर हिरासत में लिया जाता है या गिरफ्तारी होती है और लोग छूट जाते हैं। इससे ज्यादा कुछ भी करना कानून के राज की अवधारणा पर ही कुठाराघात है । उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री हैं तो उनकी नीति से असहमत होने वाला, असंतुष्ट होने वाला विरोध करेगा। विरोध करने का उसका अपना तरीका होगा। विरोध का तरीका अगर कानून और संविधान के विरुद्ध है तो उस पर कार्रवाई होगी। यह कार्रवाई भी संविधान और कानून की मर्यादाओं के अंदर ही होना चाहिए। कायदे से इस मामले में कानूनी कार्रवाई की भी आवश्यकता नहीं होनी चाहिए क्योंकि राजनीति में राजनीतिक विरोध का प्रतिकार भी राजनीति की सीमा के अंदर हो यही लोकतांत्रिक व्यवस्था का मापदंड है। इस कार्रवाई को न आप लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत मान सकते हैं और न ही कानून के राज का प्रमाण।
ध्यान रखिए, पहले राणा दंपति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए यानी धर्म ,भाषा आदि के नाम पर विद्वेष उत्पन्न करना और मुंबई पुलिस अधिनियम की धारा 135 यानी पुलिस द्वारा लागू निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने का मामला दर्ज किया गया। उसके बाद उनके खिलाफ प्राथमिकी में धारा 353 जोड़ी गई जिसका अर्थ था कि राणा दंपति ने सरकारी अधिकारी को कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने के लिए आपराधिक बल का इस्तेमाल किया या हमला किया। बाद में राजद्रोह संबंधी धारा 124 ए भी डाल दिया गया। 124 ए में किसी की गिरफ्तारी के बाद जमानत मिलना मुश्किल होता है तथा सामान्यतः इसमें न्यायालय व्यक्ति को पुलिस हिरासत में भी भेज देती है। कहने की आवश्यकता नहीं कि महाराष्ट्र पुलिस प्रशासन का इरादा राणा दंपति को पुलिस हिरासत में लेकर पूछताछ और उत्पीड़ित करना रहा होगा। यह बात अलग है कि न्यायालय ने उन्हें पुलिस हिरासत की बजाय 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा। इस तरह न्यायालय ने नवनीत और रवि को पुलिस की प्रत्यक्ष पूछताछ से बचा लिया। जिस व्यक्ति के विरुद्ध सरकार यानी राजनीतिक नेतृत्व हो जाए उसके साथ पुलिस प्रशासन किस तरह का व्यवहार करती है यह बताने की आवश्यकता नहीं। किंतु सरकार के रवैए को देखते हुए यह मानना कठिन है कि वाकई वे पुलिस प्रशासन के उत्पीड़न से पूरी तरह सुरक्षित हो गए हैं। जिस तरह इन पर अंडरवर्ल्ड यूसुफ लकड़ावाला से संबंध होने के आरोप लगाए गए हैं उनके मायने गंभीर हैं। इसका साफ संकेत है कि उद्धव सरकार हर हाल में नवनीत और रवि को कानूनी तौर पर देशद्रोही घोषित करने पर आमादा है। संजय राऊत इस समय शिवसेना और सरकार दोनों की आवाज हैं। उन्होंने आरोप लगाया है तो मानना पड़ेगा कि यह सरकार का मत है।
देश के सर्व साधारण व्यक्ति को भी लग रहा है कि राणा दंपति के विरुद्ध उद्धव सरकार जो कुछ कर रही है वह सत्ता का भयानक दुरुपयोग है। क्या यह सरकार में शामिल पार्टियों और नेताओं को समझ नहीं आ रहा? यह हैरत की ही बात है कि कांग्रेस के प्रवक्ता भी इस कार्रवाई के साथ दिख रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ने 2019 लोकसभा चुनाव के अपने घोषणा पत्र में राजद्रोह कानून को खत्म करने का वायदा किया था। उसने इसके दुरुपयोग की भी चर्चा उसमें की थी। वहीं कांग्रेस पार्टी इस समय नवनीत एवं रवि पर लगाए गए राजद्रोह के आरोप को सही मान रही है। यह एक उदाहरण बताने के लिए पर्याप्त है कि हमारे देश के कुछ राजनीतिक दलों का चरित्र क्या है। शरद पवार की राकांपा ने अपनी पार्टी के नेता और मंत्री नवाब मलिक के विरुद्ध हुई कार्रवाई पर जमीन आसमान एक किया था। लेकिन उसे भी नवनीत और रवि की गिरफ्तारी और उन पर लगाई गई धाराओं को लेकर कोई समस्या नहीं है। शरद पवार परिपक्व और सुलझे नेता माने जाते हैं। क्या उन्हें नहीं लगता कि इस तरह राजद्रोह का आरोप फिर अंडरवर्ल्ड से संबंधों की बात करके उद्धव सरकार कानून के राज का उपहास उड़ा रही है?
शिवसेना के सामने समस्या यह है कि एक बार राजद्रोह का आरोप लगा तो उसे किसी न किसी तरह साबित करना है। अगर युसूफ लकड़वाला से उनके साथ संबंध थे तो पुलिस को पहले ही इस पर बयान देना चाहिए था। जब पहले ऐसी कोई बात नहीं हुई तो मतलब यही है कि आपको किसी तरह उन्हें देशद्रोही साबित करना है। तो सब कुछ न्यायालय पर निर्भर हो जाएगा। किंतु तब तक दोनों पति-पत्नी इतने परेशान हो चुके होंगे जिसकी हम आप शायद कल्पना नहीं कर सकते। शिवसेना की समस्या यह भी है कि वह गैर भाजपा दलों के साथ अपना गठबंधन बनाए रखने के लिए स्वयं को हर छोटे-छोटे अवसर पर राजनीतिक सेक्यूलरवाद के प्रति प्रतिबद्ध साबित करती है। यह उसका असली चरित्र है नहीं। यह संभव नहीं कि इतने दिनों तक आक्रामक हिंदुत्व का झंडा उठाने वाली पार्टी एकाएक वर्तमान राजनीति की सेक्यूलरवादी परिधि में सहज हो जाए। उसकी दूसरी समस्या यह है कि वह घोषित रूप से स्वयं को हिंदुत्व से विलग भी नहीं दिखाना चाहती। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे कहते हैं कि बालासाहेब ने उन्हें दादागिरी का करारा जवाब देना सिखाया है और यही किया गया है। बदले की राजनीति करना उचित नहीं है।
( लेखक वरिष्ठ पत्रतकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं। )