अलका आर्य का लेख : अभी चुनौतियां और भी...

कोरोना के खिलाफ लड़ाई में भारत ने सौ करोड़ टीके देने के महत्वपूर्ण पड़ाव को पार कर लिया है। इस माइलस्टोन को हासिल करने के रास्ते में जो बाधाएं आई, वे आगे हमारा रास्ता नहीं रोकेंगी, इसके लिए विश्लेषण करने की जरूरत है। सरकार इसे एक उत्सव के रूप में मना रही है, कुतुब मीनार व अन्य स्मारकों को तिरंगे वाली रोशनी से सजाया गया है, लेकिन इस उत्सव के जश्न में सबको और अधिक सचेत होने की जरूरत है, क्योंकि दिवाली का पर्व आ रहा है, इस मौके पर बाजारों में भीड़ बहुत दिखाई देती हैं और लोग एक दूसरे के घर भी जाते हैं। निगरानी रखनी होगी पहली डोज लेने वाले सभी वयस्क सही समय पर अपनी दूसरी डोज भी ले लें।;

Update: 2021-10-23 09:36 GMT

अलका आर्य

मुबारक इंडिया। मुल्क ने कोविड-19 रोधी टीकाकरण की सौ करोड़ यानी एक अरब खुराक के महत्वपूर्ण पड़ाव को पार कर लिया है। यह आंकड़ा हासिल करने के लिए बहुत सी चुनौतियों से गुजरना पड़ा और मंजिल की ओर कदम दर कदम बढ़ने का हौंसला अभी भी बरकरार है। कोविड-19 टीकाकरण के जिस महत्वपूर्ण पड़ाव को मुल्क ने हासिल किया और उसके लिए किए गए अथक प्रयासों की सराहना विश्वभर में हो रही है। हाल ही में देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जब अमेरिका दौरे पर थीं, तो विश्व बैंक के अध्यक्ष डेविड मलपास ने उनसे मुलाकात की और कोरोना वायरस के खिलाफ सफल टीकाकरण अभियान के लिए भारत को बधाई दी है। आधार डेटा के मुताबिक मुल्क में 94 करोड़ लोग 18 साल से अधिक आयु के हैं। इस हिसाब से 75 प्रतिशत वयस्कों को सिंगल व 30.6 प्रतिशत को दोनों डोज लग चुकी हैं। 100 करोड़ टीकाकरण की उपलब्धि वाले इस आंकड़े को हासिल करने में देश के हर राज्य ने परिश्रम किया, लेकिन जिन्होंने बेहतर प्रदर्शन किया व जो पिछड़ गए, उनके बारे में जानना भी जरूरी है।

गुजरात, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, केरल का अब तक का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा है। आंकड़े इस ओर भी इशारा करते हैं कि अगर हिमाचल, गुजरात, कर्नाटक, केरल व दिल्ली में अगर टीकाकरण का वर्तमान औसत बरकरार रहा तो इन सूबों में इसी साल करीब 90 प्रतिशत वयस्कों को टीके की दोनों डोज लगना संभव है। इसके अलावा राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व महाराष्ट्र में टीकाकरण की गति राष्ट्रीय औसत से आगे है व यहां इसी साल व्यस्कों को दोनो डोज लगने की संभावना है। जो राज्य इस संदर्भ में पीछे चल रहे हैं, वे हैं-बिहार, झारखंड और उत्तरप्रदेश। केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती इन तीन राज्यों के लिए विशेष रणनीति बनाने की है, ताकि वहां टीकाकरण को गति मिल सके।

बहरहाल दुनिया के नक्शे में भारत इस समय कहां खड़ा है-इसके लिए अन्य मुल्कों के आंकड़ों पर नजर डालने के साथ-साथ यह भी याद रखना चाहिए कि भारत की आबादी उन मुल्कों से बहुत ज्यादा है। उन मुल्कों की अर्थव्यवस्था व अन्य संसाधन खासकर स्वास्थ्यतंत्र भी भारत से बेहतर है। अमेरिका में अब तक 56 प्रतिशत और फ्रांस में 67 प्रतिशत व्ायस्कों को दोनों डोज लग चुकी हैं। ब्रिटेन में 66 प्रतिशत तो जर्मनी में 65 प्रतिशत व्यस्क इस सूची में आ चुके हैं। रूस में 32 प्रतिशत व्यस्कों ने दोनों डोज ली हैं। जहां तक चीन का सवाल है, दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले इस देश में 71 प्रतिशत वयस्कों को दोनों डोज व 76 प्रतिशत को सिंगल डोज दे दी गई है। भारत में 75 प्रतिशत वयस्कों को सिंगल व 30.6 प्रतिशत को दोनों डोज लग चुकी हैं। उम्मीद की जा रही है कि इसी साल 75 प्रतिशत व्यस्कों को दोनों डोज दी जा सकती हैं। मार्च 2022 तक सभी वयस्कों को दोनों डोज देने के लक्ष्य को पूरा करने के वास्ते रूपरेखा भी तैयार कर ली गई है। देश में 100 करोड़ वैक्सीन डोज के पूरा होने के खास मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को बधाई दी और इस उपलब्धि के लिए चिकित्सा से जुड़े लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने ट्विट किया- 'भारत ने इतिहास रचा। हम भारतीय विज्ञान, उद्यम और 130 करोड़ भारतीयों की सामूहिक भावना की विजय देख रहे हैं।' दरअसल यह सफलता विजय ही है, और उन लोगों, लाॅबी को कारारा जवाब भी जिन्होंने कोविड-19 वैक्सीन को लेकर लोगों को गुमराह करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया, पर सरकार व अन्य संस्थाओं ने लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान छेड़े और धीरे-धीरे टीके को लेकर भ्रांतियां दूर होती चली गईं।

एक आशंका यह भी जताई गई कि ग्रामीण इलाकों में लोग इसका विरोध अधिक करेंगे, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में वैक्सीन लगवाने वालों में अब बहुत अधिक अंतर नहीं रह गया है। अति दूरदराज वाले इलाकों में वैक्सीन पहुंचाने के लिए भारत सरकार ने ड्रोन का भी इस्तेमाल किया। वैसे भारत में दुनिया का सबसे बड़ा बाल टीकाकरण अभियान चलता है और भारत के पास टीकाकरण संचालन का लंबा अनुभव है, लेकिन कोविड-19 वैक्सीन अभियान बाल नहीं बल्कि वयस्क टीकाकरण अभियान है और भारत ने इसमें भी सफलता हासिल कर बता दिया कि अगर प्रतिबद्वता मजबूत हो व सही नीतियां हों तो जन स्वास्थ्य कार्यक्रमों को सफल बनाया जा सकता है, पर इसके साथ यह तथ्य भी ध्यान में रखना होगा कि कोविड-19 वायरस को हराने के लिए विशेष राशि समय-समय पर जारी की गई और केंद्र व राज्य सरकारों का फोकस भी इसी पर केंद्रित रहा। अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने भी 100 करोड़ वैक्सीन वाली इस यात्रा में भारत सरकार की मदद की है। यूनिसेफ की भारत प्रतिनिधि डा. यास्मिन अली हक ने कहा कि एक साल से कम समय में एक अरब लोगों को वैक्सीन देना, बहुत बड़ी सफलता है। यूनिसेफ ने वैक्सीन भंडारण में भारत सरकार को सपोर्ट किया, फ्रीजर, वाॅक इन कूलर, रेफ्रिजरेटर व डीप रेफ्रिजरेटर मुहैया कराए। यही नहीं यूनिसेफ ने 42,000 से अधिक कोल्ड चेन बाक्स और वैक्सीन कैरियर भी दिए। हर चुनौती में अवसर छिपा होता है। यही कोविड-19 वायरस के संदर्भ में भी लागू होता है। कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान मेडिकल आक्सीजन की कमी वाले मुद्दे ने सरकारों का ध्यान खींचा और अब आक्सीजन प्लांट कहां-कहां बनेगे, इसके लिए नीति बनाई गई है और काम भी शुरू हो गया है। भारत जैसे विशाल आबादी वाले मुल्क में जहां जन स्वास्थ्य पर सरकार बहुत कम खर्च करती है, वहां आपात जन स्वास्थ्य संकट से निपटना आसान नहीं दिखता।

निश्िचत ही हमने पहली सीढ़ी को पार कर लिया है,लेकिन मंजिल अभी दूर है। हमें अपनी इस सफलता पर खुश होकर बैठने की जरूरत नहीं है बल्कि अभी सतत प्रयास करने की जरूरत है। ऐसा नहीं है कि साै करोड़ लोगों को वैक्सीनेशन के लक्ष्य को प्राप्त करके हम सौ प्रतिशत हर्ड इम्यूनिटी पा लेंगे। अभी आगे चुनौतियां बहुत हैं, इसलिए हमें अपने प्रयासों को उतनी ही गति से आगे बढ़ाते हुए लगातार काम करने की आवश्यकता है। तभी हम अंतिम लक्ष्य पर पहुंच सकते हैं। इसके अतिरिक्त सरकार को इस पर भी निगरानी रखनी होगी कि कोराेना वैक्सीन की पहली डोज लेने वाले सभी वयस्क सही समय पर अपनी दूसरी डोज भी ले लें। उनके अंदर वैक्सीन को लेकर उदासीनता वाला रुझान नहीं पैदा होना चाहिए। इस वैक्सीनेशन ने सरकार व जनता के भीतर विश्वास जगाया है कि व्यापक स्तर पर टीकाकरण कार्यक्रम प्रभावी तरीके से संचालित किए जा सकते हैं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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