रवि शंकर का लेख : महंगाई रोकना बने प्राथमिकता
सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल, 2022 में खुदरा महंगाई दर बढ़कर 7.79 फीसदी तक पहुंच गई है,जो मार्च महीने में 6.95 प्रतिशत थी। खाने-पीने की चीजों की बढ़ती कीमतों और महंगे ईंधन के चलते खुदरा महंगाई दर का आंकड़ा 8 साल के उच्चतम स्तर पर जा पहुंचा है। जनता पर महंगाई की मार लगातार जारी है। वर्तमान हालात को देखते हुए केन्द्र व राज्य सरकारों को अति शीघ्र महंगाई को काबू में करने के उपाय करने चाहिए। देश में बढ़ रही महंगाई का धनवान लोगों पर तो कोई असर नहीं है, मगर आम नागरिकों पर सीधा असर पड़ता है। अतः समय रहते केंद्र सरकार को महंगाई पर रोक लगाकर आम आदमी की पूरी मदद करनी चाहिए।;
रवि शंकर
देश की जनता पर महंगाई की मार लगातार जारी है। एक बार फिर खुदरा महंगाई दर में तेज उछाल देखने को मिला है। सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल, 2022 में खुदरा महंगाई दर बढ़कर 7.79 फीसदी तक पहुंच गई है,जो मार्च महीने में 6.95 प्रतिशत थी। खाने-पीने की चीजों की बढ़ती कीमतों और महंगे ईंधन के चलते खुदरा महंगाई दर का आंकड़ा 8 साल के उच्चतम स्तर पर जा पहुंचा है। इससे अधिक खुदरा महंगाई दर सितंबर 2020 में 7.34 फीसदी रही थी। खाने-पीने के सामान, ईंधन और बिजली के दाम में इजाफा होने से थोक महंगाई भी लगातार 13वें महीने डबल डिजिट में बनी हुई है। थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर अप्रैल में 15.08% पर पहुंच गई। दिसंबर 1998 के बाद पहली बार थोक महंगाई दर 15% के पार पहुंची है। दिसंबर 1998 में ये 15.32% पर थी। इससे पहले ये मार्च 2022 में ये 14.55% पर, जबकि फरवरी में 13.11% पर थी। अप्रैल 2021 से थोक महंगाई डबल डिजिट में बनी हुई है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने महंगाई की अपर लिमिट 6% तय की हुई है, लेकिन अप्रैल का डेटा दिखाता है कि ये अब उससे काफी ऊपर जा चुकी है। ये लगातार चौथा महीना है जब महंगाई दर आरबीआई की तय लिमिट से ऊपर रही है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने रिजर्व बैंक को खुदरा महंगाई दर दो से छह फीसदी के बीच रखने का आदेश दिया है। फ्यूल की कीमतों में बढ़ोतरी और खाने-पीने के सामान महंगे होने से महंगाई दर में ये जबरदस्त वृद्धि हुई है। अप्रैल में फूड इन्फ्लेशन बढ़कर 8.38 प्रतिशत हो गई,जो इससे पिछले महीने में 7.68 प्रतिशत और एक साल पहले इसी महीने में 1.96 प्रतिशत थी।
सवाल अहम यह है कि महंगाई केवल पेट्रोलियम पदार्थों की ही बढ़ी हो, ऐसा भी नहीं है। पिछले कुछ दिनों दूध, सीएनजी, पीएनजी व मैगी की कीमतों में वृद्धि हुई है। इसी तरह ज्यादा उपयोग किए जाने वाले मशहूर कॉफी ब्रांडों व चायपत्ती के दामों में बढ़ोतरी हुई है। महंगाई की चौतरफा मार का सिलसिला यहीं नहीं खत्म हुआ है, बल्कि 1 अप्रैल से कई जरूरी दवाओं की कीमतें भी बढ़ गई है। चिंता की बात यह भी है कि कोरोना संकट से उपजे हालात में आय के संकुचन के चलते महंगाई की मार दोहरी नजर आ रही है। लगातार बढ़ती महंगाई के बीच पिछले सप्ताह आरबीआई ने चार साल में पहली बार अपनी रेपो दर में बढ़ोतरी करने का ऐलान किया और इसे 40 आधार अंक बढ़ाकर 4.40 प्रतिशत कर दिया। इससे मार्केट में कैश फ्लो कम हो गया है। वहीं ग्लोबल स्तर पर भी महंगाई रेट में इजाफा हुआ है। वैश्विक मोर्चे पर, बढ़ती महंगाई पर काबू पाने क लिए अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने भी अपनी ब्याज दर में 50 बेसिस प्वाइंट (बीपीएस) बढ़ा दिया है, जो कि 22 सालों में सबसे अधिक है। लगातार बढ़ती महंगाई से दुनिया के अधिकतर देश परेशान हैं और वह इस पर काबू पाने के लिए नए-नए उपाय कर रहे हैं। कह सकते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभावों का असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी नजर आने लगा है। यह महंगाई केवल भारत में ही है, ऐसा भी नहीं है। दुनिया के तमाम देश महंगाई की बड़ी मार से जूझ रहे हैं। बहरहाल, कोरोना महामारी के बाद घटी आय के बीच आसमान छूती महंगाई से आम आदमी पर चौतरफा मार पड़ी है।
बीते एक साल में पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस, दूध, चीनी, दाल से लेकर खाने के तेल की कीमत में भयंकर उछाल आया है। इससे कम आय, नौकरीपेशा और मध्यमवर्ग की मुश्किलें बढ़ गई हैं। हालत यह है कि सभी जरूरी वस्तुओं की कीमतों में जोरदार तेजी दर्ज की गई है। यह जगजाहिर तथ्य है कि पेट्रोलियम पदार्थों के उत्पादों की कीमतों में उछाल का महंगाई से सीधा रिश्ता होता है। पेट्रोल-डीजल के मूल्य बढ़ते ही सभी उपभोक्ता वस्तुओं के दाम चढ़ जाते हैं। यूं कहे इससे फूड कॉस्ट बढ़ जाता है, लेकिन हर वृद्धि के साथ सरकार का यही तर्क होता है कि भारत अपनी पेट्रोलियम जरूरतों की पूर्ति करने के लिए आयात पर ज्यादा निर्भर है और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम तेजी से आसमान छू रहे हैं। बेशक यह सच है, पर अधूरा सच। सरकार अकसर इस सच से मुंह चुरा लेती है, क्योंकि जितना उसका वास्तविक मूल्य होता है, उतने ही कर-शुल्क भी सरकार वसूलती है, इसीलिए बार-बार मांग उठती है कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के मूल्य में भारी वृद्धि का पूरा बोझ आम उपभोक्ता पर डालने के बजाय सरकार अपने कर-शुल्कों में भी कुछ कमी करे।
बता दें, पिछले साल 3 नवंबर को केंद्र ने पेट्रोल पर 5 रुपये और डीज़ल पर 10 रुपये सीमा शुल्क घटा दिया था, ताकि पूरे देश में रिटेल कीमतों में कमी की जा सके। इसके बाद तमाम राज्य सरकारों ने वैट को घटा दिया था जिससे लोगों को बढ़ी हुई पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों से थोड़ी राहत जरूर मिली थी, लेकिन एक बार फिर पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में उछाल ने लोगों की परेशानी बढ़ा दी है। बहरहाल, जनता के सामने आज सबसे बड़ी समस्या महंगाई है, जिससे वे व्याकुल हो उठी है। महंगाई की मार ऐसी कि गरीब तो गरीब, मध्यम वर्ग के लोगों को भी चुभने लगी, लेकिन महंगाई यकायक इतना क्यों बढ़ गई इस सवाल का ठोस जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं। कुल मिलाकर इस बढ़ती महंगाई ने आम आदमी को उसके सोच में बदलाव लाने पर मजबूर कर दिया है। ऐसे में, क्या सरकार का यह दावा नहीं बनता कि वह देश की बहुसंख्यक जनता को महंगाई से राहत दिलाने की संजीदा कोशिश करे। इसमें कोई शक नहीं कि आम आदमी के लिए महंगाई आज एक बड़ा मुद्दा है। सवाल है कि बढ़ती महंगाई पर लगाम कैसे लगाई जाए? सबसे पहला काम आपूर्ति श्रृंखला को दुरुस्त करने का होना चाहिए। बाजार तक खाद्यान्न की पर्याप्त आमद सुनिश्चित की जानी चाहिए। पेट्रोलियम उत्पादों पर बढ़ाए गए टैक्स को भी कम करने की दरकार है। सरकारें कह सकती हैं कि टैक्स कम करने से उनकी आमदनी कम हो जाएगी, मगर इच्छाशक्ति हो, तो इस मसले का हल निकल सकता है। अप्रत्यक्ष के बजाय वे प्रत्यक्ष कर बढ़ा सकती हैं। यदि अर्थव्यवस्था को संभालना प्राथमिकता है, तो उन्हें न सिर्फ मांग बढ़ाने के उपाय करने होंगे, बल्कि लोगों की जेब में पैसे भी डालने होंगे। संभव हो, तो शेयर बाजार में लेन-देन पर टैक्स वसूला जा सकता है। इससे सरकारी खजाने में वृद्धि तो होगी ही, महंगाई भी नहीं बढ़ेगी। खैर, वर्तमान हालात को देखते हुए केन्द्र व राज्य सरकारों को अति शीघ्र महंगाई को काबू में करने के उपाय करने चाहिए। यह सरकार की प्राथमिकता हो।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके अपने विचार हैं।)