विवेक शुक्ला का लेख : फिर ना बने भ्रष्टाचार के टावर
हमें समझना होगा कि टि्वन टावर को बनाने वाली कंपनी सुपरटेक बिल्डर्स ने क्या किया? नोएडा अथॉरिटी इस सारे मामले में किस तरह से अपने दायित्वों का निर्वाह करने में असफल रही? लालच का शिकार सुपरटेक ही नहीं हुआ, बल्कि ग्रीन स्पेस पर नये टावर बनाने के लिये अनुमति देने वाले नोएडा अथॉरिटी के अफसर- कर्मी भी मोटे पैसे के लालच में हुए। अब ट्वीन टावर गिर गये हैं तो अब ये सरकार करप्ट बिल्डरों तथा भ्रष्ट सरकारी बाबुओं को कड़ी से कड़ी सजा दे जो किसी हाउसिंग प्रोजेक्ट में घोटाला करते हैं। टि्वन टावर को ध्वस्त करके भारत ने ये संदेश तो दिया है कि देश करप्श्न को नहीं सहेगा, लेकिन अच्छा होता कि करप्शन का टि्वन टावर खड़ा ही नहीं होता।;
विवेक शुक्ला
रविवार 28 अगस्त को घड़ी में जैसे ही ढाई बजे, बस तब ही नोएडा के सुपरटेक ट्वीन टावर में जोरदार ब्लास्ट हुआ और 73 मीटर के कुतुब मीनार से भी ऊंचा 103 मीटर का टि्वन टावर ताश के पत्तों की तरह भर्र-भर्रा के गिर गया। टि्वन टावर के बनने और तोड़े जाने की सारी कथा में बिल्डर की ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने की हवस और सरकारी महकमों में फैले करप्शन को जोड़कर देखा जा सकता है। देश में बिल्डर्स व प्राधिकरणों के नेक्सस नागफनी की तरह देशभर में हैं। इन दोनों पर वार करना होगा। वर्ना तो आगे भी हमें टि्वन टावर जैसी इमारतों को तोड़ने के लिये मजबूर होना होगा। सुपरटेक के इस ध्वस्त टि्वन टावर के बनने के लिये आर्किटेक्ट या फिर सिविल इंजीनियरों को क्यों जिम्मेदार माना जा रहा है। ये सरासर गलत है। ये मूल विषय से भटकना है।
हमें समझना होगा कि टि्वन टावर को बनाने वाली रीयल एस्टेट कंपनी सुपरटेक बिल्डर्स ने क्या किया? हमें ये जानना होगा कि नोएडा अथॉरिटी इस सारे मामले में किस तरह से अपने दायित्वों का निर्वाह करने में असफल रही? दरअसल सुपरटेक बिल्डर्स ने नोएडा अथॉरिटी के अफसरों से मिलकर अपने टावर्स के प्लाट पर और भी टावर खड़े कर दिये। ये ओरिजिल प्लान का हिस्सा नहीं था। सुपरटेक ने उस जगह पर भी टावर खड़े कर दिये थे जिस स्पेस को हरियाली के लिये छोड़ना था। सुपरटेक ने अधिक से अधिक पैसे कमाने की हवस के चलते तमाम गलत काम किये। उस लगा कि ग्रीन स्पेस में भी टावर खड़े करके मोटा पैसा कमाया जा सकता है। वह भ्रष्ट अफसरों को पैसा खिलाकर अपने इरादों में सफल हो जायेगा। उसकी हरकतों पर कोई एतराज नहीं करेगा। गड़बड़ यहां से ही चालू होती है।
लालच का शिकार सुपरटेक ही नहीं हुआ। सुपरटेक ने ग्रीन स्पेस पर नये टावर बनाने के लिये नोएडा अथॉरिटी के अफसरों- कर्मियों को मोटा पैसा खिलाया। इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिये। अब उत्तर प्रदेश सरकार तीन आईएएस अफसरों समेत 30 सरकारी अफसरों पर एक्शन ले रही है। बेशक, टि्वन टावर जागरूक नागरिकों के कारण ही टूटे। उन्होंने सुपरटेक की मनमानी के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखाया। कोर्ट को बताया कि सुपरटेक मनमाने तरीके से टावर खड़े करते जा रहा है ग्रीन स्पेस पर भी। उन नागरिकों की आवाज को कोर्ट ने सुना। इलाहाबाद हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इन टावर्स को गिराने के आदेश दिये। इस पूरे कांड से बिल्डरों को सबक मिलना चाहिये। उन्होंने सीधे सरल लोगों को जमकर लूटा है। उनके साथ धोखा किया है। उनसे किया वादा नहीं निभाया।
किसी इमारत को खड़ा करने में आर्किटेक्ट्स और सिविल इंजीनियरों का अहम रोल तो होता है, पर आर्किटेक्ट का काम सिर्फ बिल्डिंग का डिजाइन बनाना होता है। उस काम में सिविल इंजीनियर उनके साथ होते हैं। आप किसी आर्किटेक्ट को इस बात के लिये घेर सकते हैं कि वह दिव्यांग और बुजुर्ग फ्रेंडली इमारतें नहीं बनाता, इस तरह के घर या दफ्तर नहीं बना रहा है जिसमें सूरज की रोशनी नहीं आती आदि। आप किसी अन्य पाइंट पर भी आर्किटेक्ट को कोस सकते हैं। इसलिये टि्वन टावर को खड़ा करने में आर्किटेक्ट या इंजीनियर कैसे दोषी हो गये। याद रखें कि आर्किटेक्ट तो किसी बिल्डर के मानमाफिक काम करता है। उसे नहीं पता होता है कि बिल्डर ने संबंधित सरकारी विभागों से अपनी इमारतों के लिये हरी झंडी ले ली है अथवा या नहीं।
अगर हम इस केस के पन्नों को पलटें तो पता चलेगा कि नोएडा के सेक्टर-93 स्थित 40 मंजिला टि्वन टावरों का निर्माण सन 2009 में हुआ था। सुपरटेक के दोनों टावरों में 950 से ज्यादा फ्लैट्स बनाए जाने थे। हालांकि, बिल्डिंग के प्लान में बदलाव करने का आरोप लगाते हुए कई खरीदार 2012 में इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए थे। इसमें 633 लोगों ने फ्लैट बुक कराए थे। साल 2014 में नोएडा अथॉरिटी को जोरदार फटकार लगाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टि्वन टावर को अवैध घोषित करते हुए उन्हें गिराने का आदेश दे दिया था। तब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे गिराने का आदेश दिया।
बहरहाल, भारत के के इतिहास में ये पहली बार हुआ जब किसी गगनचुंबी इमारत को विस्फोटक लगाकर उड़ाया गया। 32 मंजिला ट्वीन टावर को गिराने के लिए विस्फोटक लगाने का काम काफी समय से चल रहा था। अब ट्वीन टावर गिर गये हैं तो अब ये सरकार को देखना होगा कि वह करप्ट बिल्डरों तथा सरकारी बाबुओं को कड़ी से कड़ी सजा दे जो किसी हाउसिंग प्रोजेक्ट में घोटाला करते हैं। नोएडा में टि्वन टावर को गिराने की घटना को सारी दुनिया ने देखा होगा, सबक लिया होगा।
इस बीच,केंद्र सरकार ने घर खरीदारों के हितों की रक्षा करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कानून बनाए हैं। मार्च 2016 में पारित 'रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट, 2016' (रेरा) एक ऐसा कानून है, जो घर खरीदारों के अधिकारों की रक्षा करता है और डेवलपरों की मनमानियों पर रोक लगाता है। यह आम लोगों के हितों की रक्षा करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था। इससे रियल एस्टेट में पारदर्शिता बढ़ रही है। चूंकि उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा जैसे शहरों में ढेरों आवासीय परियोजनाएं चल रही हैं और उनमें लाखों लोगों ने घर बुक कराए हैं, उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भी लोगों की हितों की रक्षा के लिए बेहद संवेदनशील है। टि्वन टावर के बनने की कहानी तब की है जब मोदी-योगी सत्ता में नहीं थे। उप्र सरकार ने कई डेवलपरों पर कड़ी कार्रवाई की है। कई कंपनियों के अधिकारियों को जेल में भी डाला है। टि्वन टावर जैसी घटना भारत में फिर नहीं होनी चाहिये। ये भारत को सुनिश्चित करना होगा। कहना ना होगा कि टि्वन टावर को खड़ा करने में सैकड़ों करोड़ रुपये व्यय हुये होंगे। कितने मजदूरों ने खून-पसीना बहाया। ध्वस्तीकरण से संपत्ति की बर्बादी हुई। अगर भ्रष्टाचार का कॉकटेल नहीं होता तो यह बनता ही नहीं। टि्वन टावर को ध्वस्त करके भारत ने ये संदेश तो दिया है कि देश करप्श्न को नहीं सहेगा, लेकिन अच्छा होता कि टि्वन टावर करप्शन की बुनियाद पर खड़ा ही नहीं होता। सरकारी मशीनरी इसे बनने ही नहीं देती। अब इस बिन्दु पर विचार करना होगा कि आखिर रीयल एस्टेट सेक्टर में इतना करप्शन कैसे फैल गया? भ्रष्टाचार पर तो हल्ला बोलना होगा। करप्ट बिल्डरों व प्राधिकरणाके भ्रष्ट कर्मियों को किसी भी सूरत में नहीं छोड़ना होगा। ऐसे लोगों को कड़ी सजा देनी होगी। तब कहीं जाकर रीयल एस्टेट सेक्टर का भ्रष्टाचार खत्म होगा। टि्वन टावर को गिराकर इसका श्रीगणेश हो गया। यह क्रम जारी रहना चाहिये।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)