विवेक शुक्ला का लेख : लाल किला के लिए दो तारीखें खास
15 अगस्त को प्रधानमंत्री द्वारा तिरंगा फहराना आज भले ही स्वतंत्रता दिवस का पर्याय है, लेकिन बहुत कम लोगों को यह बात मालूम होगी कि आजादी हासिल करने के बाद लाल किले पर पहली बार 15 अगस्तको नहीं, बल्कि 16 अगस्त 1947 कोसुबह साढ़े आठ बजे राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था। नेहरू ने पहली बार 16 अगस्त 1947 को सुबह साढ़े आठ बजे लाल किले की प्राचीर पर ध्वजारोहण किया था।;
15 अगस्त को प्रधानमंत्री द्वारा तिरंगा फहराना आज भले ही स्वतंत्रता दिवस का पर्याय है, लेकिन बहुत कम लोगों को यह बात मालूम होगी कि आजादी हासिल करने के बाद लाल किले पर पहली बार 15 अगस्त को नहीं, बल्कि 16 अगस्त 1947 को सुबह साढ़े आठ बजे राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था। नेहरू ने पहली बार 16 अगस्त 1947 को सुबह साढ़े आठ बजे लाल किले की प्राचीर पर ध्वजारोहण किया था। ध्वजारोहण से पहले उस्ताद बिसिमिल्लाह खान ने बांसुरी बजाकर माहौल को खुशगवार बना दिया था। 14 अगस्त 1947 की शाम को ही वायसराय हाउस (अब राष्ट्रपति भवन) के ऊपर से यूनियन जैक को उतार लिया गया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 अगस्त को लाल किले से देश को संबोधित करेंगे। दरअसल लाल किला के लिए दो तारीखें बेहद खास अहमियत रखती हैं। पहली, 29 अप्रैल, 1639 और दूसरी, 15 अगस्त, 1947। भारत को 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिलने के बाद, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले से पहली बार ध्वजारोहण कर देश को संबोधित किया था और देश में अमन, चैन, शांति बनाए रखने एवं इसके अभूतपूर्व विकास करने का संकल्प लिया था। तब ही से हर साल 15 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हैं। 1947 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 72 मिनट तक देशवासियों को संबोधित किया था। इसके बाद 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 94 मिनट तक लाल किले की प्राचीर से भाषण दिया, जो किसी भी प्रधानमंत्री द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर दिया जाने वाला सबसे लंबा भाषण माना जाता है।
प्रधानमंत्री मोदी 77वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से लगातार दसवीं बार तिरंगा ध्वज फहराएंगे। देश के प्रधानमंत्री के तौर पर लाल किले से सबसे ज्यादा 17 बार तिरंगा पंडित जवाहरलाल नेहरू ने फहराया है। उनके बाद पूर्व पीएम इन्दिरा गांधी का स्थान आता है। उन्होंने 17 बार तिरंगा फहराया। अब इस सूची में तीसरे स्थान पर डॉ. मनमोहन सिंह के साथ मोदी शामिल हो जाएंगे। इस बीच, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक और इतिहासकार सर सैयद अहमद खान ने दिल्ली की खासमखास इमारतों पर लिखी अपनी किताब ‘असरारुस्नादीद’ (पूर्वजों की निशानियां) में लिखा कि लाल किले के निर्माण के लिए 50 लाख रुपए रखे गए थे। बहरहाल, शुरू में योजना थी कि लाल किला आगरा के किले से क्षेत्रफल में दो गुना और लाहौर किले से कई गुना बड़ा होगा। लाल किले की प्राचीर पर 15 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री द्वारा तिरंगा फहराना आज भले ही स्वतंत्रता दिवस का पर्याय है, लेकिन बहुत कम लोगों को यह बात मालूम होगी कि आजादी हासिल करने के बाद लाल किले पर पहली बार 15 अगस्त को नहीं, बल्कि 16 अगस्त 1947 को सुबह साढ़े आठ बजे राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था।
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार 16 अगस्त 1947 को सुबह साढ़े आठ बजे लाल किले की प्राचीर पर ध्वजारोहण किया था। उस समय नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के चलो दिल्ली के नारे और दिल्ली के लाल किले पर आजादी के ध्वज को फहराए जाने के अपने सपने का जिक्र किया था। उनके ध्वजारोहण से पहले उस्ताद विसिमिल्लाहखान ने बांसुरी बजाकर पूरे माहौल को खुशगवार बना दिया था। उन्हें उसी सुबह एयरफोर्स के विमान से दिल्ली लाया गया था। इससे पहले 14 अगस्त 1947 की शाम को ही वायसराय हाउस (अब राष्ट्रपति भवन) के ऊपर से यूनियन जैक को उतार लिया गया था। बता दें इसका निर्माण लाल बलुआ पत्थर एवं सफेद संगमरमर के पत्थरों से किया गया था। आप कभी करीब डेढ़ किलोमीटर की परिधि में फैले इस भव्य ऐतिहासिक स्मारक को करीब से देखिए। तब समझ आता है कि ये कितना बुलंद है। इसके चारों तरफ करीब 30 मीटर ऊंची पत्थर की दीवार बनी हुई है, जिसमें मुगलकालीन वास्तु कला का इस्तेमाल कर बेहद सुंदर नक्काशी की गई है। लाल किले के अंदर दो गेट खास हैं। इनमें लाहौर गेट प्रमुख है। आपको बता दें कि इस लाहौर गेट को सैलानियों एवं आम लोगों के लिए खोला गया है, जबकि दिल्ली गेट से सिर्फ वीवीआईपी और कुछ बेहद खास लोग ही प्रवेश पा सकते हैं।
अब इतिहास के पन्नों को खंगालते हैं। अगर बात 29 अप्रैल, 1639 की करें तो उस दिन पांचवे मुगल शासक शाहजहां ने लाल किले की बुनियाद रखने के आदेश जारी किए थे। वह उनके शासनकाल का 12वां वर्ष था। शाहजहां की जीवनी ‘बादशाहनामा’ में बताया गया है कि शाहजहां ने कुछ हिंदू ज्योतिषियों और मुस्लिम धर्मगुरुओं की सलाह के बाद सलीमगढ़ के पास लाल किला का निर्माण करने का निर्णय लिया था। शाहजहां के पूर्वज अकबर और जहांगीर सलीमगढ़ में आया करते थे। सलीमगढ़ को शेरशाह सूरी के पुत्र इस्लाम शाह सूरी ने तामीर करवाया था। लाल किले के बहाने यहां विशाल तुगलकाबाद किले का जिक्र करने का मन कर रहा है। उसका निर्माण सन 1321 में शुरू हुआ था और यह केवल 4 वर्षों में बन कर तैयार हुआ। लाल किले का असली नाम किला-ए-मुबारक है। शाहजहां ने लाल किले के डिजाइन की जिम्मेदारी उस्ताद अहमद लाहौरी को सौंपी थी। उस्ताद अहमद लाहौरी वही आर्किटेक्ट थे जिन्होंने ताजमहल को भी डिज़ाइन किया था।
जाहिर है कि शाहजहां को ताजमहल के निर्माण के बाद उस्ताद अहमद लाहौरी की क्षमताओं का पता चल ही गया था, इसलिए लाल किले के लिए भी उनका ही चयन हुआ। हालांकि उन्हें कुछ और भी आर्किटेक्ट सहयोग कर रहे थे। दरअसल शाहजहां अपनी पत्नी मुमताज के ताज महल परिसर में बनाए गए मकबरे के डिजाइन से इतना मुतासिर थे कि उन्होंने लाल किले के डिजाइन की बड़ी जिम्मेदारी उस्ताद लाहौर को दी। इतिहासकार राना साहवी कहती हैं ‘उस्ताद लाहौरी का ज्ञान, अनुभव और क्षमताएं निर्विवाद थीं। इसलिए ही शाहजहां ने इन पर भरोसा किया। ताज महल और लाल किले जैसी शानदार इमारतें इनकी काबिलियत की तसदीक करती है।’
मुगल बादशाह शाहजहां ने लाल किले के निर्माण से जुड़े लोगों को साफतौर पर बता दिया था कि वे चाहते हैं कि इसका निर्माण शीघ्र हो। इसमें देरी स्वीकार नहीं होगी। जाहिर है कि बादशाह के आदेश के बाद देश भर के निर्माण क्षेत्र के विशेषज्ञों ने दिल्ली में डेरा जमा लिया। लगभग 9 सालों के बाद लाल किला बनकर तैयार हुआ। तब ये जानकारी शाहजहां को दी गई। शाहजहां उस समय काबुल के दौरे पर थे। वे तुरंत दिल्ली लौट आए। वे खुश थे कि लाल किला बन गया था। उन्होंने 15 अक्तूबर, 1645 को इस बुलंद इमारत को पहली बार देखा। वे इसे देखते ही प्रसन्न हो गए। कम लोगों को पता होगा कि मुगल दौर की इस बुलंद इमारत को ‘किला ए मुबारक’ भी कहा जाता था।
लाल किले का जब निर्माण किया गया था तब इसे कोहिनूर हीरा जैसे कई बहुमूल्य रत्नों से सजाया गया था, लेकिन जब भारत पर अंग्रेजों का राज हुआ, तब वे इसे निकाल कर ले गए थे। इसके साथ ही इस विशाल किले के अंदर शाही मयूर राज सिंहासन भी बनाया गया था, जिस पर बाद में अंग्रेजों में अपना कब्जा जमा लिया था। 1857 की क्रांति के दौरान इस पर गोरे सैनिकों ने हमला करके इसे बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया था। लाल किले पर साल 1747 में नादिर शाह ने भी कसकर लूटपाट की थी। आप जानते हैं कि जब स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री लाल किले से देश का तिरंगा फहरा रहे होते हैं तब उनके सामने चांदनी चौक का गौरी शंकर मंदिर, गुरुद्वारा सीसगज और जामा मस्जिद भी होती हैं। शाहजहां और लाल किले का जिक्र हो और जामा मस्जिद की बात ना हो यह कैसे हो सकता है।
विवेक शुक्ला (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)