Ahoi ashtami 2020: जानिए अहोई अष्टमी व्रत में स्याहु की माला क्यों धारण करती हैं महिलाएं

Ahoi ashtami 2020 : अहोई अष्टमी के व्रत में स्याहू माला महिलाएं गले में धारण करती हैं। यह माला चांदी के दानों से बनाई जाती है। स्याहू माला कलावे में चांदी के दाने और अहोई माता वाले लॉकेट के साथ बनाई जाती है। और अहोई अष्टमी व्रत में महिलाएं स्याहू माला पहनती हैं।;

Update: 2020-11-04 03:19 GMT



Ahoi ashtami 2020 : अहोई अष्टमी के व्रत में स्याहु माला महिलाएं गले में धारण करती हैं। यह माला चांदी के दानों से बनाई जाती है। स्याहू माला कलावे में चांदी के दाने और अहोई माता वाले लॉकेट के साथ बनाई जाती है। और अहोई अष्टमी व्रत में महिलाएं स्याहू माला पहनती हैं। क्या आप भी स्याहु माला का महत्व जानते हैं। तो आइए आप भी जानें स्याहु माला का महत्व।


कार्तिक के महीने में अहोई अष्टमी का व्रत अपने पुत्रों की मंगलकामना के लिए किया जाता है। करवा चौथ के बाद महिलाएं अहोई अष्टमी का व्रत पुत्रों के लिए करती हैं। माताएं अहोई देवी से पुत्रों की लंबी आयु की कामना करती हैं।


इस दिन माताएं संकल्प लेती हैं कि हे अहोई माता मैं अपने पुत्रों की लम्बी आयु एवं सुखमय जीवन हेतु अहोई व्रत कर रही हूं।


अहोई व्रत के लिए महिलाएं पूरे विधि-विधान से अहोई व्रत करती हैं। पूजा सामग्री के साथ महिलाएं एक चांदी की माला भी धारण करती हैं। इस माला का अहोई पूजा में काफी अहम योगदान है। अहोई पूजा में चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहते हैं। कलावे में चांदी के दाने और माता अहोई की मूरत वाले लॉकेट के साथ माला बनाई जाती है।


इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। व्रती महिलाएं इसे गले में धारण करती हैं। व्रत शुरू करने से लगातार इस माला को दिवाली तक पहनना अनिवार्य होता है।


माला की पूजा करने का खास विधान है। और पूजा पूरे विधि-विधान से करनी चाहिए।


पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रखना चाहिए। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं।


 ऐसा माना जाता है कि स्याहु की माला में हर साल एक दाना बढ़ाया जाता है। इसके अनुसार ही पुत्र की आयु बढ़ती जाती है। वहीं स्याहु की माला की पूजा करना भी आवश्यक है।


 अहोई का व्रत करवा चौथ के बाद किया जाता है। अहोई अष्टमी बच्चों की खुशहाली के लिए किया जाने वाला व्रत है। मां रात को तारे देखकर अपने पुत्र की दीर्घायु होने की कामना करती है। और उसके बाद महिलाएं व्रत खोलती हैं।


 नि:संतान महिलाएं अपनी संतान की प्राप्ति की कामना से अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं। अहोई का व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। व्रत को करने से घर में खुशहाली आती है। दिवाली के दिन पुत्र करवा के जल से स्नान किया जाता है।  

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