जानिए अहोई अष्टमी 2020 तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजन विधि

Ahoi Ashtami 2020: अहोई अष्टमी का व्रत हिन्दू कलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यानि अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली से आठ दिन पहले रखा जाता है।;

Update: 2020-09-29 07:58 GMT

Ahoi Ashtami 2020: अहोई अष्टमी का व्रत हिन्दू कलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यानि अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली से आठ दिन पहले रखा जाता है। अहोई अष्टमी का व्रत समस्त उत्तर भारत में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इसे अहोई आठें भी कहा जाता है। क्योंकि यह व्रत अष्टमी के दिन पड़ता है। अहोई यानि कि अनहोनी से बचाना। किसी भी मंगल, किसी भी अमंगल अर्थात किसी भी अनिष्ट से अपने बच्चों की रक्षा करने के लिए माताएं अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं। तथा संतान की कामना के लिए भी अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है। अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं कठोर व्रत रखती हैं। तथा पूरे दिन पानी के एक बूंद भी ग्रहण नहीं करती हैं। दिन भर के व्रत के बाद शाम को तारों को अर्घ्य दिया जाता है। हालांकि कुछ स्थानों पर चंद्रमा के दर्शन करके भी यह व्रत संपन्न किया जाता है। लेकिन इस दौरान चंद्रोदय काफी देर से होता है। इसलिए तारों को ही अर्घ्य दे दिया जाता है। वैसे कई स्थानों पर महिलाएं चंद्रोदय तक इंतजार करती हैं। और चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत का पारण करती हैं।

मान्यता है कि अहोई अष्टमी के व्रत के प्रताव से बच्चों की रक्षा होती है। साथ ही अहोई अष्टमी व्रत को संतान प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। अहोई अष्टमी के दिन ब्रज में राधाकुंड में स्नान किए जाने का भी शास्त्रों में बहुत महत्व बताया गया है। कहा जाता है कि राधाकुंड में स्नान करने से निसंतान दंपत्ति को संतान का सुख प्राप्त होता है। कार्तिक मास की अष्टमी के दिन राधाकुंड में स्नान करने वाली सुहागिन महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है।

अहोई अष्टमी की तिथि

अष्टमी तिथि प्रारम्भ : 08 नवंबर 2020, प्रात: 07:29 बजे

अष्टमी तिथि समाप्त : 09 नवंबर 2020, प्रात: 06:50 बजे

अहोई अष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त : शाम 05:42 बजे से शाम 06:58 बजे तक

तारों को देखने के समय: शाम 06:05 बजे

अष्टमी तिथि पर चंद्रोदय का समय: रात्रि 12:10 बजे

अहोई अष्टमी की पूजा विधि

अहोई अष्टमी के दिन प्रात: उठकर नित्यक्रियाओं से निवृत होकर स्नान आदि करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। तथा घर के मंदिर में पूजा के लिए बैठकर व्रत का संकल्प लें। दीवार पर गेरू अथवा चावल से अहोई माता यानि मां पार्वती और स्याहू व उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं। अगर ऐसा बनाना आपके लिए संभव ना हो तो आप बाजार से अहोई अष्टमी का फोटो ले सकती हैं। और दीवार पर लगा सकती हैं। अब मां पार्वती की तस्वीर के सामने चावल से भरा हुआ कटोरा और दीपक रखें। तथा एक लोटे में पानी रखें और उसके ऊपर पानी से भरा हुआ एक करवा रखें। ध्यान रखें कि यह करवा कोई दूसरा नहीं बल्कि करवा चौथ के व्रत में इस्तेमाल किया गया ही होना चाहिए। दीपावली के दिन इस करवे के पानी का छिड़कांव पूरे घर में किया जाना चाहिए। इसके बाद अपने हाथ में चावल लेकर अहोई अष्टमी व्रत की कथा पढ़ें और श्रवण करें। कथा पढ़ने और सुनने के बाद हाथ में लिए हुए चावलों को दुपट्टे या साड़ी के पल्लू में बांध लें। शाम के समय दीवार पर बनाए गए चित्रों की पूजा करें। और अहोई माता को 14 पूड़ियां, आठ पुए और खीर का भोग लगाएं। तथा माता अहोई को लाल रंग के फूल अर्पित करें। अहोई अष्टमी की व्रत कथा पढ़ें। तथा लोटे के पानी और चावलों से तारों को अर्घ्य दें। तथा बायना निकालें। अहोई अष्टमी के व्रत में बायना सास, नन्द अथवा जेठानी को दिया जाता है। व्रत पूरा होने पर व्रती महिलाएं अपनी सास, ननद और जेठानी आदि परिवार के बड़े सदस्यों के पैर छूकर आशीर्वाद लेती हैं। तथा इसके बाद व्रती महिलाएं अन्न-जल आदि ग्रहण करती हैं। अहोई माता की माला को दीपावली तक गले में धारण करना चाहिए।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में महिलाएं अहोई माता की चांदी से बनी माला में प्रतिवर्ष दो मनके यानि दो मोती पिरोती हैं। इस प्रकार महिलाएं अपनी संतान की आयु अहोई माता के अनुरूप परिभाषित करती हैं। तारों के निकलने पर करवे के शुद्ध पानी को उनको अर्पित करना चाहिए। आसमान में तारा दिखते ही माताएं अपने बच्चों के हाथ से पानी पीकर व्रत को संपन्न करती हैं। अहोई अष्टमी का त्योहार मां और बच्चों के प्रेम और स्नेह का प्रतीक भी माना जाता है। 

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