Chhath Puja 2020: जानिए छठ व्रत में किसकी पूजा की जाती है, क्या हैं इस व्रत के नियम
Chhath Puja 2020: महापर्व छठ कब और कैसे शुरू हुआ इस बात की कोई भी ठोस जानकारी नहीं है। इस बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं।;
Chhath Puja 2020: महापर्व छठ कब और कैसे शुरू हुआ इस बात की कोई भी ठोस जानकारी नहीं है। इस बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरूआत महाभारत काल में हुई थी। ऐसा बताया जाता है कि सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा की। दरसअल कर्ण तो प्रतिदिन ही सूर्य की आराधना करते थे ना कि छठ का पर्व मनाते थे।
ऐसी ही एक कहानी पुराणों में भी वर्णित है जोकि राजा प्रियंवत्त की कहानी है। आप किसी भी कहानी को सुनेंगे तो मन में अनेक प्रश्न उठ खड़े होंगे। जैसे छठी मईया क्यों कहते हैं? क्या ये सूर्यदेव की पूजा है? यदि है तो छठ में मां का बोध क्यों होता है? छठी मईया क्यों कहते हैं? कई धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठ में देवों के देव महादेव के बड़े पुत्र कार्तिकेय की पूजा की जाती है।
छठी मईया यानि इस नाम से छह मांओं का बोध होता है। कहा जाता है कि भगवान कार्तिकेय की छह केयरटेकर थीं। यानि उन्हें पालने वाली छह माताएं थीं। जोकि उनकी देखरेख करती थीं। जैसे कि भगवान कृष्ण की मां यशोदा को भी कहा जाता है। जबकि उनकी असली मां देवकी थीं। और यशोदा केयरटेकर थीं। अथवा यशोदा श्रीकृष्ण की केवल पालने वाली मां थीं। और हिन्दू धर्म में पालने वाली मां का दर्जा पैदा करने यानि जन्म देने वाली मां से ऊपर रखा गया है। इसलिए छठ महापर्व में भगवान कार्तिकेय को पालने वाली उन्हीं छह मईयाओं की पूजा होती है। तथा छठ के दौरान भगवान कार्तिकेय की पूजा (Indirect) अप्रत्यक्ष रूप की जाती है। छठी मईया की पूजा करने का मतलब है भगवान कार्तिकेय की पूजा करना।
जहां तक सूर्य की बात है तो वहां सूर्य की पूजा ही नहीं होती है। दरसअल सूर्य को साक्षी मानकर छठी मईया की पूजा होती है। वैसे ही जैसे हवन कुंड का प्रयोग अग्नि को साक्षी मानकर पूजा करने के लिए प्रयोग किया जाता है। क्योंकि अग्नि को साक्षी मानकर हम लोग पूजा आरंभ करते हैं। वैसे ही छठ में उगते सूर्य और डूबते सूर्य को साक्षी मानकर पूजा की जाती है। क्योंकि सूर्य का महत्व हिन्दू धर्म की प्रत्येक पूजा में है। पूजा सूर्योदय में शुरू करते हैं और शाम की पूजा सूर्यास्त या सूर्य डूबने से पहले पूरी कर लेते हैं। भगवान कार्तिकेय को भगवान मुर्गन भी कहते हैं।
अगर छठ की बात करें तो ये दुनिया की सबसे कठिन पूजा है। छठ पूजा चार दिवसीय व्रत है। इस दौरान व्रत करने वाले को लगातार 36 घंटे तक व्रत रखना होता है। इस दौरान व्रती लोग अन्न तो क्या पानी भी नहीं पी सकते हैं। व्रती को भोजन के साथ-साथ बिस्तर का भी त्याग करना होता है। एक अलग कमरे में फर्श पर कंबल या चादर बिछाकर सोना पड़ता है। सिले हुए कपड़े नहीं पहन सकते हैं। इसलिए व्रती लोग बिना सिले हुए कपड़े ही इस दौरान पहनते हैं। यहां तक की चप्पल भी नहीं पहन सकते है। किसी भी प्रकार की कोई सुख-सुविधा व्रती लोग नहीं ले सकते। छठ पूजा के दौरान महिलाएं साड़ी और पुरुष लोग धोती पहनकर पूजा करते हैं।
छठ पूर्व के दौरान शुद्धता का बहुत ज्यादा ख्याल रखना होता है। जरा सा भी अशुद्ध हुए तो स्नान करना पड़ता है। इस पर्व में पूजा करने वाली व्रती खाली नहीं बैठती। उपवास के साथ-साथ पूजा से संबंधित अन्य कार्यों को भी करना पड़ता है।
प्रसाद भी व्रती लोग स्वयं ही बनाती हैं। जिसमें गेंहू धोने से लेकर गेंहू सुखाने तक शामिल है। और गेंहू सुखाते समय वहीं बैठना पड़ता है। क्योंकि यदि किसी चिड़िया ने गेंहू चुग लिया या चिड़िया गेंहू पर बैठ भी गई तो गेंहू अशुद्ध हो जाएगा। और फिर से धोकर सुखाना पड़ेगा। जोकि इस पूजा को और भी कठिन बना देता है। इसमें श्रद्धा और आस्था का अंदाजा इसी बात से लगाया जाता है कि कई लोग घर से लेकर घाट तक दंडवत नमस्कार करते हुए जाते हैं। छठ बहुत ही ज्यादा अनुशासन वाला व्रत है।