Dev Uthani Ekadashi 2022 : देवउठनी एकादशी पर करें इस मंत्र का जाप, मिलेगा श्रीहरि का आशीर्वाद
Dev Uthani Ekadashi 2022 : देवउठनी एकादशी का व्रत सभी एकादशी व्रतों में श्रेष्ठ माना जाता है। कहा जाता है कि, देवउठनी एकादशी के दिन नियमपूर्वक व्रत करने से सहस्त्रों यज्ञ करने का पुण्यफल प्राप्त होता है। वहीं भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए एकादशी व्रत से बड़ा कोई अन्य व्रत नहीं होता है।;
Dev Uthani Ekadashi 2022 : देवउठनी एकादशी का व्रत सभी एकादशी व्रतों में श्रेष्ठ माना जाता है। कहा जाता है कि, देवउठनी एकादशी के दिन नियमपूर्वक व्रत करने से सहस्त्रों यज्ञ करने का पुण्यफल प्राप्त होता है। वहीं भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए एकादशी व्रत से बड़ा कोई अन्य व्रत नहीं होता है। एकादशी व्रत करने वाला मनुष्य कभी भी नर्कगामी नहीं होता है, ऐसा मनुष्य अपने साथ अपने पितृों का भी उद्धार करता है और मृत्यु के उपरांत परमगति प्राप्त करता है। ऐसे व्यक्ति को अपने जीवनकाल में संसार के सभी भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है और उसके धन-वैभव और ऐश्वर्य में कोई कमी नहीं होती है। वहीं चातुर्मास की समाप्ति पर देवउठनी एकादशी के दिन शुभ मुहूर्त में भगवान श्रीहरि विष्णु को को जगाने के दौरान कुछ विशेष मंत्रों का जाप करना आवश्यक होता है। माना जाता है कि, अगर भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए इन मंत्रों का जाप श्रद्धा पूर्वक किया जाए तो मनुष्य को उनकी कृपा जरुर मिलती है। तो आइए जानते हैं, देवउठनी एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु के किन मंत्रों का जाप करना चाहिए।
देवउठनी एकादशी शुभ मुहूर्त 2022
एकादशी तिथि शुरू | 03 नवंबर 2022, शाम 07:30 बजे |
एकादशी तिथि समापन | 04 नवंबर 2022, शाम 6:08 बजे |
तुलसी विवाह | 05 नवंबर 2022, दिन शनिवार |
भगवान विष्णु को जगाने का मंत्र और विधि
देवउठनी एकादशी के दिन शुभ मुहूर्त में भगवान विष्णु का धूप, दीप, पुष्प, फल, अर्घ्य आदि से पूजन करें और उसके बाद भगवान को चादर आदि अर्पित करें। इसके बाद भगवान विष्णु को जगाने के लिए उनके मंत्रों का जाप करें और शंख, घंटा-घड़ियाल आदि वाद्ययंत्र को बजाकर उनकी स्तुति करें।
मंत्र
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदिम्।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे। हिरण्याक्षप्राघातिन् त्रैलोक्यो मंगल कुरु।।
इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं संपूर्णतां यातु त्वत्वप्रसादाज्जनार्दन।।
इन मंत्रों का जप करने के बाद भगवान श्रीहरि की आरती करें और इसके बाद भगवान विष्णु का जयघोष करें और उन्हें मन ही मन प्रणाम करें और उनका ध्यान करते हुए प्रसाद का वितरण करें।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।)