Dhanteras 2020 Kab Hai : धनतेरस 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा

Dhanteras 2020 Kab Hai : कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार को धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। दिवाली के पांच दिन के त्योहारों को मनाने में धनतेरस पहला त्योहार है। जिसमें भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के साथ भगवान धनवंतरी की भी पूजा की जाती है तो चलिए जानते हैं धनतेरस 2020 में कब है (Dhanteras 2020 Mein Kab Hai), धनतेरस का शुभ मुहूर्त (Dhanteras Shubh Muhurat), धनतेरस का महत्व (Dhanteras Importance), धनतेरस की पूजा विधि (Dhanteras Puja Vidhi) और धनतेरस की कथा (Dhanteras Story);

Update: 2020-09-07 13:03 GMT

Dhanteras 2020 Kab Hai: धनतेरस के दिन जो भी खरीदा जाता है। उसका फल कई गुना अधिक मिलता है। यह दिन भगवान धनवंतरी की पूजा (Lord Dhanvantri Puja) के लिए विशेष माना जाता है। इतना ही नहीं इस दिन सोना, चांदी और पीतल के बर्तन भी खरीदना भी बहुत ही ज्यादा शुभ माना जाता है। दिवाली की शुरुआत धनत्रयोदशी यानी धनतेरस से ही हो जाती है। माना जाता है कि इस दिन झाडू खरीदने से मां लक्ष्मीं (Goddess Laxmi) का वास घर पर होता है।

धनतेरस 2020 तिथि (Dhanteras 2020 Tithi)

धनतेरस तिथि - 13 नवंबर 2020

धनतेरस 2020 शुभ मुहूर्त (Dhanteras 2020 Shubh Muhurat)

धनतेरस शुभ मुहूर्त - शाम 5 बजकर 28 मिनट से शाम 5 बजकर 59 मिनट तक (13 नवम्बर 2020)

प्रदोष काल मुहूर्त - शाम 5 बजकर 28 मिनट से रात 8 बजकर 07 मिनट तक (13 नवम्बर 2020)

वृषभ काल मुहूर्त - शाम 5 बजकर 32 मिनट से शाम 7 बजकर 28 मिनट तक

त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ - रात 9 बजकर 30 मिनट बजे से (12 नवम्बर 2020)

त्रयोदशी तिथि समाप्त - अगले दिन शाम 5 बजक 59 मिनट तक

धनतेरस का महत्व (Dhanteras Ka Mahatva)

धनतेरस के दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के साथ- साथ भगवान धनवंतरी की भी पूजा की जाती है। भगवान धनवंतरी समुद्र मंथन के समय 14वें रत्न के रूप में पीतल का अमृत कलश लिए हुए समुद्र मंथन के द्वारा प्रकट हुए थे। जिस दिन भगवान धनवंतरी प्रकट हुए थे वह दिन त्रयोदशी का था। इसी कारण से धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। इसी कारण से धनतेरस के दिन पीतल खरीदना काफी शुभ माना जाता है।

दिवाली हिंदू धर्म का एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। जिसकी शुरूआत धनतेरस से ही जाती है। पांच दिनों तक मनाए जाने वाले इस पर्व में भगवान गणेश ,माता लक्ष्मीं और कुबेर जी की पूजा की जाती है। इस दिन सोना,चांदी और पीतल की वस्तुएं खरीदना बहुत ही शुभ माना जाता है। इसके साथ ही इस दिन झाडू खरीदने को भी विशेष महत्व दिया जाता है क्योंकि झाडू में मां लक्ष्मी का वास माना जाता है।

धनतेरस की पूजा विधि (Dhanteras Puja Vidhi)

1. धनतेरस पर शाम के समय पूजा की जाती है। इसलिए शाम के समय स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें।

2. इसके बाद उत्तर दिशा में पूजा स्थल पर कुबेर जी और भगवान धनवंतरी की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें।

3.लेकिन कुबेर जी और भगवान धनवंतरी की पूजा से पहले भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की विधित पूजा अवश्य करें।

4.धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरी को पीले वस्त्र, पीले फूल अवश्य अर्पित करें और उनकी धूप व दीप से आरती उतारने के बाद पीली मिठाई का ही भोग लगाएं।

5.इसके बाद अपने घर के बाहर एक दीपक अवश्य जलाएं। ऐसा करना बहुत ही शुभ माना जाता है।

धनतेरस की कथा (Dhanteras Story)

धनतेरस की कथा एक समय की बात है भगवान नायारण ने मृत्युलोक जाने का सोचा तो माता लक्ष्मी जी ने भी भगवान विष्णु के साथ चलने को कहा तो श्री हरि नारायण ने एक शर्त रखी कि जो मैं कहूँगा अगर आप वैसा ही करेंगी तो आप मेरे साथ चल सकती हैं। विष्णु जी की बात को लक्ष्मी जी ने स्वीकारा और दोनों पृथ्वी पर आ गए।विष्णु जी ने माँ लक्ष्मी जी से कहा कि जब तक मैं ना आऊं आप यहां बैठो और मैं जिस भी दिशा में जा रहा हूँ आप उस दिशा में मत देखना।

माता लक्ष्मी जी ने हाँ तो कर दिया लेकिन मन में सवाल उठा कि आखिर दक्षिण दिशा में क्या है जो मुझे मना कर दिया , लक्ष्मी जी को ये बात पसंद नहीं आई और थोड़ी देर में विष्णु जी के पीछे-पीछे चल दी तो कुछ दूर जाकर देखा तो खेत में सरसों उग रही थी माता ने सरसों का फूल तोड़ अपना श्रृंगार करने लगी और फिर गन्ने का खेत आया तो गन्ना खानें लगीं। तभी विष्णु जी की नजर पड़ी तो उन्होंने माता लक्ष्मी जी को शाप दिया कि तुमनें किसान की चोरी की है तुम्हें सजा के रूप में 12 वर्ष तक किसान की सेवा करनी होगी।

माता लक्ष्मी किसान के घर चली गई और भगवान विष्णु क्षीरसागर। किसान बहुत गरीब था तो माता लक्ष्मी जी ने किसान की पत्नी से उनके स्वरुप लक्ष्मी जी की पूजा करने को कहा। किसान का घर धन अन्न से भर गया।12 वर्ष बाद जब विष्णु जी लक्ष्मी जी को लेने आये तो किसान से मना कर दिया, तब श्री हरि ने एक युति सोची और वारुणी पर्व पर लक्ष्मी जी को फिर लेने आये और कौड़ियाँ देते हुए कहा कि मैं तब तक यहां रहूँगा जब तक तुम गंगा स्नान करके नहीं आते।

किसान ने चार कौड़ियां गंगा में डालीं तो चार हाथ गंगा में से निकले और उन कौड़ियों को ले लिया। तब किसान को ज्ञान हुआ कि यह कोई देवी शक्ति है। फिर किसान ने माँ गंगा से पूछा कि ये ये चार भुजाएं किसकी हैं ? तो मां गंगाजी ने कहा कि मेरे ही हैं। तूने जो कौड़ियां दीं यह तुम्हें किसने दी..?' तब किसान ने बतया उनके घर काम कर रही स्त्री ने दी है। फिर माँ गंगा ने बताया कि वह स्त्री साक्षात माता लक्ष्मी हैं और वे पुरुष भगवान विष्णु हैं।

अगर तुमने उन्हें घर से जाने दिया तो तुम पुन: निर्धन हो जाआगे। इनको मेरा शाप लगा है और इनका समय पूरा हो गया है। किसान ने भी हां में सर हिलाया। माता लक्ष्मी जी को जब ये सब पता चला।तो लक्ष्मीजी ने किसान से कहा तुम अगर मुझे रोकना चाहते हो तो कल तेरस है जैसा मैं कहूँ वैसा ही करोगे तो यह तेरस तुम्हारे लिए धनतेरस बन जाएगी। किसान ने माता के कहे अनुसार घर को लीपा घी का दीपक जलाया पूजा की और एक तांबे के कलश में रुपया भरकर रख दिए। उसका घर धन-धान्य से भर गया। और फिर हर वर्ष इसी तरह तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा करने लगा। 

Tags:    

Similar News