Dussehra 2020 Date And Time : दशहरा 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा

Dussehra 2020 Date And Time : अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा का त्योहार मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार दशहरे के दिन ही भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था। इस दिन रावण,मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले फूंक कर लोगो को बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया जाता है तो चलिए जानते हैं दशहरा 2020 में कब है (Dussehra 2020 Mein Kab Hai), दशहरा का शुभ मुहूर्त (Dussehra Ka Shubh Muhurat),दशहरा का महत्व (Dussehra Importance),दशहरा की पूजा विधि (Dussehra Puja Vidhi)और दशहरा की कथा (Dussehra Story);

Update: 2020-08-22 10:45 GMT

Dussehra 2020 Date And Time  : शारदीय नवरात्रि के बाद दशमी तिथि को दशहरा का त्योहार (Dussehra Festival) मनाया जाता है। दशहरे की तैयारियां काफी समय पहले से होनी शुरू हो जाती है। शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri ) पर जगह- जगह रामलीला का आयोजन होता है और नाटक के रूप में भगवान श्री राम और रावण के युद्ध को दर्शाया जाता है। दशहरे का यह त्योहार हर साल लोगो को यह बताने के लिए मनाया जाता है कि किस प्रकार अच्छाई ने बुराई पर जीत हासिल की थी और बुराई कितनी भी बड़ी हो उसे अच्छाई के सामने हारना ही पड़ता है। जिससे लोग समाज में कोई भी बुरा कार्य करने से डरें।


दशहरा 2020 तिथि (Dussehra 2020 Tithi)

26 अक्टूबर 2020

दशहरा 2020 शुभ मुहूर्त (Dussehra 2020 Shubh Muhurat)

दसरा विजय मुहूर्त - दोपहर 2 बजकर 05 मिनट से दोपहर 02 बजकर 52 मिनट तक

दशमी तिथि प्रारम्भ - सुबह 07 बजकर 41 मिनट से (25 अक्टूबर 2020)

दशमी तिथि समाप्त - अगले दिन सुबह 9 बजे तक (26 अक्टूबर 2020)


दशहरा का महत्व (Dussehra Ka Mahatva)

अश्विन मास की महानवमी के दिन दशहरे का त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार को बुराई की हार और अच्छाई की जीत के रूप मे मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार दशहरे के दिन ही भगवान श्री राम ने अहंकारी रावण का वध किया था और पृथ्वीं को उसके पापों से मुक्ति दिलाई थी। रावण के दस सिरों वाले रावण को मारा था।इसी कारण से इस त्योहार को दशहरा के नाम से जाना जाता है। दशहरे से नौ दिन पहले यानी नवरात्रि पर जगह-जगह रामलीला का आयोजन किया जाता है।

दशहरे के दिन रावण के साथ मेघनाद और कुंभकर्म के पुतले फूंक कर लोगो को बुराई पर अच्छाई की जीता का संदेश दिया जाता है। इसी वजह से दशहरे को विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है। इतना ही नहीं दशहरे पर कई जगह मेले का आयोजन भी किया जाता है। भारत में दशहरे के त्योहार को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन उत्तर भारत में दशहरे को अधिक महत्व दिया जाता है।


दशहरे की पूजा विधि (Dussehra Puja Vidhi)

1.दशहरे के दिन शस्त्र पूजा के विशेष महत्व दिया जाता है। इसलिए इस दिन श्रत्रिय लोग शस्त्र पूजा करते हैं।

2.इस दिन शस्त्रों के पूजा से पहले इन्हें पूजा स्थान पर लाल कपड़ा बिछाकर रख दिया जाता है और उसके बाद सभी शस्त्रों पर गंगाजल छिड़का जाता है।

3.गंगाजल छिड़कने के बाद शस्त्रों पर हल्दी और कुमकुम का तिलक किया जाता है और उन पर फूल अर्पित किए जाते हैं।

4.इसके बाद शस्त्रों पर शमी के पत्तों को अर्पित किया जाता है। माना जाता है कि दशहरे के दिन शमी के पत्ते शस्त्रों पर अर्पित करना बहुत ही शुभ होता है।

5.पूजा के बाद शस्त्रों को प्रणाम करें और भगवान श्री राम का ध्यान करें। इसके बाद शस्त्रों को अपने स्थान पर ही रख दें और शमी के पेड़ की पूजा अवश्य करें।


दशहरा की कथा (Dussehra Ki Katha)

वाल्मिकी रामायण के अनुसार त्रेतायुग में भगवान श्री राम को अपने पिता के वचन के कारण चौदह वर्ष के वनवास पर जाना पड़ा था। भगवान श्री राम के साथ वनवास पर माता सीता और उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी गए थे। एक बार वन में भगावान श्री राम देखकरर रावण की बहन सूर्पनखा उन पर अत्यंत ही मोहित हो उठी। जिसके बाद वह एक सुंदरी का रूप बनाकर भगवान श्री राम के पास गई और उनसे अपने साथ विवाह करने के लिए कहा।

भगवान श्री राम ने सूर्पनखा से बड़ी ही विनम्रता पूर्वक कहा कि वह उनसे विवाह नहीं कर सकते। क्योंकि वह अपनी पत्नी को वचन दे चुके हैं कि वह किसी और से कभी भी विवाह नहीं करेंगे। जब भगवान श्री राम ने सूर्पनखा से विवाह के लिए मना कर दिया तो वह लक्ष्मण के पास गई और उसने लक्ष्मण के सामने भी यही प्रस्ताव रखा। लक्ष्मण ने भी सूर्पनखा से विवाह के लिए मना कर दिया। लेकिन सूर्पनखा लक्ष्मण से विवाह के लिए जिद्द करने लगी।

जब सूर्पनखा ने लक्ष्मण की बात नहीं मानी तो लक्ष्मण ने सूर्पनखा की नाक को काट दिया। सूर्पनखा रोती हुई अपने भाई लंका पति रावण के पास पहुंच गई और उसे सारा वृतांत सुनाया। इसके बाद रावण एक साधु का भेष बनाकर माता सीता के पास गया और छोखे से उनका हरण कर लिया। इसके बाद भगवान श्री राम के परमभक्त हनुमान जी ने लंका जाकर माता सीता को खोज निकाला। सभी ने रावण को समझाया की वह सम्मान के साथ माता सीता को श्री राम को सौंप दे।

लेकिन वह अपने अंहकार में इतना अधिक डूबा हुआ था कि उसने किसी की भी एक न सुनी। इसके बाद राम और रावण का बहुत ही भंयकर युद्ध हुआ। जिसमें भगवान श्री राम ने रावण को मार दिया। जिस दिन रावण का वध हुआ था। उस दिन शारदीय नवरात्रि की दशमी तिथि थी। इसलिए इस त्योहार को दशहरा के नाम से मनाया जाता है। इस दिन को उत्तर भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।

जिसमें लोगों को बुराई पर अच्छाई का संदेश दिया जाता है। रावण के साथ- साथ इस दिन कुंभकर्ण और मेघनाथ के भी पुतले फूंके जाते हैं। नवरात्रि के पूरे नौ दिन रामलीला का कार्यक्रम चलता है और दशमी तिथी को रावण दहन किया जाता है। 

भगवान राम की आरती (Lord Rama Aarti)

आरती कीजै रामचन्द्र जी की।

हरि-हरि दुष्टदलन सीतापति जी की॥

पहली आरती पुष्पन की माला।

काली नाग नाथ लाये गोपाला॥

दूसरी आरती देवकी नन्दन।

भक्त उबारन कंस निकन्दन॥

तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे।

रत्‍‌न सिंहासन सीता रामजी सोहे॥

चौथी आरती चहुं युग पूजा।

देव निरंजन स्वामी और न दूजा॥

पांचवीं आरती राम को भावे।

रामजी का यश नामदेव जी गावें॥

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