गणपति को दुर्वा कैसे चढ़ाएं, आप भी जानें
दुर्वा दो प्रकार की होती है। हरी दुर्वा, और सफेद दुर्वा। हरी दुर्वा हमें आसानी से प्राप्त हो जाती है। लेकिन सफेद दुर्वा आसानी से प्राप्त नहीं होती है। इन दोनों दुर्वाओं का आकार एक जैसा होता है। केवल इनका रंग भिन्न होता है। पूजन में दोनों दुर्वा का प्रयोग किया जाता है, लेकिन पूजन आदि में सफेद दुर्वा का अधिक महत्व बताया गया है। अगर आपको सफेद दुर्वा प्राप्त हो जाए तो भगवान गणपति को सफेद दुर्वा अर्पित करनी चाहिए। और अगर आपको सफेद दुर्वा प्राप्त नहीं होती है तो आपको पूजन में हरी दुर्वा का प्रयोग करना चाहिए। या भगवान को हरी दुर्वा अर्पित करनी चाहिए।;
दुर्वा दो प्रकार की होती है। हरी दुर्वा, और सफेद दुर्वा। हरी दुर्वा हमें आसानी से प्राप्त हो जाती है। लेकिन सफेद दुर्वा आसानी से प्राप्त नहीं होती है। इन दोनों दुर्वाओं का आकार एक जैसा होता है। केवल इनका रंग भिन्न होता है। पूजन में दोनों दुर्वा का प्रयोग किया जाता है, लेकिन पूजन आदि में सफेद दुर्वा का अधिक महत्व बताया गया है। अगर आपको सफेद दुर्वा प्राप्त हो जाए तो भगवान गणपति को सफेद दुर्वा अर्पित करनी चाहिए। और अगर आपको सफेद दुर्वा प्राप्त नहीं होती है तो आपको पूजन में हरी दुर्वा का प्रयोग करना चाहिए। या भगवान को हरी दुर्वा अर्पित करनी चाहिए।
दुर्वा कैसे ग्रहण करें
दुर्वा तोड़ते समय में हमें फूल वाली दुर्वा नहीं तोड़नी चाहिए। हमें केवल बिना फूल वाली ही दुर्वा तोड़नी चाहिए। भगवान को फूल वाली दुर्वा पसंद नहीं है इसलिए उन्हें फूल वाली दुर्वा अर्पित नहीं करनी चाहिए। जिस दुर्वा में फूल आ जाए, उस दुर्वा का हमें परित्याग करना चाहिए। ऐसी दुर्वा पूजा में ग्रहण करने योग्य नहीं मानी जाती है।
दुर्वा का चुनाव
दुर्वा को आप सहज में निकाल लीजिए। और आपको तीन या पांच पत्ते वाली दुर्वा को ग्रहण करना चाहिए। इससे अधिक पत्तों को दुर्वा से निकाल देना चाहिए। और गांठ से ऊपर वाली दुर्वा ही ग्रहण करनी चाहिए। आपके द्वारा चुनी गई दुर्वा में कोई भी गांठ बिलकुल नहीं होनी चाहिए। और केवल तीन या पांच पत्ते वाली ही दुर्वा आपको भगवान को अर्पित करने के लिए बनानी चाहिए।
गणपति को दुर्वा अर्पित करने की विधि
जब आप भगवान गणपति की आप विशेष स्थापना या पूजन आदि करते हैं तो उस दौरान केवल दो-दो दूर्वा ही भगवान गणपति को 'ॐ उमापुत्राय नमः पूर्व युग मम समर्पयामि' मंत्र का जाप करते हुए अर्पित की जाती है। इस प्रकार 10 बार भगवान गणपति को दुर्वा अर्पित करनी चाहिए। और इसके बाद अंत में कुमार गुरूवे नम: मंत्र का जाप करते हुए एक दुर्वा भगवान गणपति को अर्पित की जाती है।