Gopashatmi 2020: मां नंदिनी की कथा सुनने मात्र से दूर होते हैं जीवन के सारे दोष, मिलता है अक्षय पुण्य

Gopashatmi 2020: आज के दिन से ही भगवान श्रीकृष्ण ने छह वर्ष की उम्र में गोचारण लीला आरंभ की थी। इसलिए आज सभी भक्त गो सेवा करके पुण्य लाभ जरुर उठाएं।;

Update: 2020-11-22 03:36 GMT

Gopashatmi 2020: आज के दिन से ही भगवान श्रीकृष्ण ने छह वर्ष की उम्र में गोचारण लीला आरंभ की थी। इसलिए आज सभी भक्त गो सेवा करके पुण्य लाभ जरुर उठाएं। तो आइए आप भी जाने अक्षय पुण्य लाभ देने वाली कथा के बारे में।


रघुवंश में एक राजा हुए। उनका नाम दिलीप था। वे बड़े ही गुणवान और बुद्धिमान राजा थे। लेकिन उनके घर में कोई संतान नहीं थी। सभी उपाय करने के बाद भी जब कोई सफलता नहीं मिली तब राजा दिलीप अपनी पत्नी सुलक्षणा को साथ में लेकर महषि वशिष्ठ के आश्रम संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करने पहुंचे। तब महर्षि वशिष्ठ बोले कि हे राजन आपसे एक अपराध हुआ है। इसलिए अभी तक तुम्हारे कोई संतान नहीं हुई है। ऐसा सुनकर राजा बड़े ही आश्चर्य चकित हुए और आश्चर्य में पड़कर उन्होंने पूछा कि हे गुरूदेव मुझसे ऐसा कौनसा अपराध हुआ है जिसके कारण मैं अब तक नि:संतान हूं। आप कृपा करके मुझे बताइए।

इस पर महर्षि वशिष्ठ ने बताया कि हे राजन जब तुम एक बार युद्ध में देवताओं की सहायता करके लौट रहे थे तब रास्ते में एक विशाल वट वृक्ष के नीचे देवताओं को भोग और मोक्ष देने वाली कामधेनु विश्राम कर रही थी। और उनकी सहचरी गौमाताएं निकट ही चर रही थीं। तुम्हारा अपराध ये है कि तुमने शीघ्रता वश अपना विमान रोक कर उन्हें प्रणाम नहीं किया। जब कि राजन कही रास्ते में कभी भी गोवंश दिखाई दें तो दानी और महावीर लोगों को उन्हें राह देते हुए प्रणाम करना चाहिए। जबकि ये बात आपको गुरूजनों द्वारा पूर्वकाल में बताई जा चुकी थी। लेकिन तुमने फिर भी गोवंश का अपमान और गुरू आज्ञा का उल्लंघन किया है। इसलिए राजन तुम्हारे घर में अब तक कोई संतान नहीं है। ऐसा सुनकर राजा बहुत दुखी हुए। और राजा ने महर्षि से इस अपराध का उपाय पूछा। तब महर्षि ने कहा कि हे राजन मेरी गाय नंदिनी कामधेनु की ही पुत्री है। आप इसे ले जाकर दोनों पति-पत्नी इसकी संतुष्ट होने तक सेवा करों। और इसी के दूध का सेवन करो। इसके संतुष्ट होने पर आपको पुत्र की प्राप्ति होगी। और महर्षि वशिष्ठ ने अपना आशीष देकर राजा को विदा किया।

इधर राजा दिलीप नंदनी की सेवा करने लगे। जब नंदिनी चलती तो राजा भी उसके साथ-साथ चलते और जब नंदिनी रूक जाती तो राजा भी रूक जाते। दिन भर उसे चराकर उसके दूध का पान करके अपना जीवन निर्वाह करते थे। एक दिन संयोग से एक सिंह ने नंदिनी पर आक्रमण कर दिया। और उसे दबोच लिया। उस समय राजा कोई भी अस्त्र-शस्त्र चलाने में असमर्थ थे। कोई उपाय ना देखकर के राजा दिलीप सिंह से प्रार्थना करने लगे। हे वनराज कृपा करके नंदिनी को छोड़ दीजिए। ये मेरे गुरू की प्रिय गाय है। मैं आपके भोजन की अन्य व्यवस्था कर दूंगा।

तब सिंह बोला कि नहीं राजन ये मेरा भोजन है। मैं इसे नहीं छोड़ंगा। इसके बदले आप अपने गुरू को सहस्त्रों गाय दे सकते हो।

बिलकुल निर्बल होते हुए राजा बोले कि हे वनराज आप नंदिनी के बदले मुझे खा लों लेकिन तुम मेरे गुरू की गाय को छोड़ दो। तब सिंह बोला कि हे राजन यदि तुम्हें प्राणों का मोह नहीं है तो इसके बदले स्वयं को प्रस्तुत करों। मैं इसे अभी छोड़ दूंगा।

कोई उपाय ना देखकर राजा ने सिंह का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। सिंह नंदिनी को छोड़कर राजा को खाने के लिए उसकी ओर झपटा। लेकिन सिंह तत्क्षण ही हवा में गायब हो गया। तब नंदिनी गाय बोली उठो राजन यह माया जाल मैंने ही आपकी परीक्षा के लिए स्वयं रचा था। जाओ राजन तुम दोनों पति-पत्नी ने मेरे दूध पर निर्वाह किया है। अत: आपको एक गुणवान, बुद्धिमान और बलवान पुत्र की प्राप्ति होगी। इतना कहकर नंदिनी अंर्तध्यान हो गई।

इसके कुछ दिन बाद ही महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। जोकि बाद में रघु के नाम से विख्यात हुआ। और उसके पराक्रम के कारण ही इस वंश को रघुवंश के नाम से जाना जाने लगा। जिनके नाम पर महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य का नाम रघुवंशम रखा। शास्त्रों में ऐसा कहा जाता है कि गोमाता की सेवा में अनंत शक्ति है। गोमाता आपके भाग्य को बदल शक्ति हैं। और गोसेवा करना सर्वश्रेष्ठ सेवा माना जाता है।  

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