मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान चालीसा पढ़ना क्यों है जरूरी, जानें...

  • हनुमान जी (Hanuman Ji) का प्रताप चारों युगों में रहा है।
  • भक्तवत्सल हनुमान जी अजर-अमर हैं।
  • हनुमान चालीसा को महान कवि तुलसीदास जी (Tulsidas Ji) ने पंक्तिबद्ध किया था।
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Update: 2021-05-01 01:53 GMT

हनुमान जी (Hanuman Ji) का प्रताप चारों युगों में रहा है। भक्तवत्सल हनुमान जी अजर-अमर हैं। उन्हें भगवान श्रीराम (Lord Shriram) और माता जानकी जी (Mata Janki JI) से ऐसा वरदान प्राप्त है कि वे जब तक चाहें इस पृथ्वी पर किसी भी रूप में विद्यमान रह सकते हैं। सिर्फ इस बात के लिए ही हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) का आधुनिक दुनिया में महत्व नहीं बढ़ जाता है बल्कि इसलिए कि पूरे ब्रह्मांड में हनुमान जी ही एक ऐसे देवता हैं जिनकी भक्ति से हर तरह के संकट तुरंत ही हल हो जाते हैं और यह अटल व चमत्कारिक सत्य भी है।

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हनुमान चालीसा को महान कवि तुलसीदास जी ने पंक्तिबद्ध किया था। ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास जी से पहले भी हनुमान जी पर कई चालीसा और स्तुतियां लिखी गई थीं, लेकिन हनुमान चालीसा का महत्व इसलिए आधुनिक युग में है क्योंकि यह पढ़ने और समझने में बहुत ही सरल है और यूं भी हनुमान चालीसा का महत्व बढ़ जाता है क्योंकि इस चालीसा में हनुमान जी के संपूर्ण चरित्र का वर्णन हो जाता है जिससे उनकी भक्ति करने में आसानी होती है। तथा हनुमान चालीसा पढ़ने और सुनने से हनुमान जी शीघ्र प्रसन्न होते हैं, तथा अपने भक्तों के कष्टों को शीघ्र ही दूर करते हैं। वहीं जो भी भक्त नियमपूर्वक मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं उनपर हनुमान जी की विशेष प्रीति होती है। तो आइए आज शनिवार के दिन एक क्लिक करके आप भी हनुमान चालीसा का पाठ करें और हनुमान जी से मनवांछित वरदान पाएं।

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दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।

जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।

रामदूत अतुलित बल धामा।

अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी।

कुमति निवार सुमति के संगी।।

कंचन बरन बिराज सुबेसा।

कानन कुंडल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।

कांधे मूंज जनेऊ साजै।

संकर सुवन केसरीनंदन।

तेज प्रताप महा जग बन्दन।।

विद्यावान गुनी अति चातुर।

राम काज करिबे को आतुर।।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।

बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

भीम रूप धरि असुर संहारे।

रामचंद्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये।

श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।

अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।

नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते।

कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।

राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।

लंकेस्वर भए सब जग जाना।।

जुग सहस्र जोजन पर भानू।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।

जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।

दुर्गम काज जगत के जेते।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।

तुम रक्षक काहू को डर ना।।

आपन तेज सम्हारो आपै।

तीनों लोक हांक तें कांपै।।

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।

महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा।

जपत निरंतर हनुमत बीरा।।

संकट तें हनुमान छुड़ावै।

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा।

तिन के काज सकल तुम साजा।

और मनोरथ जो कोई लावै।

सोइ अमित जीवन फल पावै।।

चारों जुग परताप तुम्हारा।

है परसिद्ध जगत उजियारा।।

साधु-संत के तुम रखवारे।

असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।

अस बर दीन जानकी माता।।

राम रसायन तुम्हरे पासा।

सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को पावै।

जनम-जनम के दुख बिसरावै।।

अन्तकाल रघुबर पुर जाई।

जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई।

हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

संकट कटै मिटै सब पीरा।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जै जै जै हनुमान गोसाईं।

कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।

जो सत बार पाठ कर कोई।

छूटहि बंदि महा सुख होई।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।

होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।

दोहा

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi।com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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