Holi Ki Kahani: आखिर क्यों शिव जी ने किया कामदेव को भस्म, जानें होली से जुड़ा पौराणिक रहस्य

होली पर आप होलिका और प्रहलाद की कहानी तो सुनें ही होंगे, लेकिन इसी तरह होली को लेकर शिव और कामदेव से भी जुड़ी कहानी भी है। तो आइए यहां पढ़ते हैं पूरी कहानी...;

Update: 2023-02-26 12:25 GMT

Holi Ki Kahani: रंगों का त्योहार होली इस साल 8 मार्च 2023 को मनाया जा रहा है। इस त्योहार को सनातन धर्म में पावन और प्रमुख त्योहार के रूप में माना जाता है। होलिका दहन हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि और अगले दिन होली का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन लोग एकजुट होकर खुशियां मनाते हैं और साथ ही आपस में प्यार के रंगों में सराबोर होकर अपनी खुशियों को जाहिर करते हैं। सनातन धर्म के अनुसार, होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। आपको भक्त प्रहलाद और होलिका से जुड़ी कहानी के बारे में पता ही होगा, लेकिन होलिका की तरह ऐसी कई कहानियां और भी प्रचलित हैं। प्रचलित कहानियों में से एक कहानी शिव जी और कामदेव से जुड़ी हैं। तो आइए जानते हैं शिव जी और कामदेव से जुड़ी कहानि के बारे में...  

होली से संबंधित भगवान शिव और कामदेव की कहानी

पौराणिक कहानियों के अनुसार, भगवान शिव जी से देवी पार्वती विवाह करना चाहती थीं, लेकिन भगवान शिव तपस्या में लीन होने की वजह से उनकी ओर ध्यान नहीं दिए। शिव जी की ध्यान भंग न होने के बाद भी देवी पार्वती ने अपनी कोशिश जारी रखीं। पार्वती की कोशिशों को देखकर प्रेम के देवता कामदेव प्रसन्न हो गए और उन्होंने भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के लिए पुष्प बाण चला दिया। बाण चलाने के बाद शिव जी की तपस्या भंग हो गई और वे कामदेव पर क्रोधित हो गए। क्रोधित होने के बाद शिव जी ने अपनी तीसरी आंखें खोल दी और उस क्रोध की अग्नि में प्रेम के देवता कामदेव जलकर भस्म हो गए।  

जब शिव जी ने कामदेव को भस्म कर दिया, तब उन्होंने पार्वती की ओर देखा। पार्वती की आराधना सफल हो गई और पत्नी के रूप में स्वीकार किया। कामदेव की पत्नी रति ने शिव जी की आराधना की और अपने पति को फिर से लौटाने के लिए प्रार्थना की। शिव जी कामदेव की पत्नी रति की आराधना को स्वीकार कर लिया और उनके पति को फिर से जीवित किया। जीवित होने के बाद शिव जी ने कामदेव को नया नाम मनसिज दिया। शिवजी ने कहा कि अब तुम अशरीरी रहोगे। जिस दिन भगवान शिव ने कामदेव को जीवित किया था, उस दिन फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि थी। इसी दिन आधी रात को लोगों ने होलिका दहन किया और अगली सुबह कामदेव के अशरीरी भाव के नए सृजन से प्रेरणा लेते हुए विजय का उत्सव मनाने लगे। इसी दिन से होली का महान पर्व के रूप में मनाया जाता है। 

Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।

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