Holi 2023 Special: जानें क्यों प्रसिद्ध है पंजाब में होला मोहल्ला? होली से नहीं है कोई संबंध

Holi 2023 Special: कई लोग होली और होला मोहल्ला को एक ही त्योहार मानते हैं। जबकि ये दोनों ही त्योहार अलग अलग हैं।;

Update: 2023-02-23 08:06 GMT

Holi 2023 Special: कई लोग होली और होला मोहल्ला को एक ही त्योहार मानते हैं। जबकि ये दोनों ही त्योहार अलग अलग हैं। होली के दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाते हैं। जबकि होला मोहल्ला में सिख नकली युद्ध लड़कर अपने मार्शल आर्ट का खुलकर प्रदर्शन करते हैं। होला मोहल्ला पर्व इस बार 8 मार्च से 10 मार्च 2023 तक मनाया जाएगा।

जानें क्यों मनाया जाता है होला मोहल्ला

कहा जाता है कि खालसा पंथ की स्थापना करने से पहले मुगल शासक बेकसूर लोगों पर बहुत अत्याचार किया करते थे। जबरदस्ती उन्हें मुसलमान मनाया करते थे। इसलिए उनकी मनमानी रोकने और उनसे मुकाबला करने के लिए गुरू गोविंद सिंह जी ने 1699 ई. में खालसा पंथ की स्थापना की। 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। सिखों को शक्तिशाली बनाने के लिए 1701 ई. में आनंदुपुर साहिब में नकली युद्ध करवाना शुरू किया। गुरुजी सिखों के दो दल बनाकर एक खास स्थान पर एक दल से दूसरे दल पर हमला करवाते थे। जिसमें दो घुड़ सवार हाथों में शस्त्र लिए एक दूसरे पर हमला किया करते थे। जो दल जीत जाता था। गुरूजी उसका सम्मान किया करते थे। इस वजह से गुरुजी ने लोगों को शक्तिशाली बनाया।

कैसे मनाया जाता है पंजाब में होला मोहल्ला

वैसे तो होला मोहल्ला तीन दिनों का त्योहार है। लेकिन इस उत्सव की तैयारियां पंजाब में हफ्ते भर पहले से ही शुरू हो जाती हैं। पंजाब के गुरुद्वारे खास तौर के आनंदपुर साहिब, किरतपुर साहिब में मार्च के महीने में होला मोहल्ला का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व में यहां के स्थानीय लोग दूर दूर से आने वाली संगतों के लिए लंगर का प्रबंध करते हैं। दूर से आए लोगों को यहां लंगर खिलाया जाता है। पंजाब ही नहीं भारत समेत दुनिया के कई गुरुद्वारों में ये त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।

पंजाब में क्यों प्रसिद्ध है होला मोहल्ला त्योहार

1. तीन दिनों की अवधि के लिए आयोजित होला मोहल्ला कुछ और नहीं बल्कि उत्सवों से भरा हुआ है। जो सिख संस्कृति की एक शानदार छवि है।

2. त्योहार में हथियारों का प्रदर्शन, युद्ध, कुछ पारंपरिक कविता, संगीत और बहुत कुछ शामिल है। इस त्योहार के दौरान कीर्तन भी होता है।

3. अंतिम दिन विशेष रूप से शोभायात्रा की शुरुआत पंज प्यारों से होती है। पंज प्यारे भाई दया सिंह, भाई धरम सिंह, भाई हिम्मत सिंह, भाई मोहकम सिंह और भाई साहिब सिंह को दिया गया एक सामूहिक नाम है। ये नाम गुरु गोबिंद सिंह जी ने 13 अप्रैल 1699 को दिए थे।

4. यह उत्सव तख्त केशगढ़ साहिब से शुरू होता है, जो पांच सिख धार्मिक स्थलों में से एक है। और फिर किला आनंदगढ़, लोहगढ़ साहिब, माता जीतोजी जैसे विभिन्न महत्वपूर्ण गुरुद्वारों से होकर गुजरता है। और फिर अंत में तख्त पर समाप्त होता है।

5. आनंदपुर साहिब आने वाले लोगों के साथ स्थानीय लोगों द्वारा लंगर का आयोजन होता है। इसे सिखों द्वारा सेवा का एक अनिवार्य हिस्सा माना जाता है। महिला स्वयंसेवक न केवल खाना पकाती हैं बल्कि बर्तनों की सफाई में भी हिस्सा लेती हैं।

डिस्क्लेमर: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।

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