गरूड़ पुराण : जीवात्मा कौन से कष्ट भोगती हुई करती नरक की यात्रा, आप भी जानें

गरूड़ पुराण में जीवात्मा से संबंधित अनेक बातों का विस्तार से वर्णन किया गया है। पाप और पुन्य के आधार पर जीवात्मा शरीर त्यागने के बाद कहां जाती है और उस जीवात्मा के साथ क्या-क्या होता है। तो आइए आप भी जाने जानें गरुड़ पुराण के आधार पर शरीर त्यागने के बाद जीवात्मा किस तरह नरक की यात्रा करती है और उसके साथ कैसा बर्ताव होता है।;

Update: 2020-08-13 10:47 GMT

गरूड़ पुराण में जीवात्मा से संबंधित अनेक बातों का विस्तार से वर्णन किया गया है। पाप और पुन्य के आधार पर जीवात्मा शरीर त्यागने के बाद कहां जाती है और उस जीवात्मा के साथ क्या-क्या होता है। तो आइए आप भी जाने जानें गरुड़ पुराण के आधार पर शरीर त्यागने के बाद जीवात्मा किस तरह नरक की यात्रा करती है और उसके साथ कैसा बर्ताव होता है।

गरुड़जी ने कहा-हे केशव। यमलोक का मार्ग किस प्रकार दुखदायी होता है। पापी लोग वहां किस प्रकार जाते हैं मुझे बताइये।

श्री भगवान बोले- हे गरुड़। महान दुख प्रदान करने वाले यममार्ग के विषय में मैं तुमसे कहता हूं, मेरा भक्त होनेपर भी तुम उसे सुनकर कांप उठोगे। यममार्ग में वृक्ष की छाया नहीं है, अन्न आदि भी नहीं है, वहां कहीं जल भी नहीं है, वहां प्रलयकाल की भांति बारह सूर्य तपते हैं। उस मार्ग से जाता हुआ पापी कभी बर्फीली हवा से पीड़ित होता है तो कभी कांटे चुभते हैं। कभी महाविषधर सर्पों द्वारा वह डसा जाता है, कहीं आग से जलाया जाता है, कहीं सिंहों, व्याघ्रों और भयंकर कुत्तों द्वारा खाया जाता है, कहीं बिच्छुओं द्वारा डसा जाता है। इसके बाद वह भयंकर असिपत्रवन नामक नरक में पहुंचता है जो दो हजार योजन के विस्तार वाला है। यह वन कौओं, उल्लुओं, गीधों, सरघों तथा डॉंसों से व्याप्त है। उसमें चारों ओर दावाग्नि है, वह जीव कहीं अंधे कुएं में गिरता है, कहीं पर्वत से गिरता है, कहीं छुरे की धार पर चलता है, कहीं कीलों के ऊपर चलता है, कहीं घने अन्धकार में गिरता है। कहीं उग्र जल में गिरता है, कहीं जोंकों से भरे हुए कीचड़ में गिरता है।

कहीं तपी हुई बालुका से व्याप्त और धधकते ताम्रमय मार्ग, कहीं अंगार राशि, कहीं अत्याधिक धुएं से भरे मार्ग पर उसे चलना पड़ता है। कहीं अंगार वृष्टि, कहीं बिजली गिरने, शिलावृष्टि, कहीं रक्तकी , कही शस्त्र की और कहीं गर्म जल की वृष्टि होती है। कहीं खारे कीचड़ की वृष्टि होती है। कहीं मवाद, रक्त तथा विष्ठा से भरे हुए तलाब हैं। यम मार्ग के बीचोबीच अत्यन्त उग्र और घोर वैतरणी नदी बहती है।

वैतरणी नदी देखने पर अत्यंत दुखदायनी है। उसकी आवाज भय पैदा करने वाली है। वह सौ योजन चौड़ी और पीब तथा रक्त से भरी है। हड्डियों के समूह से उसके तट बने हैं। यह विशाल घड़ियालों से भरी है। हे गरुड़ आए पापी को देखकर वह नदी ज्वाला और धूम से भरकर कड़ाह में खौलते घी की तरह हो जाती है। यह नदी सूई के समान मुख वाले भयानक कीड़ों से भरी है। उस नदी में वज्र के समान चोंच वाले बडे़-बड़े गीध हैं।

इस वैतरणी नदी के प्रवाह में गिरे पापी हे भाई, हा पुत्र, हा तात। कहते हुए विलाप करते हैं। भूख-प्यास से व्याकुल हो पापी रक्त का पान करते हैं। बहुत से बिच्छु तथा काले सांपों से व्याप्त उस नदी के बीच में गिरे हुए पापियों की रक्षा करनेवाला कोई नहीं है। उसके सैंकड़ों, हजारों भंवरों में पड़कर पापी पाताल में चले जते हैं, क्षणभर में ही ऊपर चले आते हैं। कुछ पापी पाश में बंधे होते हैं। कुछ अंकुश में फंसा कर खींचे जाते हैं और कुछ कौओं द्वारा खींचे जाते हैं।

वे पापी गरदन हाथ पैरों में जंजीरों से बंधे होते हैं उनकी पीठ पर लोहे के भार होते हैं। अत्यंत घोर यमदूतों द्वारा मुगदरों से पीटे जाते हुए रक्त वमन करते हैं तथा वमन कीए रक्त को पीते हैं। इस प्रकार सत्रह दिन तक वायु वेग से चलते हुए अठाहरवें दिन वह प्रेत सौम्यपुर में जाता है।

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