जितिया व्रत 2020, पूजा, पारण का मुहूर्त, आप भी जाने

जितिया व्रत जिसे जीवित पुत्र का व्रत या जितिया व्रत के नाम से जाना जाता है। यह व्रत बड़ी श्रद्धा-भाव के साथ मनाया जाता है। यह व्रत संतान की मंगलकामना के लिए किया जाता है। इस व्रत को माताएं रखती हैं। जीवित पुत्र का व्रत निर्जला किया जाता है। जिसमें पूरे दिन और रात को पानी भी नहीं पीया जाता है। इस अनुष्ठान को तीन दिन तक मनाया जाता है।;

Update: 2020-08-28 03:26 GMT

जितिया व्रत जिसे जीवित पुत्र का व्रत या जितिया व्रत के नाम से जाना जाता है। यह व्रत बड़ी श्रद्धा-भाव के साथ मनाया जाता है। यह व्रत संतान की मंगलकामना के लिए किया जाता है। इस व्रत को माताएं रखती हैं। जीवित पुत्र का व्रत निर्जला किया जाता है। जिसमें पूरे दिन और रात को पानी भी नहीं पीया जाता है। इस अनुष्ठान को तीन दिन तक मनाया जाता है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार यह व्रत अश्विन माह कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से लेकर नवमी तिथि तक मनाया जाता है। यह पर्व तीन दिन तक चलता है। इस निर्जला व्रत को विवाहित माताएं निर्जला रखकर अपनी संतान की सुरक्षा के लिए करती हैँ। यह व्रत खासतौर से उत्तर प्रदेश, बिहार, और नेपाल में मनाया जाता है। यह व्रत तीन दिन तक किया जाता है, जिसमें से पहले दिन को नहाय-खाय कहते हैं। यह दिन जीवित पुत्र के व्रत का पहला दिन कहलाता है। इस दिन से व्रत की शुरूआत होती है। इस दिन महिलाएं नहाने के बाद एक बार भोजन ग्रहण करती हैं। उसके बाद फिर दिनभर कुछ भी नहीं खाती हैं।

इसके बाद दूसरा दिन खुर जितिया कहलाता है। यह जीवित पूत्र के व्रत का दूसरा दिन होता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं। यह दिन बहुत ही विशेष होता है। इसके बाद अगले दिन जितिया व्रत का पारण किया जाता है। यह जीवित पुत्र के व्रत का अंतिम दिन होता है। इस दिन कई लोग बहुत सी चीजें खातें हैं। लेकिन खास तौर से इस दिन झोर-भात, नोनी का साग, मडुवा की रोटी या मरूआ की रोटी दिन के पहले भोजन में ली जाती है। इस प्रकार यह जीवित पुत्र के व्रत का यह तीन दिवसीय उपवास होता है।

जितिया व्रत  की कथा

कहा जाता है कि एक बार एक जंगल में चील और लोमड़ी घूम रहे थे। तभी उन्होंने मनुष्य जाति को इस व्रत को करते हुए देखा। और जीवित पुत्र के व्रत की कथा भी सुनीं। उस समय चील ने इस व्रत को बहुत ही श्रद्धा के साथ ध्यान पूर्वक देखा। वहीं लोमड़ी का ध्यान इस ओर बहुत कम था। चील की संतानों और उसकी सुरक्षा को कभी कोई हानि नहीं पहुंची, लेकिन लोमड़ी की संतान जीवित नहीं बची। इस प्रकार इस व्रत का महत्व बहुत अधिक बताया जाता है। इसलिए प्रत्येक माता को अपनी संतान की सुरक्षा और तरक्की के लिए यह व्रत करना चाहिए।

जितिया व्रत की पूजा विधि

अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माता प्रदोष काल में माताएं जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। माना जाता है कि जो महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करती हैं। तो उनके पुत्र को दीर्घ आयु और हर प्रकार के सुख की प्राप्ति होती है। पूजन के लिए जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा बनाई जाती है। उसके बाद रोली, अक्षत अर्पित करके फल-फूल चढ़ाकर तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। और साथ ही मिट्टी और गाय के गोबर से चील और सियारिन की भी प्रतिमा बनाई जाती है। जिसके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। और पूजन के बाद जीवित पुत्र की कथा सुनी जाती है। कहा जाता है जो महिलाएं इस व्रत को पूरे विधि-विधान के साथ करती हैं, उनके पुत्र को आरोग्य, सफलता, समृद्धि और दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है।

जितिया व्रत वर्ष 2020

नहाय-खाय का पर्व : 09 सितंबर 2020, दिन बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन सप्तमी तिथि रहेगी। और सप्तमी तिथि की शुरूआत 08 सितंबर 2020 को 12:02 AM बजे हो जाएगी। और सप्तमी तिथि की समाप्ति 09 सितंबर 2020 को 02:05 AM बजे होगी।

खुर जितिया: 10 सितंबर 2020, दिन गुरूवार को खुर जितिया का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन अष्टमी तिथि रहेगी। अष्टमी तिथि की शुरूआत 10 सितंबर 2020 को तड़के 02:05 बजे से होगी, और अष्टमी तिथि की समाप्ति 11 सितंबर 2020 को तड़के 03:34 बजे पर होगी।

जितिया व्रत का पारण: जितिया व्रत का पारण 11 सितंबर 2020, दिन शुक्रवार को होगा। इस दिन नवमी तिथि रहेगी। नवमी तिथि की शुरूआत 11 सितंबर 2020 को तड़के 03:34 बजे से होगी और नवमी तिथि की समाप्ति 12 सितंबर 2020 को तड़के 04:19 बजे पर होगी।  

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