Kartik Maas 2020: जानिए कार्तिक स्नान की कहानी

Kartik Maas 2020: शरद पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा तिथि यानि एकम तिथि से अगली पूर्णिमा तिथि तक कार्तिक स्नान किया जाता है। कार्तिक स्नान में स्नान करने वाले लोग सवेरे जल्दी स्नान करके मंदिर में पूजा करते हैं। और कार्तिक मास की कहानी सुनते हैं। कार्तिक मास की कहानी इस प्रकार है। तो आइए आप भी जानें।;

Update: 2020-10-23 03:09 GMT

Kartik Maas 2020: शरद पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा तिथि यानि एकम तिथि से अगली पूर्णिमा तिथि तक कार्तिक स्नान किया जाता है। कार्तिक स्नान में स्नान करने वाले लोग सवेरे जल्दी स्नान करके मंदिर में पूजा करते हैं। और कार्तिक मास की कहानी सुनते हैं। कार्तिक मास की कहानी इस प्रकार है। तो आइए आप भी जानें।

एक समय की बात है कि एक बूढ़े बाबा थे। उन बूढ़े बाबा की दो बहूएं थीं। ससुर जी का काम दोनों ही बहुए करती थीं। उस दौरान जब कार्तिक मास आया तो ससुर जी कहने लगे कि बहु मैं कार्तिक नहाना चाहता हूं तो बड़ी बहू ने सुनते ही मना कर दिया। और कहा कि आपके कार्तिक स्नान का काम मुझसे नहीं होगा। आप छोटी बहू से कह दीजिए। इसके बाद ससुर जी छोटी बहू के पास गए। और कहने लगे कि बहू मैं कार्तिक नहाना चाहता हूं।

छोटी बहू सीधी-साधी थी। उसने कहा कि जी पिताजी! आप बताएं मुझे क्या करना होगा। इसके बाद ससुर जी कहने लगे कि ज्यादा कुछ नहीं करना। बेटा रोज मेरे नहाने के लिए पानी भर देना। मेरी धोती धोकर सुखा देना। और दोपहर का खाना बना देना। अब छोटी बहू रोज सुबह पांच बजे उठकर कुएं से पानी भरकर ला देती। जिससे ससुर जी स्नान कर लेते थे। उनकी धोती धोकर सुखा देती। और दोपहर में ससुर जी को गर्म-गर्म रोटी बनाकर खिला देती। जब छोटी बहू ससुर जी की धोती धोकर सुखाती तो उसमें से गिरने वाली पानी की बूंदें वहां मोती के रूप में इक्ट्ठी हो जाती थी। पर छोटी बहू इतनी नादान थी कि वह समझ नहीं पाती थी। और रोज सुबह झाड़ू लगाकर आंगन में एक तरफ मोती का ढेर लगा देती थी। और इसी तरह से एक माह निकल गया। और कार्तिक माह समाप्त होने को आया। तो ससुर जी ने कहा कि मैं कार्तिक समाप्त होने से पहले दो-चार ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहता हूं। छोटी बहू बोली पिताजी मैं खाना बना देती हूं और फिर आपको खेत से बुला लाऊंगी।

बहू खाना बनाकर ससुर जी को खेत से बुलाने जाती है। और कहती है कि पिताजी मैंने खाना बना दिया है। आप घर चलकर ब्राह्मणों को खाना खिला दें। और मैं खेत की रखवाली कर लेती हूं। यह सुनकर पिताजी घर को चले जाते हैं। अब छोटी बहू सोचती है कि कार्तिक महीने में ब्राह्मणों को तो खाना खिला रहे हैं और खेत में से चिड़ियाओं को उड़ा रहे हैं। राम जी की चिड़िया- राम जी का खेत। और यह सोचकर वह चिड़ियों को दाना खाने देती है। और चादर तानकर सो जाती है। जब चिड़िया दाना चुग रही होती हैं तो जो दाने जमीन पर गिरते हैं वह हीरे-मोती बन जाते हैं। धीरे-धीरे उनका पूरा खेत हीरे-मोतियों से जगमगाने लगता है। उनके पास ही में बड़े भाई का खेत था। वह भी देखता है कि छोटे भाई का खेत हीरे-मोतियों से जगमगा रहा है। बड़े बेटे से रहा नहीं जाता। वह अपने पिताजी से पूछता है कि इसका क्या कारण है। पिताजी कहते हैं कि बेटा हम पर तो कार्तिक महाराज की कृपा हुई है।

बड़ा भाई जाकर अपनी पत्नी को सारी बात बताता है। उसकी पत्नी के मन में लालच आ जाता है। और वह मन ही मन सोचती है। ससुर जी ने तो पहले मुझसे कहा था। मैंने क्यूं मना कर दिया। अब वह साल भर इंतजार करती है। और जब कार्तिक महीना आने वाला होता है। तो जाकर ससुर जी से कहती है कि पिताजी आप इस बार कार्तिक स्नान नहीं करेंगे। ससुर जी कहते हैं कि बेटा इस बार मैं कार्तिक स्नान नहीं करना चाहता हूं। अब मेरी उम्र हो गई है। ऐसा सुनकर बड़ी बहू चिड़ जाती है। और गुस्से में कहने लगती है कि आपने छोटी बहू को तो मालामाल कर दिया। अब मेरी बारी आई तो कहते हैं कि मेरी उम्र हो गई है। नहीं पिताजी आपको कार्तिक स्नान करना ही होगा। ससुर जी थक-हारकर हां कर देते हैं। बड़ी बहू हीरे-मोती के लालच में ससुर जी का बहुत ख्याल रखती है। सबेरे कुएं से पानी लाकर उनके लिए भर देती। उनकी धोती धोकर सुखा देती। धोती सुखाते वक्त उसे निचोड़ती नहीं थी जिससे ज्यादा पानी गिरे। और ज्यादा मोती इक्ट्ठे हों लेकिन उस पानी से कोई हीरे-मोती तो नहीं बने। पर जमीन में गड्ढे जरुर हो गए।

इधर कार्तिक माह समाप्त होने को आया तो उसने ससुर जी से कहा कि पिताजी एक ब्राह्मण को न्यौता दे देती हूं। और वह जल्दी से खाना बनाकर ससुर जी को बुलाने खेत पर चली गई। और खुद खेत की रखवाली करने लगी। खेत में कोई भी चिड़िया दाना चुगने आती तो वह उसे भगाकर कहती कि कोई भी चिड़िया एक भी दाना मत खाओं। अभी यह सब मेरे हीरे-मोती बनने वाले हैं। धीरे-धीरे शाम हो गई। और शाम तक उसके खेत में कोई भी हीरे-मोती का ढेर नहीं बना। बल्कि उसके खेत की फसल की बालियों में दाने ही नहीं रहे। तो वह ससुर जी के पास लड़ने पहुंची। तब ससुर जी ने कहा कि बहू तुने तो देखा देखी पैसे के लालच में मेरी सेवा करी। जबकि छोटी बहू ने तो निस्वार्थ भाव से मेरी सेवा की थी। इसलिए उसे कार्तिक महाराज की कृपा मिली। और तूने देखा देखी करी। लालच करा तो तेरी फसल भी खराब हो गई। हे कार्तिक महाराज जैसे आपने छोटी बहू पर कृपा करी वैसे ही आप सब पर करना। और जैसे बड़ी बहू पर करी वैसी किसी पर भी ना करना। कथा अधूरी हो तो पूरी करना। और पूरी हो तो मान करना।  

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