Maha Shivratri 2022: भगवान शिव सिखाते हैं जीवन के कई पहलू, कैसे दांपत्य जीवन रहे सुखमय?

महाशिवरात्रि पर हम भोले शंकर की पूजा-अर्चना कर अपने लिए सुख-कल्याण की कामना करते हैं। हम चाहें तो भगवान शिव के दिव्य स्वरूप और उनके व्यवहार-व्यक्तित्व में निहित गुणों को आत्मसात कर आनंदमय जीवन जी सकते हैं।;

Update: 2022-03-01 06:05 GMT

भगवान शिव की आराधना स्त्री-पुरुष सभी करते हैं। उन्हें प्रसन्न कर अपने जीवन में सुख-कल्याण की कामना करते हैं। पुराणों के अनुसार महाशिवरात्रि को शिव-पार्वती के विवाह पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। इसीलिए इस दिन कुंवारी युवतियां भगवान शिव की आराधना कर उनके जैसे गुणों वाले पति की कामना करती हैं। दरअसल, शिवजी के स्वरूप में अनेक ऐसी विशेषताएं हैं, जिन्हें अपनाकर जीवन को आनंदमय बनाया जा सकता है। शिव-स्वरूप से कैसे सीखें आनंदमय जीवन के सूत्र बता रही हैं डॉ. अलका जैन आराधना (Dr. Alka Jain Aradhana)...

शिव की सादगी

शिव का भोला-भाला रूप आडंबरविहीन है। किसी भी दिखावे से दूर उनकी सादगी मन को मोहती है। उनके शरीर पर महंगे आभूषण नहीं हैं, वे चीते की खाल, रुद्राक्ष, सांप और भस्म धारण करते हैं। वे सांसारिक प्रपंच से दूर रहते हुए भी सदैव प्रसन्न दिखते हैं। उनके लिए कैलाश पर्वत और वनक्षेत्र में रहना भी उतना ही सुखकर है, जितना किसी के लिए महलों में निवास करना हो सकता है। वे किसी से भेदभाव नहीं करते। सभी को एकदृष्टि से यानी समभाव से देखते हैं। वे केवल जलाभिषेक और बेलपत्र अर्पित करने से ही प्रसन्न हो जाते हैं। उनका यह स्वरूप हमें सादगी से जीवनयापन करने का संदेश देता है, क्योंकि सादगी में ही सच्चा आनंद होता है।

समझते हैं भावना की महत्ता

हर स्त्री के हृदय में भावनाओं का सागर लहराता है। शिव भी कोमल भावों को सहेजने वाले देव हैं। वे भावनाओं की महत्ता और उसके उपयोग को अनुचित नहीं मानते हैं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार एक बार जब मां काली अत्यंत क्रोध में थीं तो उनको रोकने के लिए सामूहिक रूप से देवताओं ने भगवान शिव का स्मरण किया। तब भगवान शिव ने भावनात्मक बुद्धिमत्ता का उपयोग किया और उन्हें रोकने पहुंचे। वे उग्र मां काली के पथ पर लेट गए। मां काली के चरण जैसे ही शिवजी की छाती पर पड़े, उनका गुस्सा शांत हो गया। इस तरह शिव यह संदेश देते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार हमें अपनी बुद्धि और भावना का उपयोग करना चाहिए।

एकनिष्ठ प्रेम के प्रतीक

भगवान शिव का प्रेम केवल अपनी पत्नी पार्वती के लिए है। यह उनकी एकनिष्ठता का परिचायक है। शिव, पार्वती को अपने बगल में बैठाते हैं, यानी स्त्री को पूरा सम्मान देते हैं। उनका अर्धनारीश्वर स्वरूप भी यही प्रकट करता है कि बगैर पार्वती के वे अधूरे हैं। अर्धनारीश्वर के रूप में आधा हिस्सा स्त्री (पार्वती) का और आधा हिस्सा पुरुष (शिव) का रहता है। शिव और पार्वती का रिश्ता बराबरी और सच्ची साझेदारी का रिश्ता है। मेल्हुआ ट्रायोलॉजी के लेखक अमीष त्रिपाठी लिखते हैं, 'यदि हम पारंपरिक पौराणिक कथाओं को देखें तो भगवान शिव, अपनी पत्नी के साथ प्रेम और सम्मान के साथ बर्ताव करते हैं। शिव और पार्वती के बीच पति और पत्नी का रिश्ता बहुत ही गहरा, प्रेमपूर्ण और गरिमामय है।'

इस तरह शिव-पार्वती का दांपत्य, हर दंपति को आजीवन एकनिष्ठ रहने और एक-दूसरे का सदैव सम्मान करने का संदेश देता है।

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