महानन्दा व्रत 2021: व्रत की तिथि और व्रत की कथा, आप भी जानें

हिन्दू पंचांग के मुताविक मार्गशीष मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महानन्दा नवमी का व्रत रखा जाता है। इस दिन विधि विधान से माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, और व्रत रखा जाता है। अगर किन्हीं कारणों से आपके पास सुख, समृद्धि, धन और वैभव की कमी है तो यह व्रत करने से माता महालक्ष्मी इन सभी कमियों को पूरा कर देती हैं। वहीं इस दिन उपवास रखने और दान, पुण्य करने से दरिद्रता दूर हो जाती है। इस दिन असहाय लोगों को दान करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। तो आइए आप भी जानिए महानन्दा नवमी का व्रत के बारे में;

Update: 2020-08-22 05:47 GMT

हिन्दू पंचांग के मुताविक मार्गशीष मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महानन्दा नवमी का व्रत रखा जाता है। इस दिन विधि विधान से माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, और व्रत रखा जाता है। अगर किन्हीं कारणों से आपके पास सुख, समृद्धि, धन और वैभव की कमी है तो यह व्रत करने से माता महालक्ष्मी इन सभी कमियों को पूरा कर देती हैं। वहीं इस दिन उपवास रखने और दान, पुण्य करने से दरिद्रता दूर हो जाती है। इस दिन असहाय लोगों को दान करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। तो आइए आप भी जानिए महानन्दा नवमी का व्रत के बारे में।

महानन्दी नवमी की तिथि और शुभ मुहूर्त

महानन्दा नवमी 21 फरवरी 2021 दिन रविवार को है।

महानन्दा नवमी के दिन अपने घर में स्थित पूजास्थल में दीपक जलाएं और ऊं हीं महालक्ष्म्यै नमः मंत्र का जप करें। उसके बाद घर का कूड़ा सूप में रखकर घर के बाहर फेंक दें। इस प्रक्रिया में घर का सब कूड़ा बाहर कर देना चाहिए। इस कार्य को अलक्ष्मी का विसर्जन कहा जाता है।

महानन्दा नवमी के व्रत के दिन पूजा करने का खास विधान है। महानन्दा नवमी से कुछ दिन पहले अपने घर की साफ-सफाई करें। नवमी के दिन पूजास्थल के बीचोंबीच एक बड़ा दीपक जलाएं और यह दीपक रात भर जलता रहना चाहिए। साथ ही व्रत करने वाले लोग भर जगे रहें। सभी लोग रात को जागरण कर ऊं ह्रीं महालक्ष्म्यै नमः का जाप करते रहें। जाप के बाद रात में पूजा कर पारण करना चाहिए। साथ ही नवमी के दिन कुंवारी कन्याओं को भोजन कराने के बाद कुछ दान दें, और फिर उनसे आशीर्वाद मांगें। उनका आशीर्वाद आपके लिए बहुत मंगलदायी होगा।

महानन्दा नवमी व्रत की कथा

महानन्दा नवमी व्रत की कथा के अनुसार एक गांव में एक साहूकार अपनी बेटी के साथ रहता था। बेटी बहुत धार्मिक प्रवृति की थी। साहूकार की बेटी प्रतिदिन एक पीपल के वृक्ष की पूजा करती थी। उस पीपल के वृक्ष में माता महालक्ष्मी जी वास करती थीं। एक दिन माता महालक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से मित्रता कर ली। माता महालक्ष्मी जी एक दिन साहूकार की बेटी को अपने घर ले गई और उसकी खूब खातिरदारी की। और साहूकार की बेटी को बहुत से उपहार देकर अपने घर से विदा कर दिया। साहूकार की बेटी को विदा करते समय माता महा लक्ष्मी जी बोली कि मुझे कब अपने घर बुला रही हो इस पर साहूकार की बेटी बहुत उदास हो गई। उदासी में ही साहूकार की बेटी ने माता महालक्ष्मीजी को अपने घर आने का न्यौता दे दिया।

घर आकर उसने अपने पिता को सारी बात बताई और कहा कि हम महालक्ष्मी जी का सत्कार कैसे करेंगे। इस पर साहूकार ने कहा हमारे पास जो भी है उसी से हम माता महालक्ष्मी जी का स्वागत करेंगे। तभी एक चील उनके घर में हीरों का हार गिरा कर चली गई जिसे बेचकर साहूकार की बेटी ने माता महालक्ष्मी जी के लिए सोने की चौकी, सोने की थाली और दुशाला खरीदी। माता महालक्ष्मी जी थोड़ी देर बाद गणेश जी के साथ साहूकार के घर पधारीं। उस कन्या ने माता महालक्ष्मी और गणेश भगवान की खूब सेवा की। इसके बाद माता महालक्ष्मी जी और भगवान गणेश ने साहूकार की बेटी की सेवा से प्रसन्न होकर उसे समृद्धशाली होने का आशीर्वाद दिया। 

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