Margashirsh Mass 2021: मार्गशीर्ष मास में ये काम करने से मिलती है पितृों को शांति, जानें अगहन माह का महत्व और मास शून्य तिथियों में क्या ना करें
Margashirsh Mass 2021: मार्गशीर्ष हिन्दू धर्म का नौवां महीना होता है। हिन्दू धर्म में मार्गशीर्ष मास को अग्रहायण नाम भी दिया गया है। अग्रहायण शब्द 'आग्रहायणी' नक्षत्र से संबंधित है जोकि मृगशीर्ष या मृगशिरा का ही दूसरा नाम है। वहीं अग्रहायण का तद्भव रूप 'अगहन' है । उत्तर भारत हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार इस वर्ष 20 नवंबर 2021, शनिवार यानि आज से मार्गशीर्ष मास शुरु हो गया है। वैदिक काल से मार्गशीर्ष माह का हिन्दू सनातन धर्म में विशेष महत्व रहा है।;
Margashirsh Mass 2021: मार्गशीर्ष हिन्दू धर्म का नौवां महीना होता है। हिन्दू धर्म में मार्गशीर्ष मास को अग्रहायण नाम भी दिया गया है। अग्रहायण शब्द 'आग्रहायणी' नक्षत्र से संबंधित है जोकि मृगशीर्ष या मृगशिरा का ही दूसरा नाम है। वहीं अग्रहायण का तद्भव रूप 'अगहन' है । उत्तर भारत हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार इस वर्ष 20 नवंबर 2021, शनिवार यानि आज से मार्गशीर्ष मास शुरु हो गया है। वैदिक काल से मार्गशीर्ष माह का हिन्दू सनातन धर्म में विशेष महत्व रहा है। मान्यता है कि पौराणिक काल में मार्गशीर्ष मास से ही नववर्ष का आरम्भ माना जाता था। वहीं मार्गशीर्ष माह में सनातन संस्कृति के दो प्रमुख विवाह संपन्न हुए थे। शिव विवाह तथा राम विवाह। मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी के दिन संपन्न हुआ राम विवाह तो सर्वविदित है और वहीं शिवपुराण के अनुसार सप्तर्षियों के समझाने से हिमवान ने शिव के साथ अपनी पुत्री का विवाह मार्गशीर्ष माह में निश्चित किया था। वहीं भगवान विष्णु ने मार्गशीर्ष मास को बहुत प्रिय मास माना है। तो आइए जानते हैं मार्गशीर्ष मास के महत्व के बारे में...
श्रीमद्भागवतगीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि मैं महीनों में मार्गशीर्ष और नक्षत्रों में अभिजित हूं। वहीं स्कन्दपुराण के अनुसार, भगवान कहते हैं कि मार्गशीर्ष मास मुझे सदैव प्रिय है। जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर मार्गशीर्ष में विधिपूर्वक स्नान करता है, मैं उस व्यक्ति पर प्रसन्न होकर अपने आपको भी उसे समर्पित कर देता हूं। वहीं ऐसी मान्यता है कि मार्गशीर्ष में सप्तमी, अष्टमी मासशून्य तिथियां होती हैं। मासशून्य तिथियों में कोई भी मंगल कार्य नहीं करना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसी तिथियों में मंगल कार्य करने से कुल और धन का नाश होता है।
वहीं महाभारत के अनुसार, जो मनुष्य मार्गशीर्ष मास को एक समय भोजन करके बिताता है और अपनी शक्ति के अनुसार ब्राह्माण को भोजन कराता है, वह रोग और पापों से मुक्त हो जाता है। वह सब प्रकार के कल्याणमय साधनों से संपन्न तथा सब तरह की औषधियों (अन्न-फल आदि) से भरा-पूरा होता है। मार्गशीर्ष मास में उपवास करने से मनुष्य दूसरे जन्म में रोग रहित और बलवान होता है। उसके पास खेती-बारी की सुविधा रहती है तथा वह बहुत धन-धान्य से संपन्न होता है।
वहीं स्कन्द पुराण की मानें तो जो व्यक्ति प्रतिदिन एक बार भोजन करके समूचे मार्गशीर्ष को व्यतीत करता है और भक्तिपूर्वक ब्राह्मणों को भोजन कराता है, वह रोगों और पातकों से मुक्त हो जाता है। वहीं शिवपुराण के अनुसार, मार्गशीर्ष में चांदी का दान करने से वीर्य की वृद्धि होती है।
शिवपुराण विश्वेश्वर संहिता में कहा गया है कि मार्गशीर्ष में अन्नदान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। अर्थात मार्गशीर्ष मास में केवल अन्नअका दान करने वाले मनुष्यों को ही सम्पूर्ण अभीष्ट फलों की प्राप्ति हो जाती है। मार्गशीर्षमास में अन्न का दान करने वाले मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
वहीं मान्यता है कि मार्गशीर्ष माह में मथुरापुरी निवास करने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं स्कन्दपुराण में वर्णित है कि तीर्थराज प्रयाग में एक हजार वर्ष तक निवास करने से जो फल प्राप्त होता है, वह मथुरापुरी में केवल अगहन (मार्गशीर्ष) में निवास करने से मिल जाता है।
मार्गशीर्ष मास में विश्वदेवताओं का पूजन किया जाता है कि जो गुजर गये उनके आत्मा शांति हेतु ताकि उनको शांति मिले। जीवनकाल में तो बिचारे लेकिन शांति न लें पाये और चीजों में उनकी शांति दिखती रही पर मिली नहीं। तो मार्गशीर्ष मास में उन भटकते जीवों के सद्गति हेतु विश्व देवताओं के पूजन करने से उन्हें सदगति मिलती है।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi।com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)