नर्मदा जी की परिक्रमा से होती है अक्षय फल की प्राप्ति, जानिए परिक्रमा के नियम
भारत देश प्राचीन संस्कृति का देश है। यहां अनेकों देवी-देवताओं, पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों की पूजा की जाती है। यहां अनेक त्योहार आदि मनाने की परंपरा सदियों पुरानी है। ऐसे ही सभी प्रमुख नदियों की परिक्रमा के बारे में भी यहां के धर्मशास्त्रों आदि में उल्लेख मिलता है। गंगा, गोदावरी, महानदी, गोमती, कावेरी, सिंधु, ब्रह्मपुत्र आदि। लेकिन आज हम यहां नर्मदा नदी की परिक्रमा की जानकारी दे रहे हैं।;
भारत देश प्राचीन संस्कृति का देश है। यहां अनेकों देवी-देवताओं, पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों की पूजा की जाती है। यहां अनेक त्योहार आदि मनाने की परंपरा सदियों पुरानी है। ऐसे ही सभी प्रमुख नदियों की परिक्रमा के बारे में भी यहां के धर्मशास्त्रों आदि में उल्लेख मिलता है। गंगा, गोदावरी, महानदी, गोमती, कावेरी, सिंधु, ब्रह्मपुत्र आदि। लेकिन आज हम यहां नर्मदा नदी की परिक्रमा की जानकारी दे रहे हैं।
नर्मदा जी भारतीय संस्कृति के अनुसार एक पवित्र नदी है। नर्मदा को शास्त्रों में नर्मदा देवी की संज्ञा दी गई है। नर्मदा नदी की परिक्रमा एक धार्मिक यात्रा है, जो पैदल ही करनी होती है। ऐसा बताया जाता है कि जिसने भी नर्मदा या गंगा में से किसी एक नदी की परिक्रमा पूरी कर ली उसने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा काम कर लिया। इसलिए शास्त्रों के अनुसार नर्मदा की परिक्रमा का ही बहुत ही अधिक महत्व है।
रोमांच, खतरे और अनुभव
नर्मदा जी की परिक्रमा करने में एक ओर जहां रहस्य, रोमांच और खतरे हैं वहीं बहत से अनुभवों का भंडार भी है। ऐसा बताया गया है कि यदि ठीक तरह से नर्मदा की परिक्रमा की जाए तो तीन वर्ष, तीन माह और तेरह दिन में नर्मदा की परिक्रमा में पूर्ण होती है, परंतु कुछ लोग इस परिक्रमा को 108 दिन में भी पूरी कर लेते हैं।
1,312 किलोमीटर की परिक्रमा
नर्मदा की परिक्रमा लगभग 1,312 किलोमीटर के दोनों तटों पर निरंतर पैदल चलते हुए की जाती है। नर्मदा परिक्रमा की जानकारी के लिए तीर्थस्थलों पर अनेक प्रकार की पुस्तकें आदि मिलती हैं। नर्मदा की परिक्रमा अमरकंटक से शुरू होकर अमरकंटक में ही समाप्त होती है। Narmada River, Pradakshina, Ganga, Godavari, Mahanadi, Gomti, Kaveri, Indus, Brahmaputra, Narmada News, Amarkantak, Amarkantak News, नर्मदा नदी, प्रदक्षिणा, गंगा, गोदावरी, महानदी, गोमती, कावेरी, सिंधु, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा न्यूज, अमरकंटक, अमरकंटक न्यूज से निकलकर नर्मदा विन्ध्य और सतपुड़ा के बीच से होकर भडूच (भरुच) के पास खम्भात की खाड़ी में अरब सागर से जाकर मिलती है। नेमावर में इसका नाभि स्थल है।
वैराग्य की अधिष्ठात्री
नर्मदा जी वैराग्य की अधिष्ठात्री मूर्तिमान स्वरूप है। ऐसा बताया गया है कि गंगाजी ज्ञान की, यमुनाजी भक्ति की, ब्रह्मपुत्र तेज की, गोदावरी ऐश्वर्य की, कृष्णा कामना की और सरस्वती विवेक के प्रतिष्ठान के लिए संसार में आई हैं। सारा संसार इनकी निर्मलता और ओजस्विता व मांगलिक भाव के कारण आदर करता है और श्रद्धा से पूजन करता है। मानव जीवन में जल का विशेष महत्व होता है। यही महत्व जीवन को स्वार्थ, परमार्थ से जोड़ता है। और जल का प्रकृति और मानव का गहरा संबंध है।
ये हैं परिक्रमा करने के नियम
1. परिक्रमा काल में प्रतिदिन नर्मदा नदी में स्नान करें। नर्मदा के जल का ही जलपान करें।
2. इस दौरान किसी भी व्यक्ति से दान न लें। श्रद्धापूर्वक कोई भोजन का आग्रह करे तो आतिथि सत्कार का स्वीकार करना तीर्थयात्री का धर्म है। इसलिए उसके भोजन को ग्रहण करें।
3. व्यर्थ वाद-विवाद, पराई स्त्री के प्रति आकर्षण, निंदा, चुगली न करें। वाणी का संयम बनाए रखें। सदआचरण करें।
4. शरीरिक तप का पालन करें। देव, द्विज, गुरु, प्राज्ञ पूजनं, शौच, मार्जनाम्। ब्रह्मचर्य, अहिसा च शरीर तप उच्यते।।
5. मनः प्रसादः सौम्य त्वं मौनमात्म विनिग्रह। भव संशुद्धिरित्येतत् मानस तप उच्यते।। (गीता 17वां अध्याय) श्रीमद्वगवतगीता का त्रिविध तप आजीवन मानव मात्र को ग्रहण करना चाहिए। एतदर्थ परिक्रमा वासियों को प्रतिदिन धर्मशास्त्रों का अध्ययन करना चाहिए।
6. परिक्रमा आरंभ करने के पूर्व नर्मदा के जल में खड़े होकर संकल्प करें। माई की कड़ाही यानी हलुआ जैसा प्रसाद बनाकर कन्याओं, साधु तथा अतिथियों को यथाशक्ति भोजन कराएं।
7. प्रतिदिन नर्मदा के दक्षिणी तट पर पांच मील और उत्तरी तट पर साढ़े सात मील से अधिक दूरी की परिक्रमा नहीं करनी चाहिए।
8. कहीं भी नर्मदा जी को पार न करें। किन्तु जो नर्मदा की सहायक नदियां हैं, उन्हें भी पार करना आवश्यक हो तो केवल एक बार ही पार करें।
9. चतुर्मास में नर्मदा की परिक्रमा न करें। देवशयनी आषाढ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक सभी गृहस्थ चतुर्मास मानते हैं।
10. परिक्रमा करने के लिए बहुत सामग्री साथ लेकर न चलें। हल्के बर्तन तथा थाली कटोरी आदि रखें। सीधा सामान भी एक दो बार पाने योग्य साथ रखें।
11. परिक्रमा के दौरान बाल न कटवाएं। नख भी बार-बार न कटावें। ब्रह्मचर्य व्रत का पूरा पालन करें। सदाचार अपनाए। श्रृंगार की दृष्टि से तेल आदि कभी न लगावें। साबुन का प्रयोग न करें। शुद्ध मिट्टी का सदा उपयोग करें।
12. परिक्रमा अमरकंटक से शुरू होकर अमरकंटक में ही समाप्त होनी चाहिए। जब परिक्रमा पूर्ण हो जाए तब किसी भी एक स्थान पर जाकर भगवान शिव का नर्मदा के जल से अभिषेक करें। पूजाभिषेक करें कराएं। मुण्डनादि संस्कार कराकर विधिवत् पुनः स्नानादि, नर्मदा मैया की कढाई उत्साह और सामर्थ्य के अनुसार करें। श्रेष्ठ ब्राह्मण, साधु, अभ्यागतों को, कन्याओं को भी भोजन कराने के बाद उनका आशीर्वाद ग्रहण करके संकल्प से निवृत्त हो जाएं और अंत में नर्मदाजी की विनती करें।