Nirjala Ekadashi 2020: निर्जला एकादशी व्रत का महत्व, जानिए...

निर्जला एकादशी 2020 में 2 जन को मनाई जाएगी। इस व्रत को करने से सभी रोग शांत होकर लंबी आयु, सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।;

Update: 2020-05-26 07:13 GMT

Nirjala Ekadashi 2020:साल 2020 में निर्जला एकादशी 2 जून को है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी कहा जाता है। वैसे तो प्रत्येक एकादशी का अपना महत्व है, लेकिन 24 एकादशियों मे निर्जला एकादशी का विशेष स्थान है। इस व्रत को कलियुग में कामधेनु के समान बताया गया है। सामन्य व्रतों में एकादशी व्रत को श्रेष्ठ बताया गया है। जैसे नदियों में गंगा प्रकाशक, तत्व में सूर्य और देवताओं में भगवान विष्णु की प्रधानता है, वैसी ही व्रतों मे एकादशी व्रत की प्रधानता है।

ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से सभी रोग शांत होकर लंबी आयु, सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। संसार के सभी जीवों में स्वभाविक प्रवृति भोग की ओर है। संसार के सभी कार्यों को करते हुए भी कम से कम पक्ष में एक बार संपूर्ण भोगों से व्रत होकर स्वामित्व हो सके और उन क्षणों का अपनी स्वातिक व्रतियों से भगवत चिंतन में लग जाएं, इस लिए एकादशी व्रत का विधान हैं।

पद्म पुराणों में निर्जला एकादशी व्रत के संबंध में बड़ी सुंदर कथा मिलती है। कुंती पुत्र भीम के बारे में तो सबने सुना होगा। कुंती पुत्र भीम के लिए कोई भी व्रत करना बड़ा मुश्किल था, क्योंकि भूखे रहना उनके लिए संभव नहीं था। भीमसेन एकादशी व्रत रखना चाहते थे, इसलिए उन्होंने वेद व्यास तथा भीष्म पितामह से मार्ग दर्शन लिया।

भीम बोले की मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया सकता है। मेरे उदिर में ब्रीक नाम अग्नि हमेशा प्रज्वलित रहती है। मैं साल में सिर्फ एक ही उपवास कर सकता हूं, जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो और जिसे करने से कल्याण का भागी रहूं। दोनों ने को अस्वस्थ किया, यदि वह वर्ष में सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत कर ले तो उन्हें 24 एकादशियों का व्रत का फल मिलेगा। यह सुनकर भीम ने भी शुभ व्रत का आरंभ कर दिया। तभी से यह व्रत लोगों में भीमसेन तथा पांडव के नाम से भी प्रचलित है।

यह तो बिल्कुल स्पष्ट है कि यह व्रत निर्जल और निराहार किया जाता है। इस दिन व्यक्ति को अन्न तो क्या जल ग्रहण करना भी वर्जित है। इस व्रत में व्यक्ति केवल कुल्ला तथा आसमन करने के लिए ही जल का उपयोग कर सकता है। यह व्रत एकादशी के सूर्य उदय से लेकर द्वादशी के सूर्य उदय तक किया जाता है। द्वादशी के दिन जल से भरे कलश का पूजन करने के बाद कलश दान में देकर पारण किया जाता है। इसके बाद ही जल, भोजन और फल आदि ग्रहण किया जाता है। 

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