Parivartini Ekadashi 2020 Date : परिवर्तिनी एकादशी 2020 में कब है,जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा
Parivartini Ekadashi 2020 Date : परिवर्तिनी एकादशी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन मनाई जाती है।शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार भी लिया था। इसी कारण से इस एकादशी का अधिक महत्व दिया जाता है। यदि आप परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करना चाहते हैं तो आपको परिवर्तिनी एकदाशी 2020 में कब है (Parivartini Ekadashi 2020 Mein Kab Hai), परिवर्तनी एकादशी का शुभ मुहूर्त (Parivartini Ekadashi Shubh Muhurat), परिवर्तिनी एकादशी का महत्व (Parivartini Ekadashi Importance), परिवर्तिनी एकादशी की पूजा विधि (Parivartini Ekadashi Puja Vidhi) और परिवर्तिनी एकादशी की कथा (Parivartini Ekadashi Ki Katha) अवश्य ही जान लेनी चाहिए।;
Parivartini Ekadashi 2020 Date : परिवर्तिनी का अर्थ है परिवर्तन और एकादशी तिथि होने के कारण इस दिन को परिवर्तिनी एकदाशी (Parivartini Ekadashi) के नाम से जाना जाता है।। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्ण (Lord Vishnu) श्रीर सागर में विश्राम करते हुए करवट बदलते हैं। इतना ही नहीं इस दिन यदि कोई व्यक्ति पूरी श्रद्धा से भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना करता है तो उसे जीवन के सुखों की प्राप्ति होती है और मरने के बाद उसे बैंकुंठ धाम में स्थान मिलता है तो आइए जानते हैं परिवर्तिनी एकादशी से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें।
परिवर्तिनी एकादशी 2020 तिथि (Parivartini Ekadashi 2020 Tithi)
29 अगस्त 2020
परिवर्तिनी एकादशी 2020 शुभ मुहूर्त (Parivartini Ekadashi 2020 Shubh Muhurat)
एकादशी तिथि प्रारम्भ - सुबह 08 बजकर 38 मिनट से (28 अगस्त 2020)
एकादशी तिथि समाप्त - अगले दिन सुबह 08 बजकर 17 मिनट तक (29 अगस्त 2020)
परिवर्तिनी एकादशी का महत्व (Parivartini Ekadashi Ka Mahatva)
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। परिवर्तिनी एकादशी परिवर्तन को दर्शाती है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु श्रीर सागर में शेषनाग के ऊपर सोते हुए करवट बदलते हैं और वह इस दिन अपनी प्रसन्न मुद्रा में होते हैं। इसी कारण से परिवर्तिनी एकादशी को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है। इतना ही नहीं इसी दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार भी लिया था।
परिवर्तिनी एकादशी के दिन जो भी व्यक्ति भगवान विष्णु की विधिवत पूजा- अर्चना करता है। उसके जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और उसके सभी पाप धूल जाते हैं। इस दिन पूजा करने वाले व्यक्ति को धरती लोक पर तो सभी सुखों की प्राप्ति होती ही है साथ ही उसे मरने के बाद बैकुंठ में भी स्थान प्राप्त होता है। माना जाता है कि इस दिन पाताल लोक में भगवान विष्णु की एक प्रतिमा राजा बलि के पास भी होती है।
परिवर्तिनी एकादशी की पूजा विधि (Parivartini Ekadashi Puja Vidhi)
1. परिवर्तिनी एकादशी के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही करना चाहिए। इस दिन साधक को स्नान करने के बाद पीले वस्त्र धारण करने चाहिए।
2. इसके बाद एक चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए और उन्हें पीले वस्त्र, पीले फूल,फल ,तुलसी दल,नैवेद्य आदि अर्पित करने चाहिए।
3. यह सभी चीजें अर्पित करने के बाद उनकी विधिवत पूजा करनी चाहिए और परिवर्तिनी एकादशी की कथा पढ़नी या सुननी चाहिए।
4.इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए और उन्हें पीली मिठाईयों का भोग लगाना चाहिए।
5.अंत में उनकी धूप व दीप से आरती उतारनी चाहिए और पूजा में हुई किसी भी प्रकार की गलती के लिए क्षमा याचना करनी चाहिए।
परिवर्तिनी एकादशी की कथा (Parivartini Ekadashi Story)
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार अर्जुन भगनवान श्री कृष्ण से कहा हे वासुदेव! मुझे परिवर्तिनी एकादशी के महत्व के बारे मे बताएं। इस पर भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं हे अर्जुन! मैं तुम्हें अब सभी पापों का नाश करने वाली परिवर्तिनी एकादशी की कथा सुनाने जा रहा हुं ध्यानपूर्वक इसे सुनों। यह त्रेतायुग की बात हैं। उस समय एक बलि नाम का असुर हुआ करता था। लेकिन वह अत्यंत ही दानी,सत्यवादी और ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था।
वह जप और तर सदैव ही करता रहता था। इसी वजह से उसने देवराज इन्द्र को युद्ध में परास्त करके स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमा लिया था। सभी देवता इस समस्या के समाधान के लिए भगवान विष्णु के पास गए और रक्षा के लिए प्रार्थना की। इसके बाद भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया और एक ब्राह्मण बालक रूप में राजा बलि के पास गया।मैनें राजा बलि से याचना की वे मुझे तीन पग धरती दे दें। इससे उन्हें तीनों लोकों के दान का फल मिलेगा।
राजा बलि ने इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और मुझे भूमि दान करने का वचन दिया। जैसे ही राजा बलि ने दान का संकल्प लिया मैने अपना विराट रूप धारण कर लिया। विराट रूप धारण करते ही मैने अपने एक पांव से धरती लोक और दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग और पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया। जिसके बाद तीसरे पग के लिए कुछ भी शेष नही था । इसलिए राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया और मैने अपना तीसरा पग उनके सिर पर रख दिया।
राज बलि की वचन प्रतिबद्धता देखकर मैने उन्हें पाताल लोक दे दिया और कहा कि मैं सदैव तुम्हारे साथ रहुंगा। परिवर्तिनी एकादशी के दिन मेरी प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है। परिवर्तिनी एकादशी पर मैं सोते हुए करवट बदलता हुं।