Sankashti Chaturthi 2022 : पौष संकष्टी चतुर्थी पर आज गणपति को ऐसे करें प्रसन्न, जानें पूरी पूजाविधि

Sankashti Chaturthi 2022 : आज पौष मास की संकष्टी चतुर्थी का व्रत है। संकष्टी चतुर्थी हर मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आती है। वहीं आज के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से व्रती को सुख-समृद्धि, धन और वैभव की प्राप्ति होती है और साथ ही सुखद दांपत्य जीवन का वरदान मिलता है।;

Update: 2022-12-11 01:54 GMT

Sankashti Chaturthi 2022 : आज पौष मास की संकष्टी चतुर्थी का व्रत है। संकष्टी चतुर्थी हर मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आती है। वहीं आज के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से व्रती को सुख-समृद्धि, धन और वैभव की प्राप्ति होती है और साथ ही सुखद दांपत्य जीवन का वरदान मिलता है। संकष्टी चतुर्थी के दिन शुभ मुहूर्त में गणपति पूजा करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती है। आज के दिन विधि विधान से भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। यदि आप भी आज के दिन संकष्टी चतुर्थी व्रत कर रहे हैं तो आपको गणेश पूजा की विधि के बारे में ज्ञान होना आवश्यक है। तो आइए जानते हैं संकष्टी चतुथी की पूजाविधि के बारे में।  

पौष संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त 2022

पौष संकष्टी चतुर्थी व्रत तिथि 

11 दिसंबर 2022, दिन रविवार

चतुर्थी तिथि प्रारंभ 

11 दिसंबर शाम 04:15 बजे

चतुर्थी तिथि समाप्त 

12 दिसंबर शाम 06:49 बजे

चंद्रोदय टाइम 

11 दिसंबर 2022, रात्रि 08:11 बजे

पुनर्वसु 

10 दिसंबर 2022, शाम 05:42 बजे से 11 दिसंबर 2022, शाम 08:36 बजे तक

पुष्य 

11 दिसंबर 2022, शाम 08:36 बजे से 12 दिसंबर 2022, शाम 11:36 बजे तक

ब्रह्म 

11 दिसंबर 2022, सुबह 04:25 बजे से 12 दिसंबर सुबह 05:15 बजे तक

पौष संकष्टी चतुर्थी पूजाविधि

संकष्टी चतुर्थी तिथि के दिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद अब आप सूर्यदेव को जल अर्पित करें और संकष्टी चतुर्थी व्रत एवं भगवान गणेश की पूजा का संकल्प लें। पूजास्थान पर आप गणेश जी की मूर्ति को स्थापित करें और गंगाजल से उनका अभिषेक करें।

चंदन लगाएं और गणेश जी को वस्त्र, फूल-माला, 21 दूर्वा, फल, अक्षत, धूप, दीप, गंध और मोदक आदि का भोग लगाएं। गणेश चालीसा का पाठ करें और उसके बाद संकष्ठी चतुर्थी व्रत की कथा पढ़ें और सुनें।

पूजा के अंत में भगवान गणेश की आरती करें। तथा दिनभर फलाहार करते हुए रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा करें और उसके पश्चात व्रत का पारण करें। यदि आप चतुर्थी तिथि के दिन रात्रि में व्रत का पारण नहीं करते हैं, तो आप उसके अगले दिन भी पारण कर सकते हैं।

(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।)

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