जानिए श्राद्ध करने में समर्थ न हो तो आप पितृों को कैसे तृप्त करें
हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार प्रत्येक हिन्दू परिवार में पितृ पक्ष के दौरान अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने का विधान है। और सभी लोग अपने पितृों का श्राद्ध कर्म और तर्पण तथा पिंड दान आदि अपनी सामर्थ्य के अनुसार करते भी है। लेकिन अगर व्यक्ति धन से हीन हो अथवा गरीब हो और अपने पितृों का श्राद्ध कर्म आदि करने में असमर्थ हो तो उसे किस प्रकार अपने पितृों को तृप्त करना चाहिए। आइए आप भी जानें श्रीराम कथा वाचक आचार्य पंडित उमाशंकर भारद्वाज के अनुसार पितृों को तृप्त और प्रसन्न करने के शास्त्रानुकूल कुछ अचूक उपायों के बारे में जरुरी बातें।;
हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार प्रत्येक हिन्दू परिवार में पितृ पक्ष के दौरान अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने का विधान है। और सभी लोग अपने पितृों का श्राद्ध कर्म और तर्पण तथा पिंड दान आदि अपनी सामर्थ्य के अनुसार करते भी है। लेकिन अगर व्यक्ति धन से हीन हो अथवा गरीब हो और अपने पितृों का श्राद्ध कर्म आदि करने में असमर्थ हो तो उसे किस प्रकार अपने पितृों को तृप्त करना चाहिए। आइए आप भी जानें श्रीराम कथा वाचक आचार्य पंडित उमाशंकर भारद्वाज के अनुसार पितृों को तृप्त और प्रसन्न करने के शास्त्रानुकूल कुछ अचूक उपायों के बारे में जरुरी बातें।
श्राद्ध पक्ष के दौरान यदि आप ब्राह्मणों को अन्न देने में समर्थ न हो तो ब्राह्मणों को वन्य कंदमूल, फल, जंगली शाक एवं थोड़ी-सी दक्षिणा ही दे दीजिए। यदि आप इतना करने में भी समर्थ नही हैं तो किसी भी द्विजश्रेष्ठ को प्रणाम करके एक मुट्ठी काले तिल ही दे दीजिए अथवा पितरों के निमित्त पृथ्वी पर भक्ति एवं नम्रतापूर्वक सात-आठ तिलों से युक्त जलांजलि दे देवे। यदि इसका भी अभाव हो तो कहीं न कहीं से एक दिन घास लाकर प्रीति और श्रद्धापूर्वक पितरों के उद्देश्य से गौ को खिलाएं। इन सभी वस्तुओं का अभाव होने पर वन में जाकर अपना कक्षमूल (बगल) सूर्य को दिखाकर उच्च स्वर पितृों के निमित्त मंत्र का जाप करें।
मंत्र
न मेऽस्ति वित्तं न धनं न चान्यच्छ्राद्धस्य योग्यं स्वपितृन्नतोऽस्मि।
तृष्यन्तु भक्तया पितरो मयैतौ भुजौ ततौ वर्त्मनि मारूतस्य।।
वायु पुराण के अनुसार अगर व्यक्ति गरीब है और पितरों को श्राद्धकर्म करने में असमर्थ है तो उसे अपने पितृों का ध्यान करते हुए उनसे प्रार्थना करनी चाहिए। और अपने पितृों से कहना चाहिए कि मेरे पास श्राद्ध कर्म के योग्य न धन-संपत्ति है और न कोई अन्य सामग्री। अतः मैं अपने पितरों को प्रणाम करता हूं। वे मेरी भक्ति से ही तृप्तिलाभ करें। मैंने अपनी दोनों बाहें आकाश में उठा रखी हैं।
श्राद्ध करने के अधिकारी
श्राद्धकल्पलता के अनुसार श्राद्ध के अधिकारी पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, दौहित्र, पत्नी, भाई, भतीजा, पिता, माता, पुत्रवधू, बहन, भानजा, सपिण्ड अधिकारी बताए गए हैं।