शनि जयंती पर करें इन प्रभावशाली मंत्रों का जाप, मिलेगा सुख और सम्मान

Shani Jayanti 2023: ऐसी मान्यता है कि जो जातक शनि जयंती के दिन शनि कवच का पाठ करता है, उसकी सारी समस्या खत्म हो जाती है। यही नहीं शनि देव की कृपा भी प्राप्त होती है। शनि जयंती पर शनि कवच का पाठ और शनि स्तोत्र के पाठ के बारे में नीचे जानिये।;

Update: 2023-05-18 05:52 GMT

Shani Jayanti 2023: इस साल शनि जयंती 19 मई 2023 दिन शुक्रवार को है। हिंदू पंचांग के अनुसार, शनि जयंती के दिन ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि पड़ रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ज्येष्ठ अमावस्या के दिन ही शनि देव का जन्मदिन मनाया जाता है, इसलिए इस तिथि को शनि जयंती के नाम से भी जानते हैं। शास्त्रों के अनुसार, शनि देव की महिमा पाने के लिए शनिदेव के प्रभावशाली मंत्र का जाप करना चाहिए। आज इस खबर में बताएंगे शनि जयंती के दिन राशि अनुसार मंत्रों का जाप करने के बारे में, जिनसे वे प्रसन्न हो सकें। इसके अलावा शनि जयंती के दिन शनि कवच का पाठ और शनि स्तोत्र का पाठ करने के बहुत सारे लाभ होते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो जातक शनि जयंती के दिन शनि कवच का पाठ करता है, उसकी सारी समस्या खत्म हो जाती है। यही नहीं, शनि देव की कृपा भी प्राप्त होती है। तो आइये जानते हैं कि शनि जयंती पर शनि कवच का पाठ और शनि स्तोत्र के पाठ कैसे करें...

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शनि देव के महामंत्र

ओम निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।

छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥


शनि देव बीज मंत्र

ओम प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।

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शनि देव के रोग निवारण मंत्र

ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिहा।

कंकटी कलही चाउथ तुरंगी महिषी अजा।।

शनैर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन् पुमान्।

दुःखानि नाश्येन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखमं।।

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राशि अनुसार शनि देव का मंत्र

मेष राशि: ओम शांताय नम:

वृष राशि: ओम वरेण्णाय नम:

मिथुन राशि: ओम मंदाय नम:

कर्क राशि: ओम सुंदराय नम:

सिंह राशि: ओम सूर्यपुत्राय नम:

कन्या राशि: ओम महनीयगुणात्मने नम:

तुला राशि: ओम छायापुत्राय नम:

वृश्चिक राशि: ओम नीलवर्णाय नम:

धनु राशि: ओम घनसारविलेपाय नम:

मकर राशि: ओम शर्वाय नम:

कुंभ राशि: ओम महेशाय नम:

मीन राशि: ओम सुंदराय नम:

शनि कवच का पाठ

अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः,

शूं कीलकम्, शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः

नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।

चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।

श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महंत्।

कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।

कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।

शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।

ऊँ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन:।

नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज:।।

नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा।

स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज:।।

स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।

वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता।।

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नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा।

ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा।।

पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल:।

अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन:।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य:।

न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज:।।

व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा।

कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि:।।

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।

कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।

जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु:।।

Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।

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