Shardiya Navratri 2020 Mein Kab Hai : जानिए शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व

Shardiya Navratri 2020 Mein Kab Hai : अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ (Shardiya Navratri Start) होता है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा (Goddess Shailputri Puja) की जाती है और साथ ही घटस्थापना भी की जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि क्या है मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व। अगर नहीं तो हम आपको इसके बारे में बताएंगे तो चलिए जानते हैं मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व।;

Update: 2020-09-23 10:58 GMT

Shardiya Navratri 2020 Mein Kab Hai : शारदीय नवरात्रि 17 अक्टूबर 2020 (Shardiya Navratri 17 October 2020) से प्रारंभ हो रही है। नवरात्रि के नौ दिनों तक मां दुर्गा (Goddess Durga) के नौं के रूपों की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के नौ रूपों में उनका पहला रूप मां शैलपुत्री का है। जिनकी पूजा नवरात्रि के प्रथम दिन ही की जाती है। लेकिन क्यों की जाती है मां शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के प्रथम दिन और क्या है मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व आइए जानते हैं...

मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व (Goddess Shailputri Puja Importance)

नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप के रूप में मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इसी दिन घटस्थापना भी की जाती है। शास्त्रों के अनुसार मां शैलपुत्री का जन्म शैल से हुआ था और इन्हें पर्वत की पुत्री माना जाता है। । जिसे संस्कृत भाषा में पत्थर भी कहा जाता है। माना जाता है कि नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने से जीवन में स्थिरता आती है। वहीं यदि कोई महिला इस दिन मां शैलपुत्री की पूजा करती है तो उसके जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होती है।

इसके अलावा यह भी माना जाता है कि मां शैलपुत्री का जन्म सती के रूप में हुआ था। इसी कारण माता शैलपुत्री की पूजा करने से वैवाहिक सुख में आ रही सभी प्रकार की समस्याओं का भी अंत होता है। मां शैलपुत्री की पूजा से मूलाधार चक्र जाग्रत होता है। वहीं इन्हें चंद्रमा की आधिपत्य देवी भी माना जाता है। इसी कारण से माता शैलपुत्री की पूजा से चंद्रमा के सभी दोष भी समाप्त होते हैं। इतना ही नहीं मां शैलपुत्री की पूजा करने वाले भक्तों को सभी प्रकार के सौभाग्य की भी प्राप्ति होती है।

नवरात्रि के दिन माता शैलपुत्री की पूजा चमेली के फूलों से करनी चाहिए। क्योंकि चमेली के फूल माता शैलपुत्री को अत्याधिक प्रिय हैं। माता शैलपुत्री बैल पर विराजमान हैं। क्योंकि माता शैलपुत्री का एक नाम वृषारूढ़ा भी है। इनकी दो भुजाएं हैं। जिसमें उन्होंने अपने दाएं हाथ में त्रिशुल और दूसरे हाथ में कमल धारण किया हुआ है। मां शैलपुत्री अपने भक्तों पर बहुत ही जल्द प्रसन्न हो जाती हैं और उन्हें सभी प्रकार के सुख और सौभाग्य प्रदान करती हैं।  

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