Shardiya Navratri 2023: क्यों भैरवनाथ के बिना अधूरी है माता दुर्गा की पूजा, जानें कैसे हुआ था इनका जन्म

Shardiya Navratri 2023: पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता दुर्गा पूजा बाबा भैरवनाथ के बिना अधूरी है। यही कारण है कि नवरात्रि पर्व में कन्या पूजन के दौरान भैरव बाबा के रूप में एक बालक को बैठाया जाता है। जानें कब हुआ था बाबा भैरवनाथ का जन्म।;

Update: 2023-10-11 09:37 GMT

Shardiya Navratri 2023: शारदीय नवरात्रि की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। जगह-जगह पर देवी के पंडाल सजाए जा रहे हैं। नवरात्रि के पर्व पर माता के मंदिर में लाखों लोगों की भीड़ देखी जाती है। माता के दर्शन के बाद बाबा भैरवनाथ के दर्शन करने की परंपरा है। माता वैष्णो देवी के दर्शन भी तभी सफल माने जाते हैं, जब भक्त बाबा भैरव के दर्शन कर लेता है। अष्टमी और नवमी कन्या पूजन के समय कन्याओं के साथ एक बालक यानी भैरव के बाल रूप को बैठाया जाता है। आइए जानते हैं कि बाबा भैरव का जन्म कैसे हुआ...

भैरवनाथ का जन्म

भैरवनाथ के जन्म को लेकर कई पौराणिक कथाएं सामने आती हैं, जिसमें भैरव के जन्म की अलग-अलग कथाएं हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, कहा जाता है कि एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं में श्रेष्ठता को लेकर बहस हुई। इस बात पर अन्य सभी देवताओं की बात सुनी गई। देवताओं की राय को भगवान शिव और विष्णु दोनों ने पूर्ण रूप से समर्थन किया, लेकिन ब्रह्माजी इस बात के विरूद्ध थे। इस बात से नाराज होकर ब्रह्माजी ने क्रोध में आकर भगवान शिव को अपशब्द कह दिए, जिस बात से भगवान शिव को क्रोध आ गया। भगवान शिव के क्रोध को देखकर तीनों लोकों के देवता डर गए। ऐसा कहा जाता है कि इस क्रोध की वजह से भैरव का जन्म हुआ।

शिवपुराण में भी भैरव की उत्पत्ति का वर्णन

शिवपुराण के अनुसार, महादेव के रक्त से भैरवनाथ का जन्म हुआ था। भैरव की उत्पत्ति जिस समय हुई वह समय कृष्ण पक्ष की अष्टमी का था। इस तिथि को भैरवाष्टमी के रूप में भी माना जाता है।

वहीं, दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव के अपमान के कारण भैरव की उत्पत्ति हुई। ऐसा कहा जाता है कि एक बार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शिव की वेशभूषा और उनके गुणों का रूप देखकर अपमानजनक शब्द कहे। भगवान शिव ने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया, लेकिन उसी समय अचानक से उनके शरीर से भैरव की उत्पत्ति हुई।

माता रानी के बाद क्यों जरूरी है बाबा भैरव के दर्शन

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि भैरवनाथ से बचते हुए देवी दुर्गा ने पर्वतों पर स्थित गुफा में शरण ले ली थी। इसी गुफा में छिपकर माता दुर्गा ने नौ महीने तक घोर तपस्या की। तपस्या के उपरान्त ही भैरव ने उन्हें ढूंढ लिया और उन पर अपनी शक्तिशाली शक्तियां आजमाने लगा। तब माता दुर्गा ने रौद्र रूप लेकर भैरवनाथ का वध किया।

वध के बाद भैरवनाथ को अपनी गलती का एहसास हुआ, जिसके बाद भैरव ने माता से क्षमा याचना की। क्षमा याचना के बदले माता ने भैरव को आशीर्वाद दिया कि मेरे दर्शन के लिए जो भी भक्त आएगा, बिना तुम्हारे दर्शन के मेरी पूजा सफल नहीं होगी।

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