Phulera dooj 2021: आज लगा दें भगवान श्रीकृष्ण-राधा जी को पोहा का भोग, जानें फुलेरा दूज का महत्व, पूजाविधि, कथा और कैसे बनायें गुलरियां
- फुलेरा दूज (Phulera dooj) के दिन भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna) के लिए स्पेशल भोग (Special Bhog) तैयार किया जाता है।
- फुलेरा दूज के दिन से ही होली (Holi) की तैयारियां प्रारंभ होती हैं।
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Phulera dooj 2021 : फुलेरा दूज हिन्दू सनातन धर्म के प्रमुख त्योहारों में महत्वपूर्ण पर्व है। फुलेरा दूज के दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की पूजा करने का विधान है। फुलेरा दूज के दिन पूजा के दौरान भगवान कृष्ण और राधा जी को स्पेशल भोग लगाने का विधान है। जिससे उनके भक्तों को विशेष आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं आज फुलेरा दूज के दिन भगवान को क्या भोग में अर्पित करें और फुलेरा दूज का महत्व, पूजाविधि, कथा एवं गुलरियां बनाने की विधि के बारे में।
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स्पेशल भोग पोहा
फुलेरा दूज के दिन भगवान श्रीकृष्ण के लिए स्पेशल भोग तैयार किया जाता है। जिसमें पोहा और अन्य विशेष व्यजंन शामिल हैं। भोजन पहले देवता को अर्पित किया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में सभी भक्तों में वितरित किया जाता है। इस दिन किए जाने वाले दो प्राथमिक अनुष्ठान समाज में रसिया और संध्या आरती हैं।
फुलेरा दूज का महत्व
फाल्गुन माह में फुलेरा दूज का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन को अबूझ मुहूर्त भी मानते हैं। फुलेरा दूज को मांगलिक कार्यों को करने के लिए बहुत ही शुभ दिन माना जाता है। फुलेरा दूज के दिन किसी भी मुहूर्त में शादी संपन्न की जा सकती है। इस दिन उत्तर भारत में भगवान कृष्ण और राधा का फूलों से श्रृंगार करके पूजन किया जाता है। इस दिन से लेकर लोग होली के दिन तक अपने घरों में शाम के समय प्रतिदिन गुलाल और आटे से रंगोली बनाते हैं। हिंदू धर्म में लोग किसी भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि के लिए शुभ मुहूर्त का विचार करते हैं। लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, फुलेरा दूज के दिन अबूझ मुहूर्त होता है। इस त्योहार को सबसे महत्वपूर्ण और शुभ दिनों में से एक माना जाता है। इस दिन किसी भी तरह के हानिकारक प्रभावों और दोषों से प्रभावित नहीं होता है और इसे अबूझ मुहूर्त माना जाता है। शुभ मुहूर्त पर विचार करने या किसी विशेष शुभ मुहूर्त को जानने के लिए पंडित से परामर्श करने की आवश्यकता नहीं है।
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फुलेरा दूज मनाने की विधि
इस दिन सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान जो किया जाता है वह भगवान कृष्ण के साथ रंग-बिरंगे फूलों से होली खेलने का होता है। ब्रज क्षेत्र में, इस विशेष दिन पर, देवता के सम्मान में भव्य उत्सव होते हैं। मंदिरों को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है और भगवान कृष्ण की मूर्ति को एक सजाये गए और रंगीन मंडप में रखा जाता है। रंगीन कपड़े का एक छोटा टुकड़ा भगवान कृष्ण की मूर्ति की कमर पर लगाया जाता है, जिसका प्रतीक है कि वह होली खेलने के लिए तैयार हैं।
राधा-कृष्ण कथा
पौराणिक कथा के अनुसार व्यस्तता के चलते कृष्ण कई दिनों से राधा से मिलने वृंदावन नहीं आ रहे थे। राधा के दुखी होने पर उनके सहेलियां भी कृष्ण से रूठ गई थीं। राधा के उदास रहने के कारण मथुरा के वन सूखने लगे और पुष्प मुरझा गए। वनों की स्थिति देखकर कृष्ण को कारण पता चल गया और वह राधा से मिलने वृंदावन पहुंच गए। श्रीकृष्ण के आने से राधा खुश हो गईं और चारों ओर फिर से हरियाली छा गई। कृष्ण ने एक खिल रहे पुष्प को तोड़ लिया और राधा को छेड़ने के लिए उनपर फेंक दिया। राधा ने भी ऐसा ही किया। यह देख वहां मौजूद ग्वाले और गोपिकाएं भी एक दूसरे पर फूल बरसाने लगीं। तब से आज भी प्रतिवर्ष मथुरा में फूलों की होली खेली जाती है।
क्या होती हैं गुलरियां
गुलरियां गोबर से बनाई जाती हैं। इन्हें बनाने का कार्य फुलेरा दूज से ही शुरू कर दिया जाता है। इसमें महिलाएं गोबर के छोटे-छोटे गोले बनाकर उसमें उंगली से बीच में सुराख बना देती हैं। सूख जाने के बाद इन गुलरियों की पांच सात मालाएं बना ली जाती हैं और होलिका दहन के दिन इन गुलरियों को होली की अग्नि में चढ़ा दिया जाता है।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)