जानिए घर की नींव में क्यों दबाए जाते हैं सर्प और कलश
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जमीन के नीचे पाताल लोक है। और पाताल लोक के स्वामी शेषनाग हैं। पौराणिक ग्रंथों में शेषनाग के फन पर पृथ्वी टिकी होने के उल्लेख मिलते हैं।;
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जमीन के नीचे पाताल लोक है। और पाताल लोक के स्वामी शेषनाग हैं। पौराणिक ग्रंथों में शेषनाग के फन पर पृथ्वी टिकी होने के उल्लेख मिलते हैं। भगवान परमदेव अनंत ने देवस्वरुप शेषनाग को पैदा किया था। और शेषनाग ही पर्वतों और नदियों समेत सारी पृथ्वी को अपने सिर पर धारण करते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार शेषनाग के हजारों फन हैं। शेषनाग भगवान विष्णु की शैय्या बनकर उनको सुख पहुंचाने वाले उनके अनन्य भक्त भी हैं। शेषनाग ने भगवान विष्णु के साथ कई बार अवतार लेकर उनकी लीलाओं में भी भगवान विष्णु का साथ दिया है।
श्रीमद्भागवद गीता के दसवें अध्याय के 29 वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है।
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् ।
पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ॥
अर्थात मैं सभी नागों (फन वाले सर्पों) में शेषनाग हूं, मैं समस्त जलचरों में वरुणदेव हूं, मैं सभी पितरों में अर्यमा हूं, और मैं ही सभी नियमों को पालन करने वालों में यमराज हूं।
भवन निर्माण का पूरा वैज्ञानिक कर्मकांड इस विश्वास पर आधारित है कि जैसे शेषनाग पृथ्वी को अपने फन पर धारण किए हुए हैं, ठीक उसी तरह मेरे इस घर की नींव भी शेषनाग रुपी चांदी के नाग के ऊपर स्थापित रहेगी।
शेषनाग क्षीर सागर में निवास करते हैं। इसलिए कलश में दूध, दही, घी आदि डालकर तथा मंत्रों से आवाह्न कर शेषनाग को बुलाया जाता है। ताकि वे आकर घर की रक्षा करें।
भगवान विष्णु रुपी कलश में लक्ष्मी स्वरुप सिक्का डालकर पुष्प और दूध पूजा के दौरान चढ़ाया जाता है। जोकि नागों को सबसे अधिक प्रिय होता है। भगवान शिव के आभूषण तो नाग है ही, वहीं लक्ष्मण और बलराम भी शेषावतार ही माने जाते हैं। और इसी विश्वास के साथ यह प्रथा प्राचीनकाल से चली आ रही है।