Mahashivratri 2023: आस्था का यह पावन धाम शिव-विष्णु के संगम का प्रतीक, गैर हिंदू नहीं कर सकते हैं मंदिर में प्रवेश

Mahashivratri 2023: हिंदुओं के लिए आस्था का वो पावन धाम, जहां पर होता है हरि और शिव का संगम और जहां गैर हिंदुओं के प्रवेश पर है रोक, यहां विस्तार से पढ़िये पूरी खबर...;

Update: 2023-02-07 09:42 GMT

Mahashivratri 2023: क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसा भी महादेव शिव (Mahadev Shiva) और भगवान विष्णु (Lord Vishnu) का मंदिर है, जहां गैर हिंदुओं (Non-Hindus) को मंदिर में प्रवेश वर्जित है। आज भी ये मंदिर अपनी बेहतरीन वास्तुकला Architecture) और खूबसूरत मूर्तियों (Beautiful sculptures) की प्रसिद्धि के लिए जाना जाता है। तो आइए जानते हंर कि यह मंदिर कहां स्थित है और इसके पीछे का क्या है इतिहास...

कहां स्थित है ये मंदिर

भारत के ओडिशा (Odisha) राज्य की राजधानी भुवनेश्वर (Bhubaneswar) में स्थित महादेव और भगवान विष्णु का मंदिर, जो लिंगराज (Lingaraj Temple) के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर की वास्तुकला और खूबसूरत मूर्तियां आकर्षण का केंद्र बिंदू है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, कहा जाता है कि भुवनेश्वर शहर का नाम भगवान त्रिभुवनेश्वर यानि महादेव के नाम पर ही रखा गया है। भुवनेश्वर शहर के सबसे बड़े मंदिर में से एक लिंगराज मंदिर को माना जाता है। मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण चन्द्रवंशी राजा ययाति केसरी (Chandravanshi King Yayati Kesari) ने 11वीं सदी में करवाया था। इस मंदिर के इतिहास काे देखा जाए तो ये कई बार टूटा और कई बार बनाया गया। इस मंदिर की वास्तुकला और धार्मिक महत्व के बारे में विस्तार से जानते हैं।

कैसा है लिंगराज मंदिर की वास्तुकला

भारतीय हिंदुओं की आस्था और धर्म से जुड़ा यह पावन धाम न सिर्फ भगवान महादेव बल्कि श्री हरि विष्णु की भी साधना आराधना का केंद्र है। इस मंदिर में भगवान शिव की 8 फीट लंबे शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। यह शिवलिंग ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित है। लिंगराज मंदिर का प्रांगण की बात करें तो करीब 150 मीटर वर्गाकार में फैला हुआ है, जिसके 40 मीटर की ऊंचाई पर कलश लगाया गया है। इस मंदिर में विष्णु भगवान की मूर्तियां भी विराजमान हैं। इस मंदिर का प्रथम गर्भगृह को देवुल और दूसरा भाग जगमोहन कहलाता है। दूसरे भाग के सामने ही नृत्य मंडप और भोग मंडल स्थित है। मंदिर के परिसर में भगवान श्री कार्तिकेय, श्री गणेश तथा गौरी देवी के मंदिर भी बने हुए हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण बलुआ पत्थर से किया गया है। इस मंदिर में तकरीबन 100 से अधिक छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं।

क्या है लिंगराज मंदिर का धार्मिक महत्व

मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि लिंगराज मंदिर में जो शिवलिंग विराजमान है, उसे किसी ने स्थापित नहीं किया था बल्कि स्वयं भगवान भुवनेश्वर ने स्वयं खुद यहां निवास किया है। मान्यता यह भी है कि भगवान के 12 ज्योतिर्लिंग में से दशम ज्योतिर्लिंग का अंश समाहित है। इस मंदिर को शैव और वैष्णव परंपरा का संगम भी माना जाता है और शिव भक्त और वैष्णव भक्त, दोनों इस मंदिर में साधना-आराधना के लिए आते रहते हैं। इस मंदिर में गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित माना गया है।

जानें क्या है मदिरा पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव और पार्वती माता के बीच चल रही बातचीत में शहर भुवनेश्वर का प्रसंग आया, जिसके बाद माता पार्वती ने भुवनेश्वर शहर के बारे में पता लगाने का निश्चय किया और गौ का रूप धारण करने शहर को खोजने निकल पड़ी। भुवनेश्वर शहर को खोजने के दौरान रास्ते में कृत और वासा नाम के दो राक्षस उनके पीछे पड़ गए और माता पार्वती से विवाह का दबाव डालने लगे। जब माता पार्वती ने उन दोनों राक्षसों को बहुत समझाया, लेकिन दोनों अपनी जिद पर अड़े रहे, तब माता पार्वती ने क्रोधित होकर दोनों राक्षसों का वध कर दिया। दोनों राक्षसों के वध करने के बाद माता पार्वती को बहुत ही जोर से प्यास लगी, तो भगवान शिव उसी स्थान पर कूप रूप धारण कर अवतरित हुए और सभी नदियों को उसमें आकर देवी पार्वती की प्यास बुझाने के लिए कहा। मान्यता यह भी है कि इसके बाद से ही महादेव को इस स्थान पर कीर्तिवास के रूप में पूजन होने लगा।


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