Vat Savitri Vrat 2021 : यमराज से अपने पति के प्राण आज के दिन ही वापस लेकर आई थी सावित्री, जानें शुभ मुहूर्त, महत्व और पूरी कथा
- पति की लंबी आयु और संतान के उज्जवल भविष्य के लिए आज करें वट सावित्री व्रत
- जानें, कैसे सावित्री ने यमराज से छुड़ाए थे अपने पति के प्राण
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Vat Savitri Vrat 2021 : वट सावित्री व्रत पूजा का हिंदू धर्म में विशष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शादीशुदा महिलाएं, सुहागिनें अपने अखंड सौभाग्य के लिए वट सावित्री व्रत करते है और इस दिन वट वृक्ष की पूजा करती है। पौराणिक मान्यता है कि वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही देवी सावित्री ने अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर दिखाया था। पंचांग के मुताबिक वट सावित्री व्रत हर वर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि इस वर्ष वट सावित्री व्रत बृहस्पतिवार 10 जून यानी आज है। सावित्री व्रत के दिन वृषभ राशि में सूर्य, चंद्रमा, बुध और राहु विराजमान रहेंगे। इसलिए इस बार वट सावित्री व्रत के दिन चतुर्ग्रही योग बन रहा है। शुक्र को सौभाग्य व वैवाहिक जीवन का कारक माना जाता है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस योग से वैवाहिक जीवन में मधुरता आती है और पारिवारिक कष्टों से भी मुक्ति मिलती है।
वट सावित्री व्रत का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों स्कंद पुराण व भविष्योत्तर पुराण में भी विस्तार से मिलता है। महाभारत के वन पर्व में इसका सबसे प्राचीन उल्लेख मिलता है। महाभारत में जब युधिष्ठिर ऋषि मार्कंडेय से संसार में द्रौपदी समान समर्पित और त्यागमयी किसी अन्य नारी के ना होने की बात कहते हैं, तब मार्कंडेय जी युधिष्ठिर को सावित्री के त्याग की कथा सुनाते हैं।
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पूजा सामग्री और पूजा
वट सावित्री व्रत की पूजन सामग्री में सावित्री-सत्यवान की मूर्तियां, धूप, दीप, घी, बांस का पंखा, लाल कलावा, सुहाग का समान, कच्चा सूत, चना (भिगोया हुआ), बरगद का फल, जल से भरा कलश आदि शामिल करना चाहिए। वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रखे जाते हैं जिसे कपड़े के दो टुकड़ों से ढक दिया जाता है। एक दूसरी बांस की टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा रखी जाती है। वट वृक्ष पर महिलायें जल चढ़ा कर कुमकुम, अक्षत चढ़ाती हैं। फिर सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर उसके सात चक्कर लगाए जाते हैं और चने गुड़ का प्रसाद बांटा जाता है। इसके बाद महिलाएं कथा सुनती हैं।
वट सावित्री व्रत का महत्व
मान्यता है कि माता सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर ले आई थीं। इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास होता है। ऐसे में इस वृक्ष की पूजा से तीनों देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही अखंड सौभाग्य के साथ संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलने की मान्यता है।
अमावस्या तिथि कब से कब तक
अमावस्या तिथि शुरू | 09 जून दोपहर 01 : 57 मिनट पर अमावस्या तिथि शुरू होगी। |
अमावस्या तिथि समाप्त | 10 जून शाम 04 : 22 मिनट पर अमावस्या तिथि समाप्त होगी। |
सावित्री की कथा
राजर्षि अश्वपति की एकमात्र संतान थीं सावित्री। सावित्री ने वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति रूप में चुना। लेकिन जब नारद जी ने उन्हें बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं, तो भी सावित्री अपने निर्णय से डिगी नहीं। वह समस्त राजवैभव त्याग कर सत्यवान के साथ उनके परिवार की सेवा करते हुए वन में रहने लगीं। जिस दिन सत्यवान के महाप्रयाण का दिन था, उस दिन वह लकड़ियां काटने जंगल गए। वहां मू्च्छित होकर गिर पड़े। उसी समय यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। तीन दिन से उपवास में रह रही सावित्री उस घड़ी को जानती थीं, अत: बिना विकल हुए उन्होंने यमराज से सत्यवान के प्राण न लेने की प्रार्थना की। लेकिन यमराज नहीं माने। तब सावित्री उनके पीछे-पीछे ही जाने लगीं। कई बार मना करने पर भी वह नहीं मानीं, तो सावित्री के साहस और त्याग से यमराज प्रसन्न हुए और कोई तीन वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने सत्यवान के दृष्टिहीन माता-पिता के नेत्रों की ज्योति मांगी, उनका छीना हुआ राज्य मांगा और अपने लिए 100 पुत्रों का वरदान मांगा। तथास्तु कहने के बाद यमराज समझ गए कि सावित्री के पति को साथ ले जाना अब संभव नहीं। इसलिए उन्होंने सावित्री को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़कर वहां से अंतर्धान हो गए।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)