Yogini Ekadashi 2020: योगनी एकादशी व्रत कथा, सुनते ही सभी इच्छाएं होंगी पूर्ण
आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी है, जिसे योगिनी एकादशी कहा जाता है। 2020 में योगनी एकादशी 17 जून को है। एकादशी प्रात 5 बजकर 28 मिनट से 8 बजकर 14 मिनट तक रहेगी। आज हम आपको योगनी एकादशी व्रत कथा के बारे में बताएंगे।;
आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगनी एकादशी कहते हैं। कुल मिलाकर साल में 24 एकादशियां होती है। मल मास की एकादशइयों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है। इन्हीं एकादशियों में एक एकादशी का व्रत ऐसा भी है जिसके करने से समस्त पाप तो नष्ट होते ही हैं। साथ ही इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति इस एकादशी का उपवास रखने से मिलती है। यह आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी है, जिसे योगिनी एकादशी कहा जाता है। 2020 में योगनी एकादशी 17 जून को है। एकादशी प्रात 5 बजकर 28 मिनट से 8 बजकर 14 मिनट तक रहेगी। आज हम आपको योगनी एकादशी व्रत कथा के बारे में बताएंगे।
योगनी एकादशी व्रत कथा (Yogini Ekadashi Vrat Katha)
कुबेर नाम का राजा अलका नाम की नगरी का स्वामी था। वह राजा भूतनाथ शिव शंकर जी की पूजा में सर्वथा ही मगन रहता था। पूजा के लिए पुष्प लाने वाला मनुष्य का नाम हेम माली था और उसकी पत्नि का नाम विशालाक्षी था। एक दिन हेम माली पुष्प लाकर स्त्री के कामवश घर में ही रह गया। महाराजा कुबेर देवगृह में पूजन कर रहे थे। मध्यान का समय हो गया। राजा पुष्प की प्रतिक्षा कर रहे थे लेकिन हेम माली तो अपनी पत्नि के साथ घर पर आनंद विहार करने में मग्न था। अत्यधिक समय समाप्त हो जाने पर राजा कुबेर ने सेवकों से कहा कि तुम लोग खोज करके बताओं की इतना समय व्यतित हो जाने पर भी हेम माली क्यों नहीं आया। इस प्रकार राजा के क्रोधित शब्दों को सुनकर सेवकों ने कहा कि हे महाराज हेम माली अत्यंत काम मनुष्य है, वह अपनी पत्नि के साथ आनंद विहार कर रहा है। सेवको के वचनों के सुनकर राजा ने अत्यधिक क्रोधित होकर हेम माली को बुला लाने की आज्ञा दी। उधर हेम माली को भी अपना दोष पता चल चुका था।
हेम माली भय से कांपता हुआ राजा के सामने आया। उसे देखकर राजा ने क्रोधपूर्वक वचनों से कहा कि हे पापिष्ट तुमने भगवान शंकर का अनादर किया है। अत तु यहां से मृत्यु लोक में जाकर पत्नि से रहित तथा कुष्टी होकर जीवन यापन कर। राजा के मुख से ऐसे वचन निकलते हैं वह नीचे चला गया और कुष्ठी होकर अत्यंत कष्टकारी जीवन जीने लगा। परंतु ऐसी दशा में भगवान शंकर के पूजन से उसकी प्राचीन स्मृति नष्ट नहीं हुई थी। वह कष्टों से पीडित पूर्व कर्मों का स्मरण करता हुआ विंद्याचल की ओर गया। वहां पर उसको श्री मार्कण्डे मुनि से साक्षात्कार हुआ। वह उनके आश्रम में बैठ गया। तब मार्कण्डे मुनि ने उसे अत्यंत पीडित अवस्था में देखा तो दया के वशीभूत होकर उसको समीप बुलाया और कहा कि तुम किस प्रकार कष्टों को प्राप्त हुए हो। मुनि के प्रेमपूर्वक वचनों को सुनकर उसने अपने सम्पूर्ण पूर्व कथा बताई और उनसे प्रार्थना कि हे मुनि जी आप मुझे कोई ऐसी युक्ति बताओं जिससे मेरे कष्ट दूर हो जाएं।
मार्कण्डे ऋषि ने कहा कि मै तम्हें एक व्रत का उपदेश देता हूं, उसको ध्यानपूर्वक सुनो। जिससे तुम्हारे ये कष्ट दूर हो जाएंगे। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगनी नामक एकादशी का तुम व्रत करो, उसके प्रभाव से तुम्हारे कष्ट और कुष्ठ रोग दूर हो जाएंगे। इसप्रकार मुनि के वचनों को सुनकर उन्हें भक्तिपूर्क प्रणाम किया और उसने आनंदित होकर योगनी एकदाशी का व्रत करने लगा। पश्चात व्रत के प्रभाव से रोगों तथा कष्टों से मुक्त होकर स्वस्थ एवं सुंदर स्वरूपवान हो गया।