Ahoi Ashtami 2019 : अहोई अष्टमी का व्रत 21 अक्टूबर को, जानिए अहोई अष्टमी पर तारे निकलने का समय और क्या है तारों की महिमा
Ahoi Ashtami Tare Kab Niklenge अहोई अष्टमी पूजा का मुहूर्त शाम 5 बजकर 46 मिनट से 7 बजकर 2 मिनट तक है, अहोई अष्टमी के दिन माताएं तारे निकलने का इंतजार करती है, इसलिए हम आपको बताएंगे कि अहोई अष्टमी के दिन तारें निकलने का समय;
Ahoi Ashtami 2019 अहोई अष्टमी का व्रत सुहागन स्त्रियां संतान की लंबी उम्र और उनके मंगल के लिए करती हैं। अहोई अष्टमी के दिन तारों को अत्याधिक महत्व दिया जाता है। क्योंकि इस दिन तारों को अर्घ्य देकर ही अहोई अष्टमी का व्रत पूर्ण किया जाता है। अगर आप यह नहीं जानती की अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) के दिन तारों का उदय कब होगा और क्या है इस दिन तारों की मान्यता तो आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे। अहोई अष्टमी का व्रत (Ahoi Ashtami Fast) इस साल 2019 में 21 अक्टूबर 2019 के दिन रखा जाएगा तो आइए जानते हैं अहोई अष्टमी पर तारे निकलने का समय और उसकी मान्यता
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अहोई अष्टमी तारे निकलने का समय (Ahoi Ashtami Tara Nikalne Ka Samay)
अहोई अष्टमी पर तारे कब निकलेंगे। यदि आप यह नहीं जानते तो हम आपको बता दें कि दिल्ली में तारें अहोई अष्टमी के दिन शाम 6 बजकर 10 मिनट पर निकलेंगे। इसके अलावा चंद्रमा के उदय होने का समय रात 11 बजकर 46 मिनट है।, लेकिन यह समय प्रत्येक राज्य के हिसाब से अलग- अलग हो सकता है।
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अहोई अष्टमी पर तारों की मान्यता (Ahoi Ashtami Per Taro Ki Manyata)
करवा चौथ के दिन चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा संपन्न की जाती है। उसी प्रकार अहोई अष्टमी पर तारों को अर्घ्य देकर पूजा संपन्न की जाती है। मान्यताओं के अनुसार तारों को आजतक कोई भी नहीं गिन पाया है। इसलिए अहोई अष्टमी के दिन माताएं तारों से यह प्रार्थना करती हैं कि मेरी कुल में भी इतनी ही संतानें हो। जो मेरे कुल का नाम रोशन कर सके और जिस प्रकार तारे ब्राह्मांड में अवश्य के लिए विद्यमान रहते हैं। उसी प्रकार तारों की तरह ही कुल की संतानो का नाम संसार में हमेशा के लिए विद्यामान रहे।
इसी कारण से इस दिन माताएं तारों को अर्घ्य देती हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार सभी तारें अहोई माता की संतान है। इसलिए तारों के अर्घ्य दिए बिना अहोई अष्टमी का व्रत पूर्ण नही माना जाता है और अहोई अष्टमी का निर्जल व्रत का फल उनकी संतानो को मिल पाता है। जिस प्रकार आकाश की सुंदरता तारों से होती है। उसी प्रकार माताओं की शोभा उनकी संतानो से होती है। इसलिए इस व्रत में तारों को अधिक महत्व दिया जाता है। यह व्रत माताएं निर्जल रहकर करती हैं। जिससे उनकी संतान की सभी परेशानियां समाप्त हो सके।
ज्योतिष के अनुसार सूर्य को पुरुष और चंद्रमा को स्त्री का प्रतीक माना गया है। उसी प्रकार तारों को संतान का प्रतीक उनकी पूजा की जाती है। अहोई अष्टमी का यह एक ही व्रत है। जिसमें तारों को इतना अधिक महत्व दिया जाता है। तारों के अर्घ्य से ही इस व्रत का अंत होता है। जिसके बाद सभी माताएं अपने बच्चों को कुछ खिलाकर ही अपना व्रत खोलती हैं। अहोई अष्टमी के व्रत की पूजा भी करवा चौथ से की जाती है। लेकिन यह करवा झूठा नहीं होना चाहिए और न हीं खंडित होना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो पूजा भी अधूरी मानी जाती है।
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