Akshaya Tritiya 2020 Date And Time : अक्षय तृतीया 2020 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा
Akshaya Tritiya 2020 Date And Time : अक्षय तृतीया को हिंदू धर्म में अत्यंत ही शुभ दिन माना जाता है। इस दिन सोना खरीदना बहुत ही शुभ माना जाता है तो चलिए जानते हैं अक्षय तृतीया 2020 में कब है (Akshaya Tritiya 2020 Mai Kab Hai), अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त (Akshaya Tritiya Shubh Muhurat), अक्षय तृतीया का महत्व (Akshaya Tritiya Importance), अक्षय तृतीया की पूजा विधि (Akshaya Tritiya Puja Vidhi)और अक्षय तृतीया की कथा (Akshaya Tritiya Story);
Akshaya Tritiya 2020 Date And Time : अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन जो भी चीज खरीदी जाती है उसका लाभ कई गुना बढ़कर मिलता है। अक्षय तृतीया के दिन ही परशुराम जयंती (Parshuram Jayanti) भी मनाई जाती तो चलिए जानते हैं अक्षय तृतीया 2020 में कब है, अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त, अक्षय तृतीया का महत्व, अक्षय तृतीया की पूजा विधि और अक्षय तृतीया की कथा।
अक्षय तृतीया 2020 तिथि (Akshaya Tritiya 2020 Tithi)
26 अप्रैल 2020
अक्षय तृतीया 2020 शुभ मुहूर्त (Akshaya Tritiya 2020 Shubh Muhurat)
अक्षय तृतीया पूजा मुहूर्त - सुबह 5 बजकर 45 मिनट से दोपहर 12 बजकर 19 मिनट तक (26 अप्रैल 2020)
अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने का समय - रात 11 बजकर 51 मिनट (25 अप्रैल 2020) से सुबह 05 बजकर 45 मिनट तक (26 अप्रैल 2020)
अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने का समय - सुबह 5 बजकर 45 मिनट से दोपहर 1 बजकर 22 मिनट तक (26 अप्रैल 2020)
अक्षय तृतीया चौघड़िया मुहूर्त (Akshaya Tritiya Choghadiya Muhurat)
प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) - सुबह 7 बजकर 23 मिनट से दोपहर 12 बजकर 19 मिनट तक
अपराह्न मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) - दोपहर 12 बजकर 19 मिनट से शाम 5 बजकर 14 मिनट तक
सायाह्न मुहूर्त (लाभ) - शाम 6 बजकर 53 मिनट से रात 8 बजकर 14 मिनट तक
रात्रि मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) - रात 9 बजकर 36 मिनट से रात 1 बजकर 40 मिनट तक
उषाकाल मुहूर्त (लाभ) - सुबह 4 बजकर 23 मिनट से सुबह 5बजकर 45 मिनट तक
तृतीया तिथि प्रारम्भ - सुबह 11 बजकर 51 मिनट बजे से (25 अप्रैल 2020)
तृतीया तिथि समाप्त - अगले दिन दोपहर 01 बजकर 22 मिनट तक (26 अप्रैल 2020)
अक्षय तृतीया का महत्व (Akshaya Tritiya Importance)
अक्षय का अर्थ है कभी न समाप्त होने वाला। हिंदू शास्त्र के अनुसार अक्षय तृतीया का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन बिना किसी मुहूर्त को देखे कोई शुभ और मांगलिक कार्य किया जाता है। माना जाता है कि इस दिन जो भी वस्तु खरीदी जाती है उसका फल कभी भी नष्ट नहीं होता है। इसी कारण से अक्षय तृतीया के दिन दिन सोना खरीदने को विशेष महत्व दिया जाता है। अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान परशुराम का भी जन्म हुआ था। इसी कारण से इस दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाती है।
इसके साथ यह भी माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही मां गंगा स्वर्ग से धरती पर आईं थीं। मां गंगा को भागीरथ अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए धरती पर लाए थे। इसी कारण से अक्षय तृतीया के दिन को अत्यंत ही पवित्र माना जाता है। वहीं अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन को मां अन्नपूर्णा के जन्म दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। मां अन्नपूर्णा को अन्न की देवी माना जाता है और इस दिन मां अन्नपूर्णा की पूजा से कभी भी अन्न का भंडार समाप्त नहीं होता।
अक्षय तृतीया पूजा विधि (Akshaya Tritiya Puja Vidhi)
1. अक्षय तृतीया के दिन किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।
2. इसके बाद एक चौकी लेकर उस पर गंगाजल छिड़कें और उस पर लाल रंग का वस्त्र बिछाएं।
3. वस्त्र बिछाने के बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
4. इसके बाद उन पर अक्षत चढ़ाएं और सफेद कमल या सफेद गुलाब के फूल भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को अर्पित करें।
5. पुष्प अर्पित करने के बाद नैवेद्य के रूप में जौ, गेंहू, या सत्तू, ककड़ी, चने की दाल आदि का चढ़ावा करें।
6. इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के आगे धूप व दीप जलाकर उनकी विधिवत पूजा करें।
7. पूजा के बाद अक्षय तृतीया की कथा अवश्य पढ़े या सुनें।
8. कथा सुनने के बाद धूप व दीप से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती उतारें।
9. आरती उतारने के बाद उन्हें सफेद रंग की मिठाई का भोग लगाएं।
10.इस दिन किसी निर्धन ब्राह्मण को भोजन करवाएं और उसका आशीर्वाद प्राप्त करें और अपने मंगल की कामना करें।
अक्षय तृतीया की कथा (Akshaya Tritiya Story)
अक्षय तृतीया की कथा सुनना और पढ़ना दोनों ही बहुत लाभकारी है। एक समय की बात है धर्मदास नाम का व्यक्ति अपने परिवार के साथ एक गांव में रहता था। वह बहुत ही निर्धन था। वह हमेशा अपने परिवार के पालन -पोषण के लिए चिंतित रहता था। उसके परिवार में सदस्यों की संख्या भी बहुत अधिक थी। धर्मदास भगवान में बहुत आस्था रखता था।एक बार उसे किसी ने अक्षय तृतीया का व्रत रखने की सलाह दी। जिसके बाद उसने अक्षय तृतीया का व्रत करने के लिए सोचा।
वह अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठा और गंगा नदी में स्नान करने गया ।उसके बाद उसने विधि-विधान से भगवान विष्णु की आराधाना की उस दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार पंखा, जौ ,सत्तू, चावल, नमक, गेहुं,गुड़ ,घी आदि वस्तुएं भगवान के चरणों में रखकर ब्राह्मण को अर्पित कर दी। इतना सब दान में जाता देख उसकी पत्नी और उसके परिवार वालों ने उसे रोका । उन्होंने कहा कि अगर आप इतना कुछ दान में दे देंगे तो परिवार का पालन पोषण कैसे होगा।
फिर भी धर्मदास अपने कर्म से विचलित नहीं हुआ और उसने ब्राह्मण को सब कुछ दान दे दिया । जब भी अक्षय तृतीया आती वह इसी प्रकार दान-पुण्य करता था। उसके जीवन में अनेक विपरित परिस्थिति आई पर वह अपने कर्म को करने से पीछे नही हटा। इस जन्म के पुण्य फलों की प्राप्ति के रुप में अगले जन्म में वह राजा कुशावती के रुप में पैदा हुआ। जो बहुत ही प्रतापी राजा थे। उनके राज्य में सभी प्रकार का सुख था किसी भी प्रकार की कोई भी कमी नहीं थी।
उन्होंने अपने जीवन में किसी भी तरह का अन्याय नहीं किया उनके इस कर्म के रुप में अक्षय तृतीया का फल हमेशा मिलाता रहा। जिस प्रकार भगवान ने धर्मदास के ऊपर अपनी कृपा बरसाई उसी प्रकार जो भी इस कथा को सुनता है। भगवान की विधि-विधान से पूजा करता है। दान करता है उसे इस व्रत के शुभ फल अवश्य प्राप्त होते हैं।