धर्म-अध्यात्म : भक्ति के दो सहज मंत्र, लगाएंगे बेडापार
Dharm Adhyatm : भगवान की महिमा अपरमपार है। यह तो हम सब हम सब जानते हैं। भगवान सिर्फ भाव के भूखे होते हैं। वह यह नहीं कहते कि आप उनके मंदिर में जाकर बहुत कुछ चढ़ांए या उनके लिए किसी प्रकार से अपेन आप को कष्ट दें । भगवान तो सिर्फ उनका लेने मात्र से ही अपने भक्त के सभी दुखों को दूर कर देते हैं। कलयुग में आज हम आपको ऐसे ही भगवान को पाने के दो मंत्र बताने वाले है । जिससे आप भगवान को पा सकते हैं । यह बहुत ही सहज और आसान मंत्र है जो आपके पूरे जीवन को बदल देंगे तो चलिए जानते हैं भगवान को पाने वाले सरल और सहज मंत्रों के बारे में.....;
Dharm Adhyatm : भगवान की महिमा अपरमपार है। यह तो हम सब हम सब जानते हैं। भगवान सिर्फ भाव के भूखे होते हैं। वह यह नहीं कहते कि आप उनके मंदिर में जाकर बहुत कुछ चढ़ांए या उनके लिए किसी प्रकार से अपेन आप को कष्ट दें । भगवान तो सिर्फ उनका लेने मात्र से ही अपने भक्त के सभी दुखों को दूर कर देते हैं। कलयुग में आज हम आपको ऐसे ही भगवान को पाने के दो मंत्र बताने वाले है । जिससे आप भगवान को पा सकते हैं । यह बहुत ही सहज और आसान मंत्र है जो आपके पूरे जीवन को बदल देंगे तो चलिए जानते हैं भगवान को पाने वाले सरल और सहज मंत्रों के बारे में.....
भक्ति का सर्वाधिक आसान मार्ग
रामानन्दाचार्य स्वामी रामानन्द दास महाराज ने कहा कि कलयुग में भगवत-भजन से भी मनुष्य तर जाएगा। भगवान नाम की महिमा ऐसी है कि कलयुग में राम नाम जपते-जपते मृत्युलोक छोड़ने वाले पापी भी पुण्यलोक को जाते हैं। भगवान नारद ने नारद भक्ति सूत्रम् में भक्ति के दो सहज मंत्र बनाए हैं। पहला कथा श्रवण एवं दूसरा संकीर्तन। भक्ति का यही सर्वाधिक आसान मार्ग है। भक्ति के इसी मार्ग पर भगवान श्रीराम के दर्शन को लालायित श्रद्धालुओं को वे अयोध्या के लिए लेकर चल पड़े। रामानन्दाचार्य स्वामी रामानन्द दास महाराज ने कहा अयोध्या में राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के जन्म होते ही भगवान राम के दर्शन के लिए लालायित देवी देवता वहां पहुंचे। राजा दशरथ के घर भगवान की बाललीला एक सामान्य घर की लीला है। बालरूप भगवान की भक्ति में देवता भी मगन थे। तुलसीदास कहते है कि 'जाकर नाम सुनत शुभ होहि', यानी जिनका नाम सुनना ही शुभ है उनका साक्षात दर्शन का फल कौन प्राप्त करना नही चाहेगा? कथा व्यास कहते हैं कि अयोध्या नरेश दशरथ के दरबार में विश्वामित्र राक्षसों के वध के लिए राम को मांगते हैं। ताड़का वध, मारिच से यज्ञ की रक्षा और अहिल्या उद्धार भगवान श्रीराम के द्वारा किया गया। त्याग, तप, सेवा, प्रेम और भक्ति मानव जीवन का सौन्दर्य एवं लज्जा मानव का आभूषण है। सत्कर्म भारतीय संस्कृति का स्वभाव है। षोड्श संस्कार मानव को सुसंस्कृत बनाने के सूत्र हैं तो पुरुषार्थ जीवन का साधन और साध्य है।
चिंता मस्तिष्क को कुंठित बना देती है
समस्त शरीर का शासन दिमाग द्वारा होता है, जब शासन-कर्ता जीर्ण-शीर्ण हो रहा हो तो राज्य में अव्यवस्था फैल जाना स्वभाविक है, चिन्ता-ग्रस्त और निर्बल मस्तिष्कवाले शरीर का रोगी और दुर्बल होना स्वाभाविक है। ऐसे मनुष्य अधिक दिन जी सकेंगे, इस पर कौन विश्वास करेगा? मस्तिष्क हमारे शरीर का बहुत ही उपयोगी अंग है। इसकी सुरक्षा हमारे जीवन की सुरक्षा है किन्तु हममें से कितने हैं, जो इसका ठीक प्रकार उपयोग करते हैं? अधिकांश मनुष्य अज्ञानतावश मस्तिष्क का दुरुपयोग करते हैं और उसकी महान सामर्थ्य के द्वारा प्राप्त होनेवाले आश्चर्यजनक परिणामों से वंचित रह जाते हैं। मस्तिष्क को विषाक्त बनाकर कुंठित कर देने वाले कारणों में 'चिन्ता' प्रमुख है। कहते हैं कि चिन्ता चिता के समान है, जो जीवित मनुष्य को जला देती है। लोग अपनी विपत्ति को उस खुर्दबीन शीशे से देखते हैं, जिसमें से छोटी-सी चीज़ कई गुनी होकर दिखाई पड़ती है। इस दुनिया में तिल को ताड़ बनानेवाले बहुत हैं। जरा से कष्ट के मारे घबरा जाते हैं और चिन्ता के समुद्र में डुबकियां लेने लगते हैं। यह बड़ी ही दयनीय अवस्था है। घबराहट एक स्वतंत्र विपत्ति है, वह अपने कुटुम्ब को साथ लेकर आती है और ऐसी अव्यवस्था पैदा करती है कि मनुष्य यह भी ठीक तरह निर्णय नहीं कर पाता कि अब क्या करना चाहिए? उल्टा उपाय करने से कष्ट और भी बढ़ जाता है। चिन्ता के कारण मस्तिष्क में गर्मी बहुत बढ़ जाती है और वह वहां की स्निग्धता, सरलता एवं कोमलता को नष्ट करके दाह एवं उष्णता उत्पन्न करती है। चिन्ताशील मनुष्य का मस्तिष्कीय परीक्षण करने पर पाया गया है कि श्वेत बालुका और पीत पदार्थ (ग्रे मैटर) सूखकर कड़े और ठोस हो जाते हैं।
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