Dussehra 2019 : श्री राम से पहले रावण को इन दो योद्धों ने दी थी मात

दशहरे का त्योहार इस साल 2019 में 8 अक्टूबर 2019 के दिन मनाया जाएगा, रावण ने अपने अहंकार के मत में अनेकों योद्धाओं से युद्ध किया था, लेकिन रामायण काल में ऐसे दो योद्धा भी थे जिन्होंने उसे न केवल युद्ध में हराया बल्कि उसके घमंड को भी चकनाचूर कर दिया था।;

Update: 2019-09-24 10:59 GMT

Dussehra 2019 दशहरे का त्योहार भगवान राम की अंहकारी रावण की जीत के रूप में मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान श्री राम (Shri Ram) से पहले रावण को दो और योद्धाओं ने मात दी थी। इन दोनों योद्धाओं ने रावण न केवल रावण को युद्ध में हराया था बल्कि उसके अंहकार को भी तोड़ा था। जिसके बाद रावण (Ravan) ने इन दोनों योद्धाओं को अपना मित्र बना लिया था तो आइए जानते हैं श्री राम से पहले किन दो योद्धाओं ने रावण को श्री राम से पहले युद्ध में हराया था।

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रावण और बाली का युद्ध (Ravan Or Bali Ka Yudh)

रामायण काल में अनेकों महान योद्धा हुए थे। उन्हीं में से एक था बाली। माना जाता है कि बाली के अंदर एक हजार हाथियों जितनी शक्ति थी। इसके अलावा बाली को इंद्र देव के द्वारा एक हार भी दिया गया था। जिसे ब्रह्मा जी ने मंत्र मुक्त कर यह वरदान दिया की जब भी वह इसे पहनकर युद्ध करने जाएगा तो उसे उसके शत्रु की आधी शक्ति प्राप्त हो जाएगी। जिसकी वजह से वह और भी अधिक शक्तिशाली हो जाएगा। यह बात उस समय की है जब रावण ने तीनों लोकों पर कब्जा कर लिया था। जिसकी वजह से उसे अपनी शक्ति पर अत्याधिक अंहकार हो गया था।

उसे लगता था कि समस्त ब्राह्मांड में कोई भी ऐसा नही है। जो युद्ध में उसे परास्त कर सकता है। तब ही उसे किसकिंधा नरेश महाबली बाली के बारे में जानकारी मिली रावण को पता चला की बालि के समक्ष युद्ध में कोई भी टिक नहीं सकता। जो भी बालि से युद्ध करने जाता है। उसकी आधी शक्ति बालि में समा जाती है। रावण को विश्वास नही था कि कोई ऐसा भी हो सकता है। इसलिए वह बाली की परीक्षा लेने के लिए किसकिंधा पहुंच गया। किसकिंधा पहुंचकर वह बाली को ललकारने लगा और कहने लगा अरे ओ वानर कहां है आकर मुझ से युद्ध कर मैं भी तो देखुं तुझ में कितनी शक्ति है।

बालि उस समय ध्यान में लीन थे। रावण ने उन्हें बार- बार ललकारा लेकिन बालि फिर भी ध्यान में मग्न रहे। इसके बाद रावण ने गदा को जमीन पर मारा जिससे बालि का ध्यान भंग हो गया। इस पर बालि ने कहा कि रावण मेरा ध्यान अभी पूरा नही हुआ है। इस पर रावण ने कहा कि तू मुझ से बचने के लिए ध्यान का सहारा ले रहा है। यह सुनकर बालि ध्यान से उठ खड़े हुए। इसके बाद बालि और रावण के बीच में युद्ध प्रारंभ हो गया। बालि के वरदान के अनुसार उन्हें रावण की भी आधी शक्ति प्राप्त हो गई। इसके बाद उन्होंने रावण को जमींन पर गिरा दिया।

रावण के उठने से पहले ही बालि ने रावण को अपने बगल में दबा लिया। इसके बाद बालि ने रावण को चारों दिशाओं में घूमाना शुरु कर दिया। इसके बाद रावण ने बालि के सामने मित्रता का प्रस्ताव रखा जिसे बालि ने मान लिया और रावण को छोड़ दिया। इस प्रकार से बालि ने रावण का अहंकार तोड़ दिया।

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रावण और सहस्त्रबाहू अर्जुन का युद्ध (Ravan or Sahastrabahu Arjun Ka Yudh)

रावण का दिगविजय अभियान चल रहा था। कई राज्यों को जीतने के बाद रावण माहिषमति पहुंचा। उस समय वहां पर कृत्यवीर्य अर्जुन शासन कर रहा था। एक दिन रोज की तरह ही वह अपनी रानियों के साथ जलविहार के लिए गया था। रावण भी घूमते-घूमते उसी सरोवर के किनारे पहुंच गया और अपने आराध्य भगवान शिव की आराधना करते हुए उसने वहां पर शिवलिंग की स्थापना की। उधर अर्जुन की रानियों ने अर्जुन से कौतुक के लिए कुछ आसाधारण करने के लिए कहा। कृत्यवीर्य अर्जुन को वरदान स्वरूप एक हजार भुजाएं प्राप्त हुई थी। इसी कारण से ही कृत्यवीर्य अर्जुन को सहस्त्रबाहु नाम से भी जाना जाता था।

अपनी पत्नीयों के इस प्रकार का अनुरोध करने पर अर्जुन ने अपनी हजार भुजाओं से नदी का प्रवाह पूरी तरह से रोक दिया। अचानक जलधारा रूक जाने से नदी का जलस्तर बढ़ गया और उस पर तट पर रावण का बनाया गया शिवलिंग बह गया। इससे क्रोध में आकर रावण ने अपनी सेना की एक टुकड़ी को इसका कारण पता करने और अपराधी को बंधी बनाकर लाने का आदेश दिया। जब उसकी सेना ने देखा कि अर्जुन ने अपने हजार हाथों से जल का प्रवाह रोक दिया है तो उन्होंने उसे बंधी बनाने के लिए उस पर आक्रमण कर दिया। किंतु अर्जुन के पराक्रम के आगे किसी भी न चली उससे पराजित होकर सारे सैनिक रावण के पास लौटे और रावण को सारी घटना के बारे में बताया।

अपने घमंड में चूर रावण नदी के तट पर पहुंचा और अर्जुन को युद्ध की चुनौती दे डाली। पहले अर्जुन ने कहा कि रावण उसका अतिथि है। किंतु रावण के हठ के आगे उसकी एक न चली और दोनों के बीच में युद्ध हुआ। उनका युद्ध कई दिनों तक चलता रहा और ऐसा लग रहा था कि उनमें से कोई भी पराजित नहीं हो सकता था। अंत में अर्जुन ने क्रोध में आकर रावण को अपने हजार हाथों से जकड़ लिया। रावण अपनी पूरी शक्ति के बाद भी उसकी पकड़ से निकल नहीं पाया और उसने रावण को बंदी बना लिया बाद में जब रावण के दादा को इस बात का पता चला तो उन्होंने सहस्त्रबाहु से कहकर रावण को मुक्त कराया । इसके बाद रावण ने सहस्त्रबाहु अर्जुन से मित्रता कर ली और लंका लौट गया। 

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