Dussehra 2019 : महार्षि वाल्मीकि से पहले कलयुग के इस देवता ने लिखी थी रामायण
दशहरा पर भगवान श्री राम की महिमा का गुणगान किया जाता है, महार्षि वाल्मीकी ने भी उनकी अद्भुत स्वरूप और पराक्रम का गुणगान रामायण में किया है, लेकिन वाल्मीकी रामायण से पहले भी एक रामायण की रचना की गई थी, जिसे हनुमद रामायण के नाम से जाना जाता है। लेकिन इस रामायण को हनुमान जी ने समुद्र में फेंक दिया था। जिस कारण से यह रामायण आज के समय में उपलब्ध नही है तो आइए जानते हैं महार्षि वाल्मीकि से पहले किसने की थी सबसे पहले रामायण की रचना;
Dussehra 2019 दशहरा का पर्व भगवान श्री राम की जीत की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री राम ने अंहकारी रावण का वध करके संसार को अर्धम से मुक्त कराया था। उनकी महिमा का गुणगान करते हुए ही रामायण की रचना की गई थी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महार्षि वाल्मीकी से पहले भी किसी और ने रामायण की रचना कर दी थी। दशहरे का पर्व (Dussehra Festival) इस साल 2019 में 8 अक्टूबर 2019 (8 October 2019) को मनाया जाएगा। जब महार्षि वाल्मीकी ने उनकी रामायण देखी तो वह उनकी रामायण देखकर उपेक्षित हो गए थे तो आइए जानते हैं महार्षि वाल्मीकि से पहले किसने की थी रामायण की रचना
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हनुमान जी ने की थी सबसे पहले रामायण की रचना (Hanuman Ji Na ki Thi Sabse Pahle Ramayan ki Rachna)
प्रभु श्री राम जी के ऊपर अनेकों रामायण लिखी गई हैं। जिनमें प्रमुख है वाल्मीकि रामायण, रामचरित मानस रामायण, कबंद रामायण, अद्भुत रामायण और आनदं रामायण। लेकिन क्या आपको पता है कि एक रामायण स्वंय हनुमान जी ने लिखी थी। जिसे हनुमद रामायण के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार सर्वप्रथम जो राम कथा लिखी गई थी।वह हनुमान जी के द्वारा दी गई थी और वह भी एक शिला पर वह भी अपने नाखुनों से लिखी थी। जो हनुमद रामायण के नाम से प्रसिद्ध है। यह घटना उस समय की है। जब प्रभु श्री राम रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोद्धया लौट आए थे।
जिसके बाद हनुमान जी हिमालय पर्वत पर चले जाते हैं। वहां पर वह शिव तपस्या के दौरान प्रतिदिन अपने नाखुन से रामायण की कथा लिखा करते थे। इस तरह उन्होंने भगवान श्री राम की महिमा का उल्लेख करते हुए हनुमद रामायण की रचना की। इसके कुछ समय पश्चात् महार्षि वाल्मीकि ने भी रामायण लिखी थी और रामायण लिखने के बाद उन्हें इसे भगवान शिव को दिखाकर उनकों समर्पित करने की इच्छा हुई। वह अपनी रामायण लेकर शिव के धाम कैलाश पर्वत पर पहुंच गए। वहां पर उन्होंने हनुमान जी और उनके द्वारा लिखी गई हनुमद रामायण को देखा।
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हनुमद रामायण के दर्शन कर वाल्मीकि जी निराश हो गए। वाल्मीकि जी को निराश देखकर हनुमान जी ने उनसे उनकी निराशा का कारण पूछा तो महार्षि बोले की उन्होंने बड़े ही कठिन परिश्रम के बाद रामायण लिखी थी। लेकिन अब आपकी रामायण देखकर मेरी रामायण उपेक्षित हो जाएगी। तब वाल्मीकि जी की चिंता का शमन करते हुए हनुमान जी ने हनुमद रामायण पर्वत शिला को एक कंधे पर उठाया और दूसरे कंधे पर महार्षि वाल्मीकि को बिठाकर समुद्र के पास गए। इसके बाद स्वंय के द्वारा रचना की गई रामायण को भगवान श्री राम को समर्पित करते हुए समुद्र में फेंक दिया।
हनुमान जी द्वारा लिखी गई रामायण को हनुमान जी द्वारा समुद्र में फेंक दिए जाने के बाद महार्षि वाल्मीकि बोले हे हनुमान! आपकी महिमा का गुणगान के करने के लिए मुझे एक जन्म और लेना होगा। मैं आपको यह वचन देता हुं कि कलयुग मे मैं एक रामायण और लिखुंगा और उसे लिखने के लिए जन्म अवश्य लूंगा। तब मैं यह रामायण आम लोगों की भाषा में लिखुंगा। माना जाता है कि रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास कोई और नहीं बल्कि महार्षि वाल्मीकि का ही दूसरा जन्म था। तुलसीदास जी अपनी रामचरित मानस लिखने से पहले हनुमान चालीसा लिखकर रामभक्त हनुमान का गुणगान करते हैं और हनुमान जी के प्रेरणा से ही वह रामचरित मानस लिखते हैं
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